क्या इन लोगो पर भ्रष्टाचार और शासन के पैसे का दुरपयोग करने पर FIR नही होनी चाहिए?

क्या इन लोगो पर भ्रष्टाचार और शासन के पैसे का दुरपयोग करने पर FIR नही होनी चाहिए?
सीतामऊ।मंदसौर जिले में चंबल नदी का कुछ हिस्सा मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा निर्धारित करता है। पहले के समय में यहां नदी पार करने वाले यात्रियों को कंजर लूट लिया करते थे। लेकीन नई सरकारें आई और सुविधाएं भी बढ़ती गई। जहां पहले कच्चा रास्ता हुआ करता था वहा आज हाइवे बन गया है। मप्र और राजस्थान को जोड़ने और स्थानिय लोगो की यातायात व्यवस्था और व्यापार सुलभ करने के लिए करोड़ों रूपये की लागत से चंबल नदी (धतुरिया – कुंडला के बीच) पर एक बड़ा पुल बनाया गया। 2004 में पुल का भूमिपुजन हुआ धीरे धीरे करके ही सही 2009 तक पांच सालो में यह पुल बनकर तैयार हुआ और फिर पुल से दोनो राज्यों के बीच आवागमन शुरू हुआ। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। लेकीन किसी को पता नही था की यह पुल अन्दर से बिल्कुल खोखला हे। सिस्टम में बैठे कंजरो ने करोड़ों की लागत में से कमीशन खाया और इतना खाया की पुल का स्ट्रक्चर ही कमज़ोर बना दिया। पुल बने 10 साल भी नही हुए थे की 2019 में मंदसौर जिले में अतिवर्षा हुई नदी में एक सैलाब आया और पुल को कागज की तरह अपने साथ बहा कर चला गया। जब नदी में पानी कम हुआ और लोगो ने टूटे पिलर देखे तो पता चला की पिलर अंदर से बिल्कुल खोखले और कमजोर है, पीलर बनाने में घर की छत में लगने वाला पतला सरिया इस्तेमाल किया गया था। वाजीब सी बात हे जब इतने खोखले और पतले सरिए का इस्तेमाल इतने बडे़ अंतराज्यीय पुल में होगा तो पुल टूटेगा ही।
लेकिन क्या इसमें सिर्फ़ ठेकेदार ही दोषी है? लोक निर्माण विभाग के सरकारी अधिकारी, बडे़ बडे़ इंजीनियर, सरकार के मंत्री, विधायक भूमिपूजन और लोकर्पण करने वाले नेता जन प्रतिनिधीयो की आंखे निर्माण के दोरान बंद थीं? घटिया पुल बनाकर सरकारी खजाने के करोड़ों रूपए पानी में बहाने के बाद क्या उस ठेकदार या पुल निर्माता कम्पनी पर एफआईआर नही होनी चाहिए थी। उसको कम से कम मप्र में ब्लेक लिस्टेड किया जाना चाहिए था? पीडब्ल्यूडी विभाग के उन तमाम जिम्मेदार अधिकारी, इंजिनीयर जिनके नाम आज भी वहा पत्थर पर अंकित है उन सभी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए थी? लेकीन सिस्टम में बैठे भ्रष्ट आचरण वाले पर कोन कार्यवाही करेगा ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
यह आज इसलिए लिखना पड़ रहा है की एक बार फ़िर जनता की गाढ़ी कमाई से भरे जानें वाले टैक्स के पेसो से एक बार फिर सरकार हिम्मत जुटा कर इस पुल का पुन: निर्माण कराने जा रहीं हैं। इस बार किसी पीडब्ल्यूडी विभाग के इंजीनियरों, अधिकारियो, ठेकेदारो ओर नेताओं पर भरोसा मत करना। अगर पुल निर्माण में गड़बड़ी हो रही हों तो जनता को खुद ही उसकी आवाज़ उठानी होंगी। हम लोग भी एक अच्छे मजबूत और टिकाऊ पुल निर्माण में जनता के साथ है। गड़बड़ी या भ्रष्टाचार हुआ तो सबको घेरा जायेगा और जनता के सामने जवाब देना पड़ेगा।
आशा है 21,22 करोड़ रूपए की लागत से बनने वाले पुल को कंपनी- ठेकेदार अच्छे से पुल का निर्माण करेगे तो फिर से दोनों राज्यों के बिच के रास्ते शुरू होंगे, गाड़ियां दौड़ेगी, व्यवपार होगा, और क्षेत्र के लोगो को सुख सुविधाएं मिलेगी। स्टींबर नाव में बैठकर नदी पार नहीं करनी पड़ेगी।