आध्यात्ममंदसौरमध्यप्रदेश

पाद (चरण) भक्ति का सर्वश्रेष्ठ आचार्य केवट और अर्चन भक्ति श्रेष्ठ आचार्य है पाण्डवों की माता कुंती- पू. आचार्य श्री रामदयालजी महाराज

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सड़क से संसद तक धार्मिक स्थलों को पर्यटनीय-दर्शनीय ही रहने देना चाहिये

मन्दसौर। स्थानीय धर्मधाम गीता भवन में आयोजित नवधा भक्ति प्रवचन माला के चतुर्थ दिवस चौथी भक्ति पाद अर्थात चरण सेवा और पांचवी भक्ति अर्चनम् पर रामस्नेही सम्प्रदाय के शाहपुरा पीठाधीश्वर एवं धर्मधाम गीता भवन के परम संरक्षक जगद्गुरू पूज्य आचार्य श्री रामदयालजी महाराज ने भगवान की चौथी भक्ति पाद चरण सेवा का विश्व का एक मात्र सर्वश्रेष्ठ आचार्य नाव खेने वाले एक साधारण केवट को बताते हुए रामचरित मानस में उल्लेखित केवट जिसने भगवान राम को वनवास के समय गंगा पार कराया था। उसने किस प्रकार भगवान के कर कमलों को अपने सिर पर रखवाकर और देर तक भगवान के उन चरणों को जिनको प्रक्षालन करने का सौभाग्य मिथिला नरेश महाराजा जनक को मिला था जिन्होनंे चरण धोकर अपनी पुत्री सीता का कन्यादान किया था। जिन चरणों के स्पर्श मात्र से गौतमनारी अहिल्या पत्थर से नारी बन गई थी। महान ऋषि-महर्षि जिनके चरणों के दर्शन के लिए घोर तपस्या करते थे उन्हीं चरणों की सेवा केवट को सहज प्राप्त हो गई। पाद (चरण) सेवा-भक्ति का केवट जैसा विलक्षण उदाहरण धरती पर कहीं नहीं मिलेगा। गंगा पार करने के पश्चात् भगवान उतराई-मजदूरी में रत्न जड़ित बहुमूल्य अंगूठी देने लगे तो केवट जो बिना पढ़ा-लिखा गरीब होने के बावजूद कुछ नहीं लेते हुए जिन चरणों को धोकर अपनी 21 पीढ़ियों का उद्धार कर दिया था कहता है कि –

‘‘नाथ आज में कह न पावा। मिटे दोष दुःख दारिद दाना‘‘

भगवान भाव प्रधान है-भगवान किसी की बपौती नहीं- वै पद प्रतिष्ठा पैसों के प्रभाव से नहीं केवट की तरह भक्त के अंतर भाव से प्रसन्न होते है। भगवान अहंकार अभिमान से दूर रहते है।

पांचवी भक्ति अर्चना- अर्थात भगवान के मंदिरों में भगवान के श्री विग्रह का पूजन अर्चना करना। मंदिरों में झाड़ू लगाना, कहीं भी जरा भी कचरा, कागज व्यर्थ वस्तु नजर आये उसे उठाकर एक तरफ निश्चित स्थान पर डाल देना, मंदिर में दीपक लगाना, भगवान के पूजा पात्रों को साफ करना, पूजा सामग्री को व्यवस्थित करना और बदले में भगवान कुछ लौकिक कामना पूर्ती की भगवान से मांग नहीं रखना अर्चना है। भगवान से याचना नहीं उनकी पूजा अर्चना का लक्ष्य होना चाहिए।

अर्चना भक्ति की आचार्य पाण्डवों की माता कुन्ती को बताते हुए कहा कि रिश्ते में कुंती भगवान कृष्ण की बुआ होने के बावजूद दुर्याेधन द्वारा हमेशा अकारण सताये जाने के बावजूद कुंती ने भगवान कृष्ण से कभी दुख निवारण की नहीं कहा अपितु वरदान मांगने की कहने पर कुंती ने भगवान से जीवन पर्यन्त दुख का वरदान मांगा जिसे भगवान स्मरण बना रहे।

मंदिरों के प्रति श्रद्धा के साथ व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिये- मंदिरों को पर्यटनीय स्थल नहीं दर्शनीय ही रहने देना चाहिये। भारत में मंदिरों की जितनी संख्या है उतनी विश्व में कहीं नहीं है। मंदिरों के प्रति हमारी श्रद्धा तो परन्तु वहां की व्यवस्थाओं व सुरक्षा के प्रति भी हमारा ध्यान जाना चाहिये।

धार्मिक स्थलों को पर्यटनीय नहीं दर्शनीय स्वरूप में ही रहने देना चाहिये– मंदिर आदि धार्मिक स्थल हमारी सनातन संस्कृति के केन्द्र है जहां पर जाने-दर्शन करने से तनाव ग्रस्त अशांत मन को शांति-सुख-आनन्द की अनुभूति होती है। जहां बैठकर ध्यान करने से हृदय में हमें परमात्मा के प्रेम भक्ति का अनुसरण होता है और यह तभी संभव है जहां मंदिरों की मर्यादा अक्षुण्ण बनी रहे। मंदिर और कोई भी धार्मिक स्थान केवल घूमने-फिरने मौज मस्ती के स्थान नहीं होते भक्ति आराधना के पवित्र केन्द्र होते है। उन्हें उसी स्वरूप में रहने देना चाहिये। इसलिये इन्हें पर्यटक स्थल घोषित कर पर्यटनीय स्थान बनाने के बजाय सड़क से संसद तक इनका जो दर्शनीय-वंदनीय-पूज्यनीय स्वरूप है वहीं रहना चाहिये।

मोबाइल का सदुपयोग कम दुरूपयोग अधिक हो रहा है-झूंठ-फरेब-छल-कपट, अनुशासनहीनता, मर्यादाओं का उल्लंघन, पारिवारिक प्रेम संबंधों से दूरी, तनाव आदि विक्रतीयों, विसंगतियों से मोबाईल का सदुपयोग कम, दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है इससे कैसे बचा जाये सबको ध्यान देना चाहिये। विशेषकर माताओं-पिताओं को जो अपने दो ढाई साल के बच्चों के हाथों में मोबाईल पकड़ा देते है, सोचना चाहिये मोबाईल में बच्चों द्वारा विदेशी कार्टून देखकर उनके संस्कार कहा जा रहे है।

अर्चना भक्ति का प्रारंभ परिवार से होता है- पत्नि और पति एक दूसरे को नहीं बल्कि पुत्र, समाज, राष्ट्र को नारायण का स्वरूप मानकर सेवा करने का लक्ष्य रखे। ऐसा नहीं हो कि मंदिर मे जाकर खूब पूजा अर्चना करे और घर में आकर एक दूसरे से बात तक नहीं करे।

प्रतिदिन गीता भवन के अध्यक्ष पूज्य संत रामनिवासजी महाराज प्रवासी, ज्योतिषज्ञ लाड़कुंवर दीदी, मंचासीन बड़े साहब स्वामी नरपतरामजी महाराज उदयपुर, स्वामी रामनारायणजी महाराज का भी सानिध्य प्राप्त हो रहा है।

पूज्य संतों का स्वागत कर आशीर्वाद लिया- संयोजक सम्पलाल कालिया, राधा कालिया, अध्यक्ष प्रहलाद काबरा, आशा काबरा, सत्यनारायण पलोड़, सुभाष अग्रवाल, ओम फरक्या, जगदीश चौधरी, सुमित्रा चौधरी, प्रेम सिसौदिया, सिन्धु महल परिवार के दृष्टानंद नैनवानी, डॉ. पमनानी, वासुदेव खेमानी, दयाराम जैसवानी, नन्दू आडवानी, प्रीतम खेमानी, काऊ सेठ, विद्या उपाध्याय, पुष्पा पाटीदार, अनुपमा बैरागी, निर्मला माली, उमा करंजिया, सुधा फरक्या, टीना दीदी, रक्षा जैन, ज्योति विजयवर्गीय, पुष्पा गौड़, शशि सांखला, कविता आदि। चतुर्थ दिवस लक्ष्मीनारायण कोठारी की ओर से प्रसाद वितरित किया गया। मंच संचालन सचिव पं. अशोक त्रिपाठी ने किया।

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