आध्यात्ममंदसौर जिलाशामगढ़

धर्म धारण करने की वस्तु है दिखावे की नहीं किंतु आजकल उल्टा हो रहा है लोग धर्म दिखाकर पाप कर रहे

धर्म धारण करने की वस्तु है दिखावे की नहीं किंतु आजकल उल्टा हो रहा है लोग धर्म दिखाकर पाप कर रहे

शामगढ़ में चातुर्मास में त्रैमासिक संत श्री दिव्येश राम जी राम के मुखारविंद से सावन माह के पावन अवसर पर शिव पुराण की कथा अनुसार 12ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव महत्व तथा जीव कल्याण के लिए कितना आवश्यक है इसकी चर्चा संत श्री ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग एवं काशी के महत्व के विषय में विस्तृत व्याख्यान दिया l

संत श्री ने कहा शिव पुराण के अनुसार काशी भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी हुई हैl

काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है और काशी में जो अपना शरीर छोड़ता है वह सीधा शिव धाम को जाता है l

काशी विश्वनाथ के चारों ओर पांच पांच कोस तक रहने वाला कोई भी जीव हो और कहीं से भी आया हो यदि अपनी देह त्याग करता है तो 84 लाख के चक्कर से मुक्त हो जाता हैl

संत श्री ने अपने प्रवचन में कहा अपनी कमाई 10% पैसा धार्मिक काम में स्कूल विद्यालय मंदिर मठ गुरुकुल जहां से हमारी संताने हिंदुत्व को समझे l

धर्म धारण करने की वस्तु है दिखावे की नहीं किंतु आजकल उल्टा हो रहा है लोग धर्म दिखाकर पाप कर रहे हैंl

इस प्रकार की धन संपत्ति कोई अर्जित करता है तो वह संपत्ति का भोग नहीं कर सकता बल्कि उसे अर्जित करने में जो पाप किया है वह उसे भुगतना पड़ेगा l

एक कंजूस सेठ का बड़ा सटीक दृष्टांत दिया है और कहां पैसा बहुत था किंतु उनकी प्रवृत्ति बहुत कंजूस थीl

देव योग से उस गांव में सत्संग का आयोजन गांव वासियों ने किया सत्संग चला रहा सेठ जी भी रोजसुनने आते थे कथा समापन से एक दिन पहले सबको कहा गया कि कल पोती पूजन होगा जिसकी जितनी श्रद्धा हो वह पूजन में दक्षिणा के रूप में समर्पित करें l

दूसरे दिन सेठ जी पछताते हुए सत्संग स्थल पर आए और बैठ गए धीरे-धीरे लोग पोथी पूजन पर जाने लगे सेठ जी भी घर से ₹1 लाए थे जिसे हाथ में पड़कर बैठे रहे अचानक वहां बैठे हुए लोगों की नजर पड़ी और सेठ जी को कहा उठो उठो

सेठ जी उठे पूजन किया और जैसे ही मुट्ठी खोली पसीने के कारण उनका हाथ और भर रुपया गीला हो गया सेठ जी ने सोचा बेचारा यह रुपया भी रो रहा है मुझे छोड़ना नहीं चाहता तो व्यक्ति लोभ और मो ह के कारण परमात्मा के समीप नहीं जा सकताl

संत श्री का यह त्रैमासिक सत्संग सदप्रेरणा के नाम से हो रहा है रोज नाना प्रकार के प्रसंग दृष्टांत सुनने का अवसर हम सबको मिल रहा है l

संत श्री का कहना है धर्म खतरे में है तो निश्चित मानो उस धर्म के मानने वाले खतरे में है क्योंकि धर्म ही नहीं रहेगा तो फिर व्यक्ति क्या करेगाl

अन्य धर्म की अपेक्षा हिंदू धर्म को मानने वाले धीरे-धीरे कम हो रहे हैं यायु कहा जाए जिस प्रकार से अन्य धर्म की संख्या आजादी के बाद इस देश में 5 गुना 6 गुना हो गई है किंतु हिंदुओं की आबादी लगभग तीन गुना बड़ी है चिंता का विषय है की हम सक्षम होते हुए संस्कारवान होते हुए भौतिक साधनों से संपन्न होकर जीवन जीने वाले हिंदुओं की संख्या बहुत कम बड़ी है हमारी सोच भी 100 साल आगे की रहती है किंतु अन्य धर्म के लोग इस विषय में ज्यादा चिंता नहीं करते बहुत से धर्म वाले तो शाम को क्या कहेंगे यह भी नहीं होगा तो भी संताने ज्यादा पैदा करेंगेl

वह जनसंख्या बढ़ा कर देश पर राज्य करना चाहते हैं और हम 100 साल आगे तक की व्यवस्था में कम बच्चे पैदा करते हैं धीरे-धीरे यही क्रम चलता रहा तो एक दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा कि भारत में भी कभी सनातन धर्म था हमारे आगे आने वाली पीढिया सब भूल जाएगी कौन राम कौन कृष्णा सब इतिहास के पन्नों में जब हिंदू नहीं होंगे, दर्ज होगाl

इस प्रकार से समाज सुधार तथा सामाजिक जन जागृति कैसे हो किस प्रकार से हम संगठित होकर हमारे धर्म को हमारे धार्मिक स्थान को हमारे ग्रंथो को संभाल कर रख सके l

आज हमें जागृत होना पड़ेगा हमारी पीडिया को हम किस प्रकार से हमारे पूर्वजों द्वारा हमारे ऋषियों मुनियों द्वारा सनातनी परंपराओं को त्याग बलिदान से और प्राणों से आहुति देकर जिंदा रखा हमारे लिए किंतु आज हम धर्म के प्रति कितने समर्पित है अपने मन में विचार करनाl

और भी प्रसंग है किंतु पूरे प्रवचन को विस्तृत रूप से डाला जाए तो जितना समय संत श्री को प्रवचन देने में लगा उतना ही समय आपको पढ़ने में लगेगाl

वैसे भी धार्मिक काम करने में व्यक्ति का मन नहीं लगता है दिन भर इधर-उधर भटकता रहेगा किंतु जब ईश्वर का नाम लेने का समय आएगा तो एक घंटा भी उसकी मन भगवान में नहीं लगता हैl

ठीक इसके विपरीत पिकनिक पार्टी हो मूवी हो घूमने फिर ना हो तो कितना भी समय हो उनको मालूम ही नहीं पड़ता है अर्थात हम धर्म के प्रति को वफा दार र नहीं हैl

ईश्वर के प्रति धर्म के प्रति जब तक हम ईमानदारी से पूर्ण रूप से समर्पित नहीं होंगे निश्चित मानो तब तक हमारा धर्म नहीं बच सकता।

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