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बिना प्राण प्रतिष्ठा के जिसके पत्थर शंकर के रूप में पूजे जाते हैं, ऐसी है नर्मदा मैया

16 फरवरी,नर्मदा जयंती पर विशेष…..
    बिना प्राण प्रतिष्ठा के जिसके पत्थर शंकर के रूप में पूजे जाते हैं, ऐसी है नर्मदा मैया

संकलन- रमेशचन्द्र चन्द्रे

मंदसौर मध्यप्रदेश

    मै कल पर्वत पर भोलेनाथ तपस्या में लीन थे तभी उनकी पसीने की बूंदें “मैंखल पर्वत” पर गिरी, इस दिन माघ माह की सप्तमी का दिन था। उस बूंद से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ।वह कन्या भी महादेवजी के सामने तपस्या करने बैठ गई, जब भगवान शंकर की तपस्या पूरी हुई और उनकी आँख खुली तो वे कन्या को देखकर बहुत खुश हुवे और उसका नामकरण “नर्मदा” के रुप में कर दिया और वरदान दिया कि, संसार में चाहे प्रलय भी आ जाये तुम्हारा नाश कभी भी नहीं होगा और संसार में  पापनाशिनी नदी के नाम से तुम्हारा नाम लिया जायेगा।                       तुम्हारे किनारों पर जो पत्थर रहेंगे वे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहलायेंगे और बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजे जा सकेंगे,और तुम्हारे तटों पर शिव-पार्वती सहित सारे देवता निवास करेंगे। सारे संसार में एकमात्र तुम ऐसी नदी होगी जिसकी परिक्रमा लोग करेंगे।
मैखल पर्वत पर नर्मदा का प्राकट्य हुआ इसलिए ये मैखल सुता कहलाई।
पुराणों में कथा आती है कि, जब नर्मदा युवा हुई तो, राजा मैकल को अपनी बेटी के विवाह की चिन्ता हुई। राजा ने अपनी रूपवान अति सुंदर बेटी के लिये वर खोजना शुरू किया और घोषणा कर दी कि, “जो भी राजकुमार, मेरी बेटी को गुलबकावली (फूलों की एक दुर्बल प्रजाति) के फूल लाकर देगा,उसी से मेरी बेटी की शादी होंगी।यह बहुत ही कठिन शर्त थी अनेक राजाओं ने शर्त पूरी करने की कोशिश की लेकिन पूरी नहीं कर पाए।ऐसे में राजकुमार सोनभद्र ने वीरतापूर्वक यह शर्त पूरी कर दी।

सोनभद्र की वीरता से राजा
मैंखल बहुत खुश हुए और उससे अपनी बेटी की शादी करने के लिये तैयार हो गये किंतु देवी नर्मदा ने अभी तक सोनभद्र को देखा भी नहीं था, लेकिन उनकी वीरता के चर्चे बहुत सुन रखे थे। माँ नर्मदा के मन में सोनभद्र से मिलने की प्रबल इच्छा हुई, ऐसे में उन्होंने अपनी दासी जुहिला को बुलाकर कहा,मैं राजकुमार सोनभद्र से मिलना चाहती हूँ, और मेरी तरफ से तुम ये सन्देशा लेकर जाओ।
दासी जुहिला ने कहा कि मेरे  पास अच्छे वस्त्र और आभूषण नहीं है तो आप मुझे अच्छे वस्त्र और आभूषण दे दीजिए जिंन्हे पहनकर  मैं राजकुमार के पास सन्देशा ले के जा सकूँ।नर्मदा ने दासी की विनती सुनकर अपने वस्त्राभूषण दे दिये जिससे कि, वह उनका सन्देशा ले जा सके।जुहिला जब माँ नर्मदा का सन्देशा लेकर राजकुमार सोनभद्र के पास पहुँची तो राजकुमार का रूप और उसके गुणों को देखकर मोहित हो गई और उसे अपना दिल हार बैठी।उसने अपना परिचय माँ नर्मदा के रूप में दिया।राजसी वेशभूषा और ठाट बाट में आई दासी को राजकुमार सोनभद्र भी उसे नर्मदा समझने की भारी भूल कर बैठे,और उन्होंने भी अपना प्रेम का प्रस्ताव जुहिला के ऊपर प्रकट कर दिया। जुहिला ने भी प्रेम के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया। जब राजमहल से जुहिला को गये हुये काफी समय हो गया था, तब माँ नर्मदा के सब्र का बांध टूटने लगा और तब उन्होंने खुद ही जाकर देखने का मन बनाया और नर्मदा खुद ही वहाँ पहुँच गई जिस जगह उन्होंने दासी को भेजा था। जब वे वहाँ पर पहुंची तब इन्होंने दोनों को जिस प्रकार प्रणय निवेदन करते देखा तो उनका मन कांप उठा,  शोक संतप्त हो उठा।माता को बहुत अपमान महसूस हुआ और वे अपमान की आग में जल उठी और उन्होंने फिर कभी वहाँ न आने का निश्चय कर लिया और वे वहाँ से उल्टी दिशा में चल पड़ी। सोनभद्र को भी समझ में आ चुका था, वे दासी की चालाकी समझ चुके थे। वे नर्मदा को पुकारते हुए उसके पीछे दौड़े, उनको लौट आने की विनती करने लगे। लेकिन नर्मदा मैया ने एक बार सोनभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुँआरी रहने का फैसला कर लिया,और युवावस्था में ही सन्यासिनी का वेश धारण कर लिया।
भारत की सारी नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं लेकिन माँ नर्मदा पश्चिम की ओर चल पड़ी,रास्ते में जंगल पहाड़ियां आती गई, माँ नर्मदा ने उनमें से अपना रास्ता बनाती गई और आगे बढ़ती गई।
ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा परिक्रमा के समय कहीं- कहीं माँ नर्मदा का करुण विलाप सुनाई देता है, जिसे अनेक परिक्रमा वासियों ने महसूस किया  और इस प्रकार वह कल- कल छल- छल बहती हुई अरब सागर में समा जाती है।
माँ नर्मदा का दर्शन करने वाले भक्त
चिर कुमारी माँ नर्मदा का सात्विक तेज, चारित्रिक सौंदर्य महसूस करते है।हमारे देश की बड़ी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है लेकिन माँ नर्मदा बंगाल सागर की यात्रा छोड़कर गुस्से मे दौड़ते हुए अरब सागर में समा गई। पुराणों में कहा गया है कि, जो पुण्य गंगाजी में स्नान करने से मिलता है वह पुण्य नर्मदा जी के दर्शन मात्र से मिल जाता है।
पुराणों के अनुसार-गंगा मैया  एक बार दुखी होकर भगवान के पास गई और उन्होंने कहा कि- हे प्रभु!  पृथ्वी पर इतने सारे पापी मुझमे स्नान करते है, उसके कारण मैं दूषित हो गई हूं मैं क्या करूँ?तब प्रभु ने कहा कि, हे देवी! आप नर्मदा जी में स्नान कर लीजिये आप के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।और मान्यता है कि विशेष पर्वो पर माँ गंगा नर्मदा में स्नान करने आती है।
 माँ नर्मदा से कोई भी मनौती मांगो मां पूरी कर देती है
इसकी गणना देश की सात पवित्र नदियों में की जाती है। एकमात्र नर्मदा नदी ही ऐसी है जिसकी कि परिक्रमा की जाती है। भारत की पांचवी सबसे बड़ी नदी है,यह अमरकंटक से निकलती है और गुजरात राज्य में खम्बात की खाड़ी में गिरती है।1312किलोमीटर का सफर तय करती है। इसका वर्णन रामायण,महाभारत,स्कन्द पुराण में भी आता है। इस पर पुराण भी लिखा गया है।स्कंद पुराण में लिखा गया है कि, यह प्रलयकाल में भी चिरस्थाई रहेगी।इस नदी का एक नाम रेवा भी है।
माघ माह की शुक्लपक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है।
ऐसी जीवनदायिनी माँ को कोटि कोटि नमन।

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