जबलपुरमध्यप्रदेश

बेल के बाद फिर क्रिमिनल केस दर्ज हो तो बेल कैंसल करना उचित

बेल के बाद फिर क्रिमिनल केस दर्ज हो तो बेल कैंसल करना उचित

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अधीनस्थ न्यायालय के उस निर्णय को सही करार दिया है, जिसमें पूर्व में मिली जमानत के बाद दर्ज आपराधिक प्रकरण को मद्देनजर जमानत निरस्त की गई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि आवेदक के विरुद्ध जमानत मिलने के उपरांत दो अपराधिक प्रकरण दर्ज हुए हैं, जो जमानत शर्तों का उल्लंघन है। एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए कहा कि जिला न्यायालय ने अपने आदेश में कोई गलती नहीं की है।

झूठे क्रिमिनल केस दर्ज करवाए

रीवा निवासी ग्राम टिकुरी के सरपंच महेश साकेत की ओर से दायर अर्जी में कहा गया था कि वह सरपंच हैं। इसके कारण कई लोग उससे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रखते हैं। उनके खिलाफ झूठे आपराधिक प्रकरण दर्ज कराये गए हैं। पूर्व में दर्ज एक आपराधिक प्रकरण में मिली जमानत को निरस्त कराने के लिए ऐसा किया गया है। अनावेदक महेंद्र सिंह का पूर्व में दर्ज आपराधिक प्रकरण से कोई संबंध नहीं था। जमानत मिलने के बाद साजिश के तहत उसके खिलाफ पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज कराया।

हत्या के प्रयास का मामला दर्ज

एसएचओ विकास कपीस ने उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का प्रकरण दर्ज कराया है। एसएचओ ने उसे सरपंच पद से हटाने के लिए संबंधित अधिकारियों को भी लिखा था। इसके बाद अनावेदक ने पूर्व में दर्ज आपराधिक प्रकरण में मिली जमानत को निरस्त करने के लिए आवेदन दिया था।

तीन माह के भीतर सेवा में बहाल करो

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता कर्मी को बहाल करने के निर्देश दिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस मामले में अंतरिम आदेश नहीं था, इसलिए उसे बिना बैकवेज बहाल करें। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देते हुए तीन माह के भीतर फ्रेश आदेश जारी करें।

भोपाल निवासी सुभाष शुक्ला की ओर से अधिवक्ता करण सिंह ठाकुर ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि हाई कोर्ट ने 2004 में एक आदेश में कहा था कि 1988 की एक पालिसी के तहत बहुत से दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी गई थी।

इसके बाद 2004 में सरकार ने उक्त पालिसी को रिव्यू किया और पूर्व की नीति के तहत हटाए गए कर्मियों को बहाल करने का निर्णय लिया। इसके बाद सैकड़ों कर्मियों को उक्त फैसले के तहत लाभ दिया गया। दलील दी गई कि याचिकाकर्ता के मामले में अंतरिम राहत नहीं थी, लेकिन उसका प्रकरण उक्त आदेश से कवर्ड है।

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