कांग्रेस को पुन:जीवित कर सकते हैं कांग्रेसी दिग्गज
कमलनाथ, अशोक गहलोत, हुड्डा, डीके शिवकुमार जैसे बड़े नेताओं की बनाए जाए कोर टीम
क्या कांग्रेस आलाकमान की आंखों में बंधी पट्टी के कारण जल्द ही देश में होगा दूसरे मुख्य विपक्षी दल का गठन?
कांग्रेस पार्टी में अब आलाकमान की जगह पोलित ब्यूरो जैसे कल्चर ने ले लिया है स्थान, क्या इसी से हो रहा है पार्टी का बेड़ा गर्क?
पार्टी को कम्युनिस्ट नेताओं के गिरोह को समाप्त कर अनुभवी नेताओं का समूह बनाने की आवश्यकता, नेहरु, महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी के विचारों को समाप्त करने की पुरजोर कोशिश में हैं राहुल गांधी के सलाहकार
क्या देश को चाहिए अब एक नई कांग्रेस?
विजया पाठक
भोपाल।देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टियों में शामिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिये पिछले दो साल ठीक नहीं रहे। इन दो सालों में पार्टी ने सिर्फ अपनी सामाजिक साख को खोया है बल्कि खुद कई दिग्गज नेता और कार्यकर्ताओं का वर्षों पुराना भरोसा भी पार्टी खोती चली जा रही है। इस बात को सीधे तौर पर ऐसे भी समझा जा सकता है कि जबसे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी छोड़ी है तभी से कांग्रेस पार्टी का पतन होना आरंभ हो गया। मुझे बहुत अच्छे से याद आता है जब सोनिया गांधी इस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहीं होती थी तो पार्टी नेताओं में जबरदस्त एकात्म का भाव देखने को मिलता था। सभी पार्टी हित को साधते हुए हमेशा चलते थे, किसी में आपसी मनभेद और मतभेद की शिकायतें नहीं होती थी। लेकिन धीरे-धीरे अब पार्टी नेताओं के बीच में मनभेद, मतभेद और आपसी मनमुटाव खुलकर सामने आने लगा है। जानकारों की मानें तो अगर कांग्रेस पार्टी ने आने वाले एक दो सालों में खुद को नहीं संभाला तो वह दिन दूर नहीं जब देश में कांग्रेस के अलावा कोई दूसरी राजनैतिक पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो जायेगी।
कम्युनिष्ठ विचारधारा वाले नेताओं को छोड़े बगैर कांग्रेस खड़ी नहीं हो सकती
आज से कोई दस साल पहले कोई नहीं सोच सकता था कि कांग्रेस पार्टी की दशा यह होगी। मैंने पहले भी लिखा था कि जब एक बार मैं दिल्ली स्थित कांग्रेस दफ्तर में स्टोरी कवर कर रही थी तब एक बड़े नेता ने बातचीत में कहा था कि कांग्रेस पार्टी कभी खत्म नहीं हो सकती, जैसे गंगा नदी कितनी भी प्रदूषित हो उसकी जनता पूजा करेगी और वो हमेशा ही अमर रहेगी वैसी ही स्थिति कांग्रेस पार्टी की रहेगी। बहरहाल आज वो नेता ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण कांग्रेस पार्टी में आलाकमान कॉन्सेप्ट खत्म कर ऑफिस कांसेप्ट आ गया है। शायद अब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया में कॉमरेड नहीं है जितने आज कांग्रेस में और डिसीजन मेकिंग भी यहीं कर रहे हैं। लगातार पार्टी के लिए सब झोंकने वाले नेताओं की उपेक्षा और अपमान में यह कोटरी कोई मौका नहीं छोड़ती है। शायद कांग्रेस के दिग्गजों को हाशिए पर बिठा दिया गया है। जयराम नरेश और ऑफिस चलाने वाले यह कम्युनिस्ट-कांग्रेसी जनता से जुड़े नहीं हैं और अपने दम पर शायद पार्षद का चुनाव भी जीत न सकें। शायद इस चुनाव के बाद कांग्रेस की कुछ सीटें बढ़ें पर जनता (जैसे की कम वोटिंग) से देखने को मिला, शायद मोदी और भाजपा को लेकर वो उत्साह नहीं है, पर उनके सामने कोई चारा भी नहीं है। कांग्रेस के ज्यादातर क्षेत्रीय क्षत्रप अपनी घनघोर अपमान-उपेक्षा-हाशिए पर बिठाने के कारण या तो पार्टी छोड़ रहे हैं या बेबस होकर सब कुछ देख रहे हैं। अब भी समय है, कांग्रेस का थिंक टैंक सोचे-समझे और वापस से कांग्रेस को जीवित करे। क्योंकि लोकतंत्र के लिए भाजपा के साथ कांग्रेस और अन्य दल भी महत्वपूर्ण हैं और उनको ताकतवर बना रहना चाहिए। शक्ति का संतुलन होना ही चाहिए।
कमलनाथ जैसे समर्पित नेताओं को मिलनी चाहिए बड़ी जिम्मेदारी
आज भले ही कांग्रेस का दामन छोड़ने वाले नेताओं की संख्या बहुत बड़ी हो गई हैं लेकिन आज भी पार्टी में समर्पित भाव से कार्य करने वाले नेताओं की कमी नहीं है। कमलनाथ, अशोक गहलोत, डीके शिवकुमार, हुडडा, दिग्विजय सिंह, चरणदास महंत जैसे नेता आज भी पार्टी के प्रति पूरी निष्ठा और ईमानदारी से जुड़े हुए हैं और पार्टी को दोबारा खड़ा करने में लगे हैं। यदि इन जैसे नेताओं को पार्टी हाईकमान से बड़ी जिम्मेदारी देती है तो यह नेता अपनी काबिलियत के बल पर पार्टी को बड़ा बना सकते हैं। इन नेताओं की काबिलियत हम वर्षों से देखते आ रहे हैं। यदि छत्तीसगढ़ की बात करें तो 10 वर्ष बाद छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी करने वाली पार्टी को इस बार जनता ने राज्य से ही बाहर निकाल फेंका। क्योंकि वहां पर भूपेश बघेल जैसे भ्रष्टाचारी नेताओं के हाथ में कमान सौंप दी थी। भूपेश के अत्याचार और भय के कारण प्रदेश की जनता ने कांग्रेस से दूरी बना ली। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश की करें तो कमलनाथ के नेतृत्व में 18 साल बाद पार्टी राज्य में सरकार बनाने में कामयाब तो हुई लेकिन राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के आपसी मतभेदों ने कमलनाथ की जनहितैषी सरकार को पांच साल तक जनता की सेवा करने का अवसर नहीं दिया और उन्हें बीच में ही अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। जबकि पार्टी हाईकमान चाहता तो प्रदेश में कमलनाथ की सरकार चलती रहती। ऐसा ही हाल कुछ राजस्थान का है। खुद अशोक गेहलोत और सचिन पायलट के बीच की तनातनी किसी से छुपी नहीं जिसका खामियाजा राज्य में विकास की गति पूरी तरह ठप पड़ गई और भ्रष्टाचार के पुलिंदों का खुलना आरंभ हो गया। इन प्रदेशों में यदि कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई है तो कहीं न कहीं पार्टी हाईकमान को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। क्योंकि जनता ने तो कांग्रेस पर भरोसा जताया था लेकिन पार्टी खुद को नहीं संभाल सकी।
आखिर क्यों होता जा रहा है पार्टी का पतन?
राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस पार्टी के इस पतन की सबसे बड़ी जिम्मेदार खुद पार्टी आलाकमान है। जिस दिन से सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष का दारोमदार सौंपा है, राहुल गांधी ने इस पद की गंभीरता को समझे बगैर निर्णय लेना आरंभ किये। आज हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं जिनको याद करके हम पार्टी आलाकमान के बचकाने निर्णयों की ओर ध्यान इंगित कर सकते हैं। बात चाहे छत्तीसगढ़ की हो या फिर मध्यप्रदेश और राजस्थान की। तीनों ही राज्यों में जिस ढंग से वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी आलाकमान ने नासमझदारी वाले निर्णय लिये थे, उनके परिणाम आज हम सभी के सामने हैं। तीनों ही प्रदेशों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है।
एक के बाद एक नेता छोड़ते चले गये कांग्रेस का साथ
एक कहावत है कि राजा के बेटे को 56 भोग से तैयार सजी हुई थाली मिल जाती है तो वह इस बात को समझने में सफल नहीं होता कि उसे कितनी भूख है। ऐसा ही हाल हुआ है कुछ कांग्रेस आलाकमान का जहां सोनिया गांधी के बाद पार्टी का नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी को समझ ही नहीं आया कि पार्टी का संचालन, नेताओं की एकजुटता और कार्यकर्ताओं का समर्पण किसी भी राजनैतिक पार्टी के लिय़े कितना जरूरी है। यही कारण है कि राहुल गांधी के हल्के रवैये के कारण पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने बतौर अपने भविष्य की चिंता किये पार्टी से किनारा कर लिया। पार्टी से बाहर होने वाले ऐसे एक दो नहीं बल्कि 15 से अधिक वरिष्ठ नेता हैं जिन्होंने अपने आत्म सम्मान को ठेस लगने के बाद पार्टी से दूर रहना ही उचित समझा। इसमें कपिल सिब्बल से लेकर गुलाम नबी आजाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राधिका खेड़ा, संजय सिंह, मिलिंद देवड़ा, गौरव वल्लभ, अमरिंदर सिंह, रीता बहुगुणा, अनिल एंटोनी, अशोक चव्हाण, जितिन प्रसाद सहित कई नेता शामिल हैं।
सिर्फ कम्युनिस्टों के भरोसे चल रहा आलाकमान
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे दिग्गज नेताओं के विचारों को लेकर आगे बढ़ रही कांग्रेस पार्टी आज चंद कम्युनिस्ट प्रवृत्ति के नेताओं से घिर गई है। आलम यह है कि इन नेताओं ने अपना एक गुट बनाकर राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के ऊपर ऐसा जादू किया है कि अब पार्टी आलाकमान उन्हें ही अपना सबसे बड़ा सलाहकार और चिंतक मानने लगा है। पार्टी एजेंडे का मुद्दा हो या फिर किसी राज्य में चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे जैसा महत्वपूर्ण फैसला आज आलाकमान इन्हें कम्युनिस्ट नेताओं की सलाह पर करता है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की चंडाल चौकड़ी ने पूरे राज्य का बंटाधार किया है उसी तरह से राहुल गांधी के करीबी नेताओं में शामिल जयराम रमेश, अजय माकन, केसी वेणुगोपाल, एवी सुब्रमण्यम, पवन खेड़ा शामिल हैं। वे जिस ढंग से राहुल गांधी को घुमाना चाह रहे हैं उसी ढंग से आलाकमान निर्णय ले रहा है। खास बात यह कि यह वही नेता हैं जिन्होंने खुद अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही जीत दर्ज की, वे आज अनुभवी राजनेताओं के भविष्य व उनकी कार्यशैली की समीक्षा करते हैं।
2024 तो गया 2029 पर ही करें फोकस
लोकसभा चुनाव के पांच चरणों का मतहान हो गया है। मतदान के बाद अभी तक भाजपा पार्टी की ओर से जिस ढंग से प्रतिक्रिया आई है वह समझ आता है कि 04 जून को भाजपा ही सरकार बनाने जा रही है। क्योंकि इस चुनाव में न तो कांग्रेस पार्टी ने कोई सटीक रणनीति पर काम किया और नहीं ब्रांडिंग में। जबकि उसके उलट भारतीय जनता पार्टी ने किस रणनीति के तहत चुनाव अभियान चलाया है उसके परिणाम हम सभी के सामने हैं। यदि लोकसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन सत्ता में आता है तो यह पार्टी की नहीं बल्कि व्यक्ति की जीत होगी। मेरा पार्टी आलाकमान से यही आग्रह है कि वह वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का एक समूह गठित कर उन्हें वर्ष 2029 के चुनाव की योजना पर कार्य करने का अभी से निर्देश दें ताकि आने वाले चुनावों तक सभी अनुभवी नेता एकजुट होकर रणनीति तैयार करें और कांग्रेस पार्टी को देश में एक नये सिरे से जनता के सामने लाकर खड़ा करें।