किसी को अच्छा देंगे तो वह हमें भी अच्छा देगा,हम जैसा हादना करते हैं सामने वाले भी हमको ऐसे ही हादता है- पं श्री शास्त्री जी
सीतामऊ। सात दिवस से श्रीमद् भागवत कथा में पंडित भीमाशंकर जी शर्मा शास्त्री ने कथा के माध्यम से परिवार समाज राष्ट्र के प्रति किस प्रकार से अपना व्यवहार समर्पण होना चाहिए आदि पहलुओं पर कथा के प्रसंगों तथा विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से उपस्थित भक्त जनों को विस्तार से कथा का ज्ञानामृत पान कराया।
पंडित भीमाशंकर जी शास्त्री ने श्रीमद् भागवत कथा विश्राम के सप्तम दिवस भगवान श्री कृष्ण सुदामा मित्रता का प्रसंग तथा राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा का श्रवण करते हुए कहा कि सुदामा रोज मंदिर जाते पर वे भगवान से कुछ नहीं मानते पर आज हम जब भी मंदिर जाते हैं तो मांगते ही रहते हैं। मांगने के बजाय भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि भगवान आपके आशीर्वाद से आज का दिन अच्छा निकला मैं और मेरा परिवार से कुशल है तेरा धन्यवाद मुझसे दिन भर मे जो भी गलती हुई उसे क्षमा करना। पंडित श्री शास्त्री जी ने कहा कि हमेशा क्षमा मांगने और क्षमा करने वाला बनना चाहिए संसार का सबसे बड़ा दुखी व्यक्ति वह है जिसकी संतान सामने हो जाती है अपने बच्चों को पढ़ा लिखाने के साथ संस्कार जरूर दीजिए। संस्कार हिन परिवार पशु कि तरह होते हैं बात बात में झगड़े पर उतारू हो जाते हैं।जिस घर में झगड़े होते वहा लक्ष्मी नहीं रहती है।
श्री शास्त्री जी ने वृद्ध जनों के बिना पूछे कोई कार्य नहीं करने को लेकर कहा कि जिस सभा या किसी भी धार्मिक सामाजिक पारिवारिक कार्यक्रमों के निर्णय में वृद्धि नहीं होते तो वह सभा कार्यक्रम सफल नहीं होते हैं। परिवार के बूढ़े लोगों का बहुत बड़ा अनुभव होता है और उनका अनुभव भी हमें मुसीबत से दूर कर देता है। श्री शास्त्री जी ने कहा कि हर सफल रहने वाले व्यक्ति प्रसन्न रहे ना रहे पर प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति सफल जरूर हो जाता है जो परिश्रम करता है जो धूप में निकलता है उसी की परछाई बनती हैं। श्री शास्त्री जी ने कहा कि घर में धन रुपया जमा करने वाला कृपण उसका वह उपयोग नहीं कर सकता है। पर भक्ति ऐसा धन है जो सांवरे के पास बैक में जमा कर दीजिए कभी खत्म नहीं होगा और सभी सदैव आपको प्रसन्न रहने का आशीर्वाद मिलता रहेगा।
श्री शास्त्री जी ने कहा कि केवल दान करने से भगवान का आशीर्वाद उसको मिले यह तय नहीं है कर्ण सवा मन सोना दान प्रतिदिन दान करता था पर अभिमन्यु के वध में वह भी शामिल था और अभिमन्यु ने मरते समय जल मांगा फिर भी नहीं पिलाया इसलिए दान दिया पुण्य शून्य हुआ और मरना पड़ा। शास्त्री जी ने कहा कि जो व्यक्ति मरते समय अपनी इच्छा पानी मांगे और यथाशक्ति एवं उसकी जो मदद कर सके पानी पिला सके तो दुश्मन भी हो उसको भी पानी जरूर पिलाना चाहिए।
पं श्री शास्त्री जी ने कहा कि सुदामा जी और उनके परिवार इतना गरीब था कि हमारे यहां व्हाट्सएप में 24 एकादशी होती है पर उनके घर में एकाद दिन छोड़कर सभी दिन एकादशी होती थी। वह दरिद्र नहीं थे जो मेहनत करते थे और उससे मिलने उसी से गुजारा करते थे वे स्वाभिमानी थे उन्होंने कभी किसी से नहीं मांगा। पंडित श्री शास्त्री जी ने कथा के प्रसंग में आगे श्रवण करते कहा कि एक दिन भगवान सो रहे हो और अपने मित्र सुदामा को याद कर उनके जीवन से दुखी हो रहे हैं रुक्मणी भगवान से पूछते कि पति आप पैसा कौन सा सपना देख रहे हैं हो जिसमें आपको रोना पड़ रहा है। कथा में भगवान जागते हुए सुदामा की गरीबी का ध्यान कर रहे हैं और अपने मित्र कि गरीबी पर आंसू टपक रहे हैं।
श्री शास्त्री जी ने कहा कि सपने तो वह होते हैं जो सोने के बाद नहीं सोने ही नहीं देते हैं वह सपने होते हैं। पं श्री शास्त्री ने रीति रिवाज में दी जाने वाली कपड़े आदि प्रथा को लेकर कहा कि जीवन में किसी को कुछ देना है तो अच्छा देंगे तो वह अच्छा हमें भी देगा। हम जैसा हादना साधना करते हैं सामने वाले भी हमको ऐसे ही हादता है ऐसे ही हम भगवान की जैसी भक्ति साधना करते हैं भगवान सांवरे आपको ऐसा समय पर साधने आता है।
पं श्री शास्त्री जी ने भगवान श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता का प्रसंग श्रवण करते हुए कहा की मित्रता कई प्रकार से होती है किसी की विचारों से किसी के व्यसनों से किसी के व्यापार से मित्रता हो जाती है पर जिनकी लक्ष्मीपति से मित्रता है उसको कोई संकट नहीं होता है। भगवान श्री कृष्णा अपने मित्र को याद करते हुए द्वारिका से चिट्ठी भेजने हैं चिट्ठी सुदामा को मिली पड़ी तो उसने द्वारका मिलने बुलाया गया चिट्ठी पड़ने पर पत्नी सुशीला ने कहा कि इतने बड़े राजा और आपके मित्र जिन्होंने बुलाया जाना चाहिए पर सुदामा स्वाभिमान थे उन्होंने मना कर दिया पर पत्नी के बार-बार कहने पर सुदामा मित्र से मिलने पत्नी के दिए हुए चार मुट्ठी चांवल पोटली कि लेकर द्वारिका की ओर निकल पड़ते हैं। द्वारका पहुंचने पर भगवान श्री कृष्णा उनका भाव विभोर होकर स्वागत करते हैं और उनको सुखी संपन्न था का वरदान प्रदान कर सुख संपन्न करते हैं।पं श्री शास्त्री जी ने पुराने वृद्धि एवं मालवा के अनुभवों को लेकर कहा कि पहले वृद्धि लोग पश्चिम की हवा चलती तो बताते की कुवे में पानी उड़ जाता है और अधिक दिन तक हवा चले तो बरसात में पानी चला जाता है ऐसे ही पश्चिमी संस्कृति से हमारे संस्कार उड़ रहे हैं, आजकल लड़के केक काटकर फूंक मार कर जन्मदिन मना रहे हैं जो गलत हैं। जन्मदिवस पर अपने इष्ट को याद करें उनका एवं परिवार के बढ़े को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करें तथा उस दिन अपने आप को गौ सेवा दीन दुखियों की सेवा में अपना दिन समर्पित करें।
पंडित श्री शास्त्री जी ने उपस्थित वह भक्तों को को अमृत सेवा समिति द्वारा बनाए गए गोबर से मूर्ति धूपबत्ती मंजन हवन सामग्री गौ अमृत के सुरक्षा शैंपू आदि के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि आप इसको खरीदें इससे जो आए होगी वह आए गौशाला में लगाई जाएगी आपके खरीदने से आपको समान प्राप्त हो जाएगा वहीं आपकी ओर से गुप्त दान भी गौशाला को मिल जाएगा।पं श्री शास्त्री जी ने कहा कि वर्तमान में जो प्लास्टर ऑफ पेरिस की गणेश जी कि मूर्ति लाकर लगाई जा रही है वह हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं जल में विसर्जन करने से कहीं जल जीव की मृत्यु हो जाती है। वहीं यदि गोबर से बनी गणेश जी की मूर्ति हम खरीद कर उसकी आराधना के पश्चात प्रभावित करते हैं तो वह मूर्ति पार्थिव गणेश की मूर्ति कहलाती है और उसकी पूर्ण लाभ मिलता है।
कथा में पंडित श्री भीमाशंकर जी शास्त्री ने पूर्व सैनिक सीतामऊ सूर्य नगर अफजलपुर , पत्रकार गणों विभिन्न समाज सेवकों जनप्रतिनिधियों श्री हांडिया बाग गौशाला के आधार स्तंभ संचालक गणों वर्तमान गौशाला अध्यक्ष संजय लाल जाट नरेंद्र दुबे संग्राम सिंह राठौड़ डॉक्टर अर्जुन पाटीदार हंसराज पाटीदार सत्यनारायण गुर्जर सहित सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं एवं लघु उत्तरीय धन्यवाद के मंदिरों की पुजारीयों पांचो मंदिर पर कलश स्थापना में सहयोग करता दानदाताओं आदि का व्यास पीठ से स्वागत अभिनंदन किया तथा भक्तों ने गुरुदेव पंडित भीमाशंकर जी शास्त्री का फूल माला बनाकर साल श्रीफल भेंट कर वंदन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कथा विश्रांति के पश्चात बड़ी संख्या में भक्त जनों ने गुरु नाम प्राप्त कर आशीर्वाद प्राप्त किया।