भक्ति/ आस्थामध्यप्रदेशरायसेन

साल में एक बार माता की गर्दन सीधी हो जाती, जो भक्त गर्दन को सीधी होते देख लेते उसके बिगड़े काम बन जाते

 

मां कंकाली का प्रसिद्ध मंदिर रायसेन जिले के गुदाबाल (गोदवाल ) गांव में स्थित है. माता की यह आकर्षक मूर्ति चमत्कारों के कारण मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश मे प्रसिद्ध है. यहां कंकाली देवी मां की मूर्ति की गर्दन तिरछी है और ये अचानक सीधी हो जाती है. चमत्कार देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं. मंदिर के प्रधान पुजारी भुवनेश्वर भार्गव बताते हैं कि जो भक्त नवरात्रि के दौरान माता की गर्दन को सीधा होते हुए देख लेते हैं, उसके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं. जिसके सौभाग्य होंगे उसको ही माता रानी के ये दर्शन होंगे.

भोपाल मुख्यालय से लगभग 21 किलोमीटर दूर रायसेन जिले के गुदाबाल (गोदवाल )गांव में मां कंकाली का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर मां की गर्दन तिरछी है. माना जाता है कि साल में एक बार माता की गर्दन सीधी हो जाती है. जो भक्त इस तिरछी गर्दन को सीधी होते देख लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है और मनोकामना पूरी हो जाती हैं.

लोगों का मानना है की देवी मंदिर से जुड़ी एक ओर मान्यता हैं, जिसके अनुसार जिन महिलाओं की गोद सूनी होती है, वह श्रृद्धाभाव से यहां गोबर से उल्टे हाथ लगाती हैं और उनकी मनोकामना पूरी हो जाती हैं. मनोकामना पूरी होने पर हाथों के सीधे निशान बना दिए जाते हैं. मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में माता की लगभग 45 डिग्री झुकी गर्दन कुछ पलों के लिए सीधी हो जाती है.

कंकाली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है. मंदिर में मां काली की 20 भुजाओं वाली मूर्ति विराजमान हैं. हरे-भरे जंगलों के बीच यह मां कंकाली का मंदिर आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. भोपाल से दर्शन करने आए आचार्य संजीव कुमार भार्गव ने बताया, “वह यहां पर कई सालों से आ रहे हैं. माता रानी की चमत्कारिक मूर्ति है. मां से जो मांगो वह मिल जाता है. सच्चे मन से जो भक्त श्रद्धा लेकर यहां पर दर्शन करने आता है, उसकी मनोकामना माता रानी पूरी करती हैं.” मंदिर में मन्नत मांगने का भी एक अलग तरीका है. यहां हाथ में गोबर लगाकर उल्टे पंजे का निशान बनाकर मन्नत मांगी जाती है. नवरात्रि में यहां पर भारी मात्रा में श्रद्धालू इकट्ठे होते हैं. यहां दूर-दूर से भक्त मां कंकाली के दर्शन को पहुंचते हैं.

मान्यता है कि खुदाई के दौरान इस मंदिर के बारे में पता चला. मंदिर तकरीबन 1731 के आसपास बना था, लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि यह मंदिर कब अस्तित्व में आया क्योंकि इसका सटीक प्रमाण आज तक नहीं मिला है.

कहा जाता है कि स्थानीय निवासी हरलाल मेडा को मंदिर के बारे में एक सपना आया था. उसके बाद उन्होंने जमीन पर जाकर खुदाई करवाई..तो देवी मां की मूर्ति मिली. इसके बाद मूर्ति के स्थान पर ही देवी मां की मूर्ति स्थापित हो गई..तब से ही मंदिर का विस्तार और मां की पूजा-अर्चना की जा रही है.

इस मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिर परिसर के अंदरूनी हिस्से में 10 हज़ार वर्ग फीट के हॉल में एक भी पिलर नहीं है. यह अपने आप में एक अद्भुत कला का नमूना है.

कहा जाता है कि मंदिर में आकर जो भी भक्त मनोकामना मांगता है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती है. बता दें, देश के कोने-कोने से अपनी मांग पूरी करने के लिए भक्त यहां आते हैं. श्रद्धालु बंधन बांधकर मनोकामना मांगते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद बांधा गया बंधन खोल कर जाते हैं.

मान्यता है कि मां के सामने हाथ फैलाने वाले नि:संतान दम्पतियों की गोद भर जाती है. माता की कृपा से यहां हर कोई हाथ फैला कर आता है, लेकिन झोली भरकर लौटता है. इसके लिए महिलाएं यहां उल्टे हाथ से गोबर लगाती हैं और मनोकामना पूरी होने के बाद सीधे हाथ का निशाना बनाती हैं. मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में हाथों के उल्टे और सीधे निशाना नजर आते हैं.
कंकाली देवी मंदिर में स्थापित माता की गर्दन टेढ़ी है जो केवल दशहरे के दिन सीधी होती है. कहते हैं जो भी भक्त मां की सीधी गर्दन देख लेता है. उसके जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं. बहुत ही भाग्यशाली भक्तों को ही माता की सीधी गर्दन के दर्शन होते हैं. खास तौर पर नवरात्रि के दिनों में मां भवानी के दर्शन करने के लिए पूरे देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं.

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