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नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. इसके बावजूद ओल्ड ग्रैंड पार्टी टेंशन में है सरकार बनने के बावजूद कांग्रेस की टेंशन में होने के 2 बड़े कारण बताए जा रहे हैं.इनमें पहला कारण पार्टी के भीतर की गुटबाजी और दूसरा कारण सहयोगी एनसी की बेरुखी है.
यही वजह है कि कांग्रेस ने अब तक जम्मू कश्मीर में न तो विधायक दल का नेता चुन पाया है और न यह फैसला कर पाया है कि कश्मीर की नई सरकार में शामिल होना है या नहीं?
कांग्रेस गठबंधन को मिली 49 सीटें
जम्मू कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए 5 अक्तूबर को परिणाम जारी किए गए थे. कांग्रेस की सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42, कांग्रेस को 6 और सीपीएम को एक सीटों पर जीत मिली थी.
हरियाणा की हार से मायूस कांग्रेस के लिए जम्मू की जीत को एक मरहम के रूप में देखा जा रहा था. हालांकि, सरकार बनाने की प्रक्रिया ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी.
नेशनल कॉन्फ्रेंस नहीं दे रही भाव
42 सीट जीतने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस कांग्रेस को भाव देने के मूड में नहीं है. उमर अब्दुल्ला जब मुख्यमंत्री पद के लिए दावा करने गए, तो अकेले राजभवन पहुंच गए. आम तौर पर गठबंधन की सरकार में सहयोगी पार्टियों के नेताओं को भी ले जाया जाता है.वहीं अब्दुल्ला परिवार की तरफ से न तो कांग्रेस को सरकार में शामिल होने का आमंत्रण दिया गया है और न ही उसकी कवायद शुरू की गई है. कहा जा रहा है कि उमर अब्दुल्ला ने निर्दलीय और छोटी पार्टियों के सहारे जादुई आंकड़े को छू लिया है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस को 4 निर्दलीय, एक आम आदमी पार्टी और एक सीपीएम के विधायकों का समर्थन प्राप्त है. इससे बहुमत के 48 नंबर को उमर आसानी से छू ले रहे हैं.
भाव न देने की एक वजह कैबिनेट की संख्या है. कश्मीर में अधिकतम 9 मंत्री बनाए जा सकते हैं. कांग्रेस की चाहत कम से कम 2 मंत्री पद की है, लेकिन एनसी एक से ज्यादा नहीं देना चाहती है.
कहा जा रहा है कि इसी मोलभाव की वजह से शुक्रवार को कांग्रेस के महासचिव गुलाम अहमद मीर ने एक बयान दिया. मीर ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस हमारी वजह से ही सरकार में आई है.
आंतरिक गुटबाजी भी पार्टी पर हावी
घाटी में कांग्रेस के 6 विधायकों ने जीत हासिल की है. इनमें प्रदेश अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा, राष्ट्रीय महासचिव गुलाम अहमद मीर, पूर्व अध्यक्ष पीरजादा मोहम्मद सईद, इफ्तेखार अहमद, इरफान लोन और निजामुद्दीन भट्ट का नाम शामिल हैं.गुलाम अहमद मीर और पीरजादा मोहम्मद सईद मंत्री और विधायक दल के नेता के बड़े दावेदार हैं. दोनों पहले की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. वहीं तारिक हामिद कर्रा अपने लोगों को यह पद दिलाने की कवायद में जुटे हैं. फाइनल फैसला लेने का जिम्मा कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ा गया है. हालांकि, यह पार्टी के लिए आसान नहीं है.
जम्मू रीजन में बुरी तरह हारी कांग्रेस
जम्मू कश्मीर चुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार जम्मू रीजन में ही उतारे थे, लेकिन 37 में सिर्फ एक सीट पर पार्टी जीत पाई. जम्मू रीजन में विधानसभा की 43 सीटें हैं. जम्मू रीजन में खराब परफॉर्मेंस की वजह से कांग्रेस को घाटी के इतिहास में सबसे बड़ी हार मिली है.
2014 में कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली थी, जो अब घटकर 6 पर पहुंच गई है. घाटी में पार्टी के दिग्गज चौधरी लाल सिंह, रमन भल्ला, तारा चंद, विकार रसूल वानी चुनाव हार गए हैं. जम्मू कश्मीर में पार्टी के वोट प्रतिशत में भी गिरावट हुई है. यहां पार्टी को पिछले चुनाव में 18 प्रतिशत वोट मिले थे, जो अब घटकर 12 प्रतिशत पर पहुंच गई है.