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पर्युषण जीवन शुद्धि का पर्व

पर्युषण जीवन शुद्धि का पर्व

पर्युषण पर्व जीवन शुद्धि का आध्यात्मिक शिविर है। हमें इस पर्व में चेतन को उसकी वास्तविक दिशा देनी है। जीवन मूल्यों का सम्मान और आचरण करना है। यह एक तरह से आध्यात्मिक शिविर है जो है तो मात्र 8 दिनों का ही किन्तु ये आठ दिन भी वर्षभर का शुद्धिकरण कर सकते है। ये ऐसे पवित्र दिन है जब व्यक्ति नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन बिताने लगता है। ये हमारे लिये स्वर्णिम अवसर है वरदान है। वर्षभर मन्दिर और उपाश्रय में न जाने वाला भी इन आठ दिनों में तो मन्दिर भी जाएगा और उपाश्रय स्थानक भी जाएगा। ये आठ दिन भी लोकोत्तर साधना को साकार कर देते है। इसलिए ये लोग पर्वाराधना कर रहे है वे अपने आपको जीवन शुद्धि के लिये पूरी तरह समर्पित कर ले। पर्युषण तो पगडंडी है नये कषायों को बांधने के लिये नहीं वरन पुराने कषायों से छूटने के लिये पर्युषण के द्वार पर आए यहां शारीरिक सुविधाओं को मूल्य मत देना।
पर्युषण तो वास्तव में आत्म शुद्धि और सिद्धि का पर्व है। पर्यूषण का तो एक ही मतलब है आत्मा का आत्मा के पास बैठना, आत्मा से आत्मा की संधि ही वास्तव में पर्युषण की मौलिकता है। जिनमें हम सालभर के सारे कृत्य कारित को निहार सकते है। इन आठ दिनों में जितना निरहंकार निर्लिप्त जी सको जी लेना।  ये आठ दिन पर्युषण पर्व में शरीर भाव, शरीर सुख को जितना विस्तृत कर सके, पर्यूषण पर्व की आध्यात्मिक उपलब्धि उतनी ही ज्यादा होनी है । हम यथासंभव पूरे आठ दिन पर्यूषण पर्व पर दो घंटे मौन रखे तो किसी से राग द्वेष का सवाल ही पैदा नहीं होगा। जब भाषा न होगी तो मन मौन होने लगेगा और मन का मौन ही जीवन मुनित्वः का आचरण है। पर्युषण इसी बात का संदेश लेकर आता है कि अपने मन की वृत्तियों को मौन कर लो जो अपने मन को शांत कर लेता है, अपने होंठ सिल लेता है, उसकी साधुता सध जाती है। ये ऐसे पवित्र दिन है जब व्यक्ति नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन बिताने लगता है। पर्युषण की सारी आराधना उस मूल बिन्दु तक पहुंचने की प्रक्रिया है अपने आपको पावन बनाने की गंगा है। यह पर्व त्याग के गौरव को लिये हुए है एक दूसरे के प्रति ऋजु और दिव्य होने का अवसर है यहां सत्तर-अस्सी वर्ष का वृद्ध भी आठ-दस वर्ष के बच्चे के प्रति सहृदयता से क्षमा याचना करेगा।
पर्युषण पर्व पूर्णकर क्षमा प्रार्थना करते हुए प्रेम और मैत्री को सदाचार और सद्विचार को आधारित कर हृदय में धारण कर सकते है। मैं सबको क्षमा करता हूँ सब मुझे क्षमा करें।
खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु में।
मित्ति में सव्व भुए सु, वेरं मज्झं न केणई ।।
यह सूत्र पर्यूषण का मूल संदेश है। मुनिवर का वर्ष भर श्रावकों द्वारा अभिनन्दन होता है वही पर्वाराधना पूर्यषण पर्व में श्रावकों को अपने हाथ जोड़ता है, उनसे क्षमा याचना करता है साधुता की यही तो पहचान है। इस तरह की क्षमापना ही वास्तव में पर्युषण की सही आराधना है इसी में छिपी है कषाय निर्जरा समता और तपस्या ।
सामायिक तपस्या, स्वाध्याय प्रभु पूजा करना ही पर्यूषण के पुनीत कर्तव्य है ये ऐसे पवित्र दिन है जब व्यक्ति नैतिक धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन बिताने लगता है।
पर्युषण पर्व में एक कार्य जरूर कर ले और वह है अपने मन में किसी के प्रति बंधी हुई बैर की गांठ को खोल दे, यह हमारा मूल लक्ष्य हो, तब ही पर्युषण पर्व की सार्थकता है।
रोजाना णमोकार मंत्र का जाप करें, सामायिक करें, प्रतिक्रमण करें और रात्रि भोजन का त्याग करें, क्षमापना को आत्मसात करें। जरूरतमन्द भाईयों को सहयोग दे यह साधार्मिक वात्सल्य होगा और जरूरतमंद भाई बहनों को ऊंचा उठाने के लिये प्रयत्न करना सच्ची सधार्मिक भक्ति है।
क्षमापना ही वास्तव में पर्युषण की सही आराधना है। इसी में छिपी है समता, तपस्यां, आसव, कषाय। काम क्रोध का निरोध करना, सामायिक, तपस्या स्वाध्याय प्रभु पूजा करना ही पर्युषण के पुनीत कर्तव्य है। ध्यान रखें व्यवहार शुद्ध पवित्र बनाए रख सको तो बलिहारी है कम से कम भावों को नीचे न गिरने दें। वे धन्य है जो व्यवहार से भी शुद्ध श्रावक और शुद्ध श्रमण है और भाव से भी शुद्ध श्रावक और श्रमण है। आत्म विजय के मार्ग पर दृढ़तापूर्वक चलना ही जिनेश्वर भगवान की सच्ची पूजा है।
सही अर्थों में क्षमा दान ही पर्यूषण पर्व की महत्ता है सभी को मन वचन काया से मिच्छामी दुक्कडम में है। इसे आत्मसात करें और सभी श्रावक, मुनिगण साधु साध्वी को मन वचन काया से क्षमा याचना करें।
नेमीचंद कोठारी
मंदसौर (म.प्र)

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