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सोशल मीडिया का ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO) – मानसिक दबाव का नया रूप

सोशल मीडिया का ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO) – मानसिक दबाव का नया रूप

-✍️राकेश यादव गोल्डी

आजकल सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। सुबह उठते ही फोन चेक करना और रात को सोने से पहले तक स्क्रीन स्क्रॉल करते रहना—ये आदतें आम हो गई हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस सबके बीच एक अनजाना डर भी पनप रहा है?

इसे कहते हैं ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO)—यानी कुछ मिस कर जाने का डर।

पुरानी स्थिति बनाम वर्तमान स्थिति

पहले के जमाने में लोग एक-दूसरे से मिलने जाते थे, बातचीत करते थे, और साथ में समय बिताते थे। अगर कोई आयोजन या खुशी का मौका होता, तो उसमें सभी की मौजूदगी स्वाभाविक होती थी। किसी को यह चिंता नहीं होती थी कि अगर वे वहाँ न गए, तो लोग क्या सोचेंगे। लेकिन आज सोशल मीडिया ने यह सोच बदल दी है। अब अगर किसी इवेंट की फोटो ऑनलाइन दिख जाए और हम उसमें न हों, तो लगता है की हमने कुछ खास खो दिया।

क्या है FOMO?

जब हमारे दोस्त किसी पार्टी में मजे कर रहे होते हैं और हम घर पर अकेले बैठे होते हैं, तो मन में एक अजीब सा खालीपन महसूस होता है। लगता है जैसे जिंदगी में कुछ छूट रहा है। सोशल मीडिया पर किसी की घूमने-फिरने की तस्वीरें देख कर मन में सवाल आता है—”मेरी जिंदगी इतनी बोरिंग क्यों है?” यही FOMO है—वो डर जो हमें बेचैन कर देता है कि कहीं हम कुछ खास तो मिस नहीं कर रहे।

  कैसे बढ़ता है FOMO?

1. दूसरों की चमकती जिंदगी

सोशल मीडिया पर सबकी जिंदगी परफेक्ट दिखती है—ट्रिप्स, पार्टीज़, नई चीजें। लगता है, उनकी जिंदगी कितनी मजेदार है और हमारी कितनी बोरिंग। उदाहरण के लिए, जब कोई दोस्त नई कार या नई यात्रा की तस्वीरें डालता है, तो मन में ख्याल आता है—”मेरे पास ऐसा क्यों नहीं है?” इस तुलना ने अनजाने में ही हीन भावना को जन्म दे दिया।

2. हर वक्त अपडेट रहने का दबाव

कुछ नया न दिखा तो बेचैनी होने लगती है। हर वक्त कनेक्ट रहने की आदत हमारी मानसिक शांति को तोड़ देती है। उदाहरण के लिए, हर थोड़ी देर में फोन चेक करना ताकि कोई नया मैसेज, स्टोरी या पोस्ट न छूट जाए। अगर किसी ग्रुप में हमारा नाम नहीं आया, तो मन में सवाल उठता है—”क्या मुझे नजरअंदाज किया जा रहा है?”

3. तुलना का जाल दूसरों की खुशी देखकर लगता है कि हमारी जिंदगी में कुछ कमी है। हम खुद को कमतर समझने लगते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी सहकर्मी को प्रमोशन मिलता है और उसकी खुशी सोशल मीडिया पर बिखर जाती है, तो खुद से सवाल करते हैं—”मैं क्यों नहीं कर पाया?”

FOMO के मानसिक दबाव

बेचैनी और तनाव 

हर वक्त अपडेट रहने का दबाव मन को थका देता है। जब दोस्तों के किसी इवेंट की तस्वीरें दिखती हैं और हम वहाँ नहीं होते, तो पूरा दिन बेचैनी में गुजरता है।

– आत्म-सम्मान में गिरावट

लगता है, हम दूसरों से पीछे हैं या उनकी तरह खुश नहीं हैं। जब किसी की सफलता या खुशी दिखती है, तो अपनी जिंदगी अधूरी लगने लगती है।

अकेलापन

सोशल मीडिया पर जितनी भीड़ हो, लेकिन दिल में अकेलापन बढ़ता जाता है। लगता है कि सबके पास सब कुछ है और हम कहीं पीछे छूट गए हैं।

स्वयं के स्पेस और व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव

मैंने भी कई बार महसूस किया है कि जब दोस्तों की चमचमाती तस्वीरें और उपलब्धियों के पोस्ट देखता हूँ, तो कहीं न कहीं अंदर से मैं भी बेचैन हो जाता हूँ। सवाल उठता है—”क्या मैं अपनी जिंदगी को सही दिशा में ले जा रहा हूँ?”

कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी ग्रुप में मेरी गैर-मौजूदगी पर मुझे लगा कि मैं अलग-थलग पड़ गया हूँ। खुद से सवाल किया—”क्या मैं इस भागदौड़ में खुद को खोता जा रहा हूँ?” लेकिन धीरे-धीरे मैंने समझा कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली हर चीज सच नहीं होती। वहाँ सिर्फ खुशियों के पल दिखाए जाते हैं, संघर्ष की कहानियाँ नहीं। मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में कुछ छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव किए।

अब मैं खुद से जुड़ने के लिए समय निकालता हूँ। अपने विचारों से संवाद करता हूँ और सोचता हूँ कि क्या मुझे वाकई कुछ खोने का डर है या यह सिर्फ एक भ्रम है।

खुद से संवाद खुशी का असली रास्ता

FOMO से बचने का एक ही उपाय है—खुद से संवाद करना और खुद को समझना। हमें यह जानना होगा कि दूसरों की जिंदगी को देखकर अपनी खुशी को मापना सही नहीं है।

हमारी जिंदगी का मूल्य इस बात में नहीं है कि कितने लोग हमें लाइक करते हैं या कितनी बार हमारा नाम लिया जाता है। असली खुशी उन छोटे-छोटे पलों में है जो हम खुद के लिए जीते है बिना किसी दिखावे के। मुझे एहसास हुआ कि हर पल अपडेट रहने से ज्यादा जरूरी है अपने जीवन में शांति और सुकून लाना। मैंने अपने लिए एक स्पेस बनाया, जहाँ मैं बिना किसी ऑनलाइन दबाव के खुद को जान सकूँ। तो चलिए, थोड़ा ठहरें, मुस्कुराएँ और खुद से जुड़े बिना किसी डर के।

आखिरकार, जिंदगी को सोशल मीडिया की दौड़ में नहीं, बल्कि अपनी असल खुशियों में जीना ही सच्चा सुख है।

 

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