मंदसौरमंदसौर जिला

ज्ञान का अहंकार नहीं करें, समभाव में रहे- योगरूचि विजयजी म.सा.

 
मन्दसौर। मानव जीवन में अहंकार होना स्वाभाविक है लेकिन अहंकार की परिणिति शुभ और अशुभ दोनों हो सकती है। हमें अपने जीवन में अहंकार से बचना चाहिये। जीवन में ज्ञान का अहंकार भी ऐसा ही है यदि हमें ज्ञान का अहंकार हो जाये तो जीवन गुरू के प्रति समर्पण भाव की बजाय वैमनस्यता में भी बदल सकता है। जीवन में जितना हम ज्ञान को प्राप्त करें उतना अच्छा है लेकिन हमें उसके अहंकार से बचना है।
उक्त उद्गार परम पूज्य पन्यास प्रवर श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने आराधना भवन नईआबादी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने मंगलवार को यहां धर्मसभा में जयवीरा पुत्र की महत्ता बताते हुए हरिभद्रसूरिश्वरजी म.सा. के जीवन का दर्शन कराया। आपने कहा कि वे विद्वान थे उन्हें ज्ञान का अहंकार हो गया था उनका अहंकार कैसे समाप्त हुआ तथा वे कैसे जैन संत बने  उसे हम समझने जानने का प्रयास करें। ज्ञान को प्राप्त करने के बाद उसे दूसरों के साथ साझा करे। केवल ज्ञान को प्राप्त करने के बाद अहंकार में न पड़े। आपने कहा कि आत्मा व शरीर अलग अलग है। जैसे हम कपड़े बदलते है हमारी आत्मा भी शरीर बदलती है। इसलिये जीवन में आत्मा व शरीर का भेद समझो। दोनेां को एक नहीं अलग अलग समझो। आपने कहा कि मैं मेरा के चक्कर में मत पड़ो। मैं यह हूॅ और यह कर सकता हूॅ यह विचार ही अहंकार है। जीवन में हमें अहंकार से बचना है।
सम्पत्ति को दान में खर्च करें भोग में नहीं-संत श्री ने कहा सम्पत्ति को व्यय करने के दो मार्ग है दान व भोग। दान का मार्ग जीवन में आत्मसुख देता है लेकिन भोग का मार्ग हमें दुर्गति की ओर अग्रसर करता है। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। धर्मसभा के पश्चात् अशोक कुमार आनंदीलाल छिंगावत परिवार के द्वारा प्रभावना वितरित की गई।
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जैन आगमों का महत्व समझे, उसका स्वाध्याय करें- साध्वी श्री रमणीककुंवरजी
मन्दसौर। जैन आगम जैन धर्म की अमूल्य निधि है। जैन आगमों में ज्ञान का भण्डार भरा है। आगमों को श्रवण करने व उसका स्वाध्याय करने से हमारा आत्म कल्याण हो सकता है। लेकिन हम निरंतर आगमों का स्वाध्याय नहीं करने के कारण ज्ञान रूपी आगम के लाभ से वंचित है। जीवन में हमें आगमों का महत्व समझना चाहिये।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने शास्त्री कॉलोनी स्थित श्री जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में आयोजित धर्मसभा में कहा कि भगवान महावीर ने हमें आगम रूपी जिनवाणी दी। उन्होंने साधु साध्वी, श्रावक श्राविकाओं को जैन धर्म के सभी 45 आगमों का अध्ययन करने की प्रेरणा दी है। यदि हम आगम (जैन शास्त्र) का ज्ञान अर्जित करेंगे तो हमारी आत्मा को परमात्मा के प्रति समर्पित कर पायेंगे और हो सकता है कि हमारी आत्मा भी परमात्मा बन जाये।
धन के पीछे मत भागो, वैराग्य का महत्व समझो- साध्वीजी ने कहा कि विपांक सूत्र में सुधर्मा स्वामी व जम्बु स्वामी का वृतान्त बताते हुए कहा कि जम्बु स्वामी के पास खूब धन था लेकिन उन्होंने वैराग्य के मार्ग को अपनाया। जम्बु स्वामी का जीवन परिचय पड़ेंगे तो हमे ज्ञात होगा कि इतना वैभव धन सम्पत्ति, पत्नियों का भौतिक सुख छोड़कर उन्होनंे वैराग्य को अपनाया उनका जीवन हम सभी के लिये प्रेरणादायी है।
नवकार महामंत्र श्रेष्ठ है- साध्वीजी ने कहा कि नवकार महामंत्र सभी संतों मे श्रेष्ठ है। हम जितनी एकाग्रता व समर्पण भाव से इसका जाप करेंगे उतना इसका जाप हमारे लिये हितकर होगा। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने साध्वीजी की अमृतमयी वाणी का धर्मसभा लिया। साध्वी श्री चंचलाश्रीजी म.सा. ने भी अपने विचार रखे। संचालन पवन जैन पोरवाल ने किया।

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