काले सोने की फसल यौवन पर किसानों ने लुनी चीरने करी शुरू दिन रात रखवाली भी करते हैं रोजङो से चोरों से

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मोहन सेन कछावा
मल्हारगढ़ -नगर आसपास के क्षेत्र में एवं मालवा और मेवाड़ में अफीम काले सोने की फसल अपने योवन पर है और अफीम उत्पादक किसान भाइयों ने शुभ मुहूर्त में मां काली की पूजा अर्चना अगरबत्ती लगाकर दीप जलाकर मिठाई चढ़कर नारियल फोड़कर मां काली की विधिवत पूजा अर्चना कर पांच डोडे पर चीरा लगाकर अफीम के खेत को तीन भागों में बाटते हैं और प्रथम भाग पर चीरा लगते हैं और सुबह अफीम के डोडे का जो दूध जम जाता है उसको छरपले से लुनी यानी अफीम को एकत्रित की जाती है अफीम की लुनी चीरणी की शुरुआत हो चुकी है
पूरे अंचल के अंदर मध्य प्रदेश के मालवा मंदसौर नीमच रतलाम शाजापुर उज्जैन जिलों में राजस्थान के मेवाड़ के जिला चित्तौड़ जिला प्रतापगढ़ सहित उत्तर प्रदेश के भी कुछ जिले मे केंद्र सरकार के द्वारा किसान भाइयों को अफीम का लाइसेंस दिया जाता है क्योंकि अफीम से जीवन रक्षक दवाइयां बनाई जाती है यह तस्करो के हाथ लग जाए तो वह ब्राउन शुगर स्मैक हीरोइन बनाकर नशे का कारोबार भी फैल जाता है उससे अनेक युवा चपेट में आते हैं एक बार पीना शुरू करते हैं तो फिर वह मृत्यु को प्राप्त करते हैं
अभी सभी किसानों को 10 आरी का लाइसेंस दिया गया और शासन द्वारा निर्धारित औसत 6 किलो अफीम ली जाती है उसके बदले किसानों को रुपए दिए जाते हैं और औसत अगर काम बैठते हैं तो किसानों का लाइसेंस कट जाता है किसान भाई अफीम को अपने बच्चों की तरह पालपोश कर उसको बड़ा करते हैं सर्वप्रथम हकाई जुताई पिलाई खाद बीज अफीम में अगर कोई बीमारी आ जाती है तो उसके लिए दवाई भी किसान भाई उसमें छीड़कते हैं और उसकी रखवाली दिन-रात करते हैं
अफीम के खेत के चारों तरफ लोहे की जाली लगाई जाती है ताकि जंगली जानवर विशेष कर नीलगाय रोजङो से बचाया जाता है और अफीम के ङोङे को तोड़ने वाले तस्करो चोरों से भी उसकी रखवाली दिन-रात की जाती है खेतों पर रात्रि जागरण करते हैं सीसीटीवी कैमरे भी किसान लगते हैं और लूनीचीरनी वाले मजदूर भी परफेक्ट होते हैं उन्हें बुलाया जाता है और अच्छी खासी मजदूरी उनको दी जाती है अतः किसान भाइयों को अफीम को बड़ा करने में हजारों रुपए पहले लगाने पड़ते हैं और फिर यदि प्राकृतिक आपदा आ जाए तेज हवा चलती है उससे भी अफीम का दूध नीचे गिर जाता है और अगर पाला पड़ता है तो भी अफीम का पौधा जल जाता है और बारिश का ओलावृष्टि हो जाती है तो उससे भी अफीम खराब हो जाता है इस प्रकार से किसान भाइयों का भगवान ही मालिक होता है और भगवान भरोसे ही वह खेती करते हैं अगर इस प्रकार की कोई भी आपदा अफीम की फसल पर आती है तो शासन को भी उन्हें औसत मे राहत प्रदान करना चाहिए और पुन अगले साल अफीम का लाइसेंस भी देना चाहिए
शासन किसने से अफीम कम से कम 50000 प्रति किलो के भाव से लेना चाहिए ताकि किसान उसका खर्चा निकल सके और वह जितना भी अफीम आता वह सरकार को दे देगा और डोङा चुरा भी शासन को अच्छे भाव से अफीमतोल के साथ ही ले लेना चाहिए ताकि ताकि किसान निश्चित हो जाए