भगवान वहीं मिलते है जहां उनके भक्त तल्लीन होकर उनका कीर्तन करते है- पूज्य स्वामी श्री रामदयालजी महाराज

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गीता भवन में आज भानपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंदजी महाराज के प्रवचन भी होंगे
मन्दसौर। धर्मधाम गीता भवन में आयोजित अर्धशती गीता जयंती महोत्सव के अंतर्गत नवधा भक्ति व्याख्यान माला के अंतर्गत द्वितीय दिवस दूसरी भक्ति कीर्तन पर प्रवचन करते शाहपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरू पूज्य आचार्य श्री ने कीर्तन भक्ति पर विशद् प्रवचन करते हुए कहा कि श्रवण अर्थात भगवान कथा-लीला श्रवण के पश्चात भगवान के प्रति जो हृदय में अनुराग-प्रेम उमड़ने लगता है। तो वह तन-मन की सुध भूल कर तल्लीन होकर कीर्तन करने लगता है। उदाहरण देते हुए पूज्य श्री ने बताया कि कीर्तन किस प्रकार करना चाहिये। कीर्तन शब्द को उल्टा कर दिया जाये तो वह नर्तकी अर्थात जिस प्रकार नृत्यांगना पूरा ध्यान अपने पैरों के घंूघरूओं पर रहता है। सम्पूर्ण शरीर तबला अथवा मृदंग की लय से एकाकार हो जाता है। इसी प्रकार कीर्तन भक्ति में भक्त और भगवान एकाकार हो जाते हैं।
कीर्तन भक्ति सबसे सरल है इसमें जप-तप-यज्ञादि अनुष्ठान आदि की आवश्यकता नहीं केवल हृदय में भगवान से प्रेम चाहिये।
भगवान कहां मिलते है ?- भगवान कहां ढूंढने पर, क्या करने पर मिलेंगे ? नारद द्वारा पूछे गये इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने उत्तर दिया नारद मेरा कोई निश्चित पता नहीं है। मैं कहाँ-कैसे मिलूंगा मेरा एक ही पता-ठिकाना है। तेमद भक्ता यत्र गायन्ती तत्र तिष्ठामि नारद’’ नारत मैं वहीं मिलता हूं जहां मेरे भक्त तन-मन की सुध भूलकर मेरा कीर्तन गुणगान करते है।
बंगाल के प्रसिद्ध सन्त चैतन्य महाप्रभु का उदाहरण देकर आचार्यश्री ने कहा कि भक्ति उसे ही प्राप्त होती है जो स्वयं अमानी रहकर दूसरों को मान-सम्मान देता है। जो अपने को ‘‘तृणादपि-मित्रेन’’ तिनके से भी निम्न एक राई के दाने शत(सौ) टूकड़े करने पर जो शेष रह जाये उससे भी अपने को निम्नतर माने तभी भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ता है।
आज 2 जनवरी को मध्यान्ह 2 से 4 बजे प्रवचन माला में भानपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंदजी महाराज का सानिध्य और प्रवचन होंगे। गीता भवन ट्रस्ट ने अधिक से अधिक संख्या में प्रवचन लाभ लेने का अनुरोध किया है।
द्वितीय दिवस पूज्य आचार्य श्री का स्वागत कर आशीर्वाद लेने में विधायक श्री यशपालसिंह सिसौदिया, आयोजन संयोजक सम्पतलाल कालिया, श्रीमती राधादेवी कालिया, स्वागताध्यक्ष राजेन्द्रसिंह अखावत, जगदीश चौधरी, सुमित्रा चौधरी, पं. अशोक त्रिपाठी, ओम चौधरी, उषा चौधरी, पद्माबाई चित्तौड़गढ़, विनोद चौबे, नीता चौबे, दशरथसिंह झाला एडवोकेट, कलादेवी पोरवाल मनासा, सुधा मण्डलोई, कविता दुबे, प्रीति शर्मा, बंशीलाल टांक सहित बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।