चेक के अनादरण मामले में एक वर्ष का सश्रम कारावास व 13 लाख 69 हजार रू. प्रतिकर का आदेश
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बैंक ऋणी द्वारा दिये रुपया वापस नहीं दिये जाने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट महो. प्रथम श्रेणी का महत्वपूर्ण फैसला-
मंदसौर। न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, मंदसौर न्यायाधीश श्री विनोद अहिरवार ने एक चैक अनादरण के मामले में आपराधिक प्रकरण क्रमांक 41/2018 (बैंक ऑफ इंडिया शाखा मंदसौर बनाम निर्मलदास बैरागी आदि) में महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए आरोपी निर्मलदास पिता देवीदास बैरागी निवासी ग्राम लोद तह. व जिला मंदसौर को दोषी मानते हुए उसे एनआई एक्ट की धारा 138 के आरोप में एक वर्ष का सश्रम कारावास एवं अभियुक्त को 13 लाख 69 हजार रुपये प्रतिकर एक माह में फरियादी बैंक ऑफ इंडिया शाखा मंदसौर को देने का भी आदेश दिया गया। प्रतिकर की राशि की अदायगी में व्यतिक्रम किये जाने की दशा में आरोपी को 2 माह का पृथक कारावास अतिरिक्त भुगतना होगा।
प्रकरण की संक्षिप्त जानकारी देते हुए फरियादी बैंक के अभिभाषक नवीन कुमार जैन (कोठारी) ने बताया कि आरोपी निर्मलदास बैरागी, सुरेश, सीताबाई व शकुंतलाबाई द्वारा फरियादी बैंक ऑफ इंडिया शाखा मंदसौर से संयुक्त रूप से केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) ऋण प्राप्त किया था। ऋण की बकाया राशि की अदायगी पेटे दिनांक 07 सितम्बर 2017 को 7 लाख 94 हजार 758 रू. का चेक बैंक को दिया था। उक्त चेक बैंक से डिसऑनर होने पर आरोपीगण फरियादी बैंक ने आदरणीय न्यायालय में अपना परिवाद प्रस्तुत किया था। जिसमें फरियादी व आरोपी द्वारा अपनी साक्ष्य प्रस्तुत की गई थी। जिसके पश्चात् आदरणीय न्यायालय द्वारा उपरोक्त प्रकरण में विधिवत सुनवाई कर फरियादी अभिभाषक नवीन कुमार जैन (कोठारी) के तर्कों व प्रस्तुत साक्ष्यों से सहमत होते हुए व प्रकरण की समस्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए आरोपी निर्मलदास बैरागी को धारा 138 निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट एक्ट का दोषी मानते हुए अभिनिर्णीत किया कि क्षतिपूर्ति स्वरूप चेक राशि 7 लाख 94 हजार 758 रू. एवं उस पर प्रतिकर स्वरूप 9 प्रतिशत की दर से ब्याज सहित कुल 13 लाख 69 हजार रूपये रू. की राशि अदायगी हेतु आरोपी को आदेशित किया गया व एक वर्ष के सश्रम कारावास से भी दंडित किया गया।
साथ ही न्यायालय ने प्रतिपादित किया कि अभियुक्त ने अपने वैधानिक दायित्व को पूरा नहीं किया गया है, इस कारण परिवादी को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी, यदि अभियुक्त को परिवीक्षा अधिनियम का लाभ दिया जाता है तो अभियुक्त को प्रोत्साहन मिलेगा। अतः अपराध की प्रकृति एवं गंभीरता को देखते हुए अभियुक्त को परिवीक्षा अधिनियम 1958 के प्रावधान का लाभ दिया जाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है।
इस प्रकरण में फरियादी की ओर से सफल पैरवी नवीन कुमार जैन (कोठारी) एडवोकेट, ऋषभ कुमार कोठारी एडवोकेट व अमृत कुमार पोरवाल एडवोकेट मंदसौर द्वारा की गई।