त्याग का मार्ग बहुत कठिन होता है – स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती

मन्दसौर। श्री केशव सत्संग भवन खानपुरा मंदसौर पर दिव्य चातुर्मास पूज्यपाद 1008 स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ऋषिकेश के सानिध्य में चल रहा है। स्वामी जी द्वारा प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 10 बजे तक श्रीमद् भागवद् महापुराण के एकादश स्कन्द का का वाचन किया जा रहा है।
सोमवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए स्वामी श्री आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ने कहा कि सन्यासी जीवन बहुत कठिन होता है मन पर नियंत्रण रख पाना हर किसी के बस में नहीं होता है। त्याग, तप करना सरल नहीं है जिसने अपने मन पर काबू कर लिया जिसने मेरा मेरा छोड दिया वहीं व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। आपने बताया कि मन को स्थिर रख कर प्रभु भक्ति में लगाना कठिन है लेकिन जिसने यह कर लिया उसके लिए भागवत कृपा प्राप्त करना भी आसान हो जाता है। लेकिन सबसे बडी समस्या यह है कि हम मेरा मेरा करते है और यही मेरा परिवार, मेरा मकान, मेरा शरीर यही आत्म कल्याण की राह में बडी समस्या खडी करता है इसलिए आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढने के लिए सबसे पहले त्याग तप करों और मेरा छोडो यह सोचों की मेरा कुछ नहीं है क्योंकि यह शरीर भी हमारा नहीं है प्रभु ने यह शरीर भी हमें जीवन जीने के लिए दिया है यह एक साधन मात्र है।
आपने बताया कि हम सांसरिक जीवन में इस कदर फंस जाते है कि ईश्वर से भी ज्यादा अपने शरीर से प्रेम करने लग जाते है और जब यह छूटता है तो पीडा होती है इसलिए अपने शरीर से ज्यादा लगाव नहीं रखते हुए मन को नियंत्रित कर प्रभु भक्ति में लगाकर आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें। स्वामी जी ने बताया कि भगवान ने एक पैर, दो पैर, तीन पैर, चार पैर जिसके कोई पैर नहीं सभी जीव भगवान ने बनायें है लेकिन शास्त्रों के अनुसार भगवान को सबसे प्रिय मानव है क्योंकि मानव की एक ऐसा जीव है जो प्रभु भक्ति कर सकता है इसलिए हमें भी भगवान की ओर कृतज्ञ रहना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में भगवान की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरित किया गया। इस अवसर पर जगदीशचन्द्र सेठिया, कारूलाल सोनी, आर सी पंवार, मदनलाल देवडा, प्रवीण देवडा, जगदीश गर्ग , पं शिवनारायण शर्मा, घनश्याम भावसार, दिनेश खत्री, रामचंद्र कोकन्दा, राधेश्याम गर्ग, सी एस निगम, कन्हैयालाल रायसिंघानी, घनश्याम सोनी, भगवती लाल पिलौदिया, जगदीश भावसार, महेश गेहलोद सहित बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे।