पंद्रहवां पुण्य दिवस : गो.वा.पं.श्री मदनलाल जी जोशी शास्त्री

आदरांजलि
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अविस्मरणीय है उनकी संस्कृत शिक्षक से अंतरराष्ट्रीय भागवताचार्य होने तक की भगवदीय यात्रा
– ब्रजेश जोशी
वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक मंदसौर
मैं प्रभु का चीर ऋणी हूं। मुझे ऐसे पिता की संतान होने का गौरव दिया। वे मेरे पिता थे साथ ही ज्ञान के देवता थे। उच्च कोटि की विद्वता और संस्कृत का गूढ़ ज्ञान उनके व्यक्तित्व को अलंकृत किए हुए था । मस्तक पर चन्दन.. चोटी धोती कुर्ता पहना उनका विद्वता के ओज से परिपूर्ण व्यक्तित्व गोलोकवास के 15 वर्षों के बाद भी नगरवासी नहीं भूले हैं। उन्हें याद किया जाता है उन अनगिनत नगरों में जहां आपके मुखारविंद से श्रीमद् भागवत की वाणी गूंजी है। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर मंदसौर का गौरव बढ़ाने का अवसर मिला। संस्कृत शिक्षक से लेकर अंतराष्ट्रीय भागवताचार्य
तक की उनकी भगदवीय यात्रा अविस्मरणीय है। भागवत प्रवक्ता होना उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा पहलु था। आपका बहुआयामी व्यक्तित्व केवल यहीं तक सीमित नहीं था आप हिन्दी संस्कृत के कवि थे। विद्वान साहित्यकार थे साहित्यिक मंचों
पर भी उनकी वक्तृत्व कला श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी। उनके समय के कवि सम्मेलनों में श्रोताओं की खास मांग रहती थी कि उनके द्वारा रचित गीत “लागे मने म्हारो मालवो प्यारो..”! 1987 में मंदसौर में आपके नेतृत्व में हिंदी साहित्य सम्मेलन का राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ जिसमें देश के प्रतिष्ठित कवि पद्मश्री विष्णु प्रभाकर, डा.रघुवीर सिंह रामनारायण उपाध्याय,मायाराम सुरजन बालकवि बैरागी, सरोज कुमार, भगवत रावत जैसे साहित्य साधक भी मंदसौर आए। सन 2000 में जब केंद्र में सुंदरलाल पटवा ग्रामीण विकास मंत्री थे तब पंडित जोशी जी को
केंद्रीय हिन्दी सलाह कार समिति में सदस्य मनोनित किया गया।
संस्कृत श्लोकों की रचना वे चलते उठते बैठते कर देते थे। देश के शीर्षस्थ धर्माचार्य गण ,पूज्य शंकराचार्य और हिन्दी संस्कृत के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों साहित्यकारों से उनका सीधा संपर्क था। पूर्व कलेक्टर मनोज कुमार श्रीवास्तव उनकी विद्वता से बड़े प्रभावित थे। वे जहां भी शासकीय दायित्व में रहे वहां के आयोजनों में जोशीजी को प्रवचन या व्याख्यान के लिए आमंत्रित करते। मध्य प्रदेश की वर्तमान मुख्य सचिव वीरा राणा भी उनकी विद्वता से बहुत प्रभावित थी। मंदसौर पोस्टिंग के दौरान वे धर्म चर्चा के लिए उनके भगवत कृपा निवास पर भी आईं। स्वतंत्रता के पहले शासकीय सेवा में आने के पूर्व जोशी जी ने पत्रकारिता भी की।
उनके लिखे आलेखों को और पत्रों को आज भी कईयों ने सहेज रखा है।
आपके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी
विशेषता यह थी कि वे जितने विद्वान श्रीमद् भागवत के थे उनकी उतनी ही मर्मग्यता पुष्टि मार्ग और जैन दर्शन में भी थी।
पुष्टिमार्गीय आचार्यों और जैन आचार्यों ने उनका सदैव सम्मान किया। आपने 100 से अधिक पूज्य जैन साधु साध्वी जी को संस्कृत का अध्यापन कार्य कराया। जिनमें राष्ट्रीय संत पूज्य श्री जयंत सेन विजय सूरीश्वर जी महाराज सा. पू जयानंद मुनिजी
प्रवर्तिनी पू चंद्रप्रभा श्रीजी म.सा.
मणि प्रभा श्री जी महाराज सा भी हैं। मोहन खेड़ा के पूज्य आचार्य यतींद्र विजय सूरीश्वर जी म.सा. का आपको सानिध्य मिला । पुष्टिमार्ग के श्री मद वल्लभ कुल परंपरा के आचार्य मथुरेश्वर जी महाराज पू प्रथमेश जी महाराज इन्दिरा बेटी जी आपकी
विद्वता के अनुरागी थे और अनेकों प्रसंगों पर आपको प्रवचनों के लिए आमंत्रित किया।
यूरोप और अमेरिका के 18 देशों की आपने यात्रा की। देश में 600 से अधिक नगरों शहरों और महानगरों में आपकी वाणी से श्रीमद् भागवत कथा के बड़े भव्य आयोजन हुए हैं। नागपुर की कथा के दौरान विश्व विख्यात कवि कुलपति डॉ शिव मंगल सिंह सुमन भी प्रवास पर थे उन्हें जानकारी मिली तो समाचार पत्र में जानकारी मिलने पर वे भी कथा श्रवण करने गए और श्रोताओं के संग नीचे पांडाल में ही बैठे। जलगांव की कथा में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा उनकी कथा आयोजन में शामिल हुए। जबलपुर में सेठ गोविंद दास जी के महल और सीतामऊ स्टेट के महाराज कुमार विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रघुवीर सिंह जी के राज भवन में भी आपने कथा व्यास पीठ पर बिराज कर कथा प्रवचन किए।भोपाल में तत्कालीन मंत्री श्याम सुंदर पाटीदार ने भी उनकी वाणी में कथा श्रवण की। नीमच में पूर्व सांसद व प्रख्यात कवि बाल कवि बालकवि बैरागी ने और मोरवन में तत्कालीन केबिनेट मंत्री घनश्याम पाटीदार ने उनकी कथा के आयोजन कराए।
इतने बहुआयामी और विद्वान होने पर भी आप एक सामान्य और सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।