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इन दिनों अयोध्या के राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की गई रामलला के विग्रह की खूब चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया पर रामलला की दो छवि शेयर की जा रही है। एक प्राण-प्रतिष्ठा से पहले की, दूसरी पूजा के बाद की। विग्रह में दो फर्क साफ दिख रहा है। गर्भगृह में रामलला की आंखें सजीव जैसी दिखने लगी हैं और उनका बाल सुलभ मनमोहक मुस्कान भी निखर गया है। आखिर यह चमत्कार क्यों हुआ? अगर ऐसा हुआ तो क्या आपने प्रतिमा को निहारा।
अरुण योगीराज की फैमिली पिछले 300 साल से मूर्तियां बना रही है। उनके पिता योगीराज और दादा वसवन्ना भी कुशल शिल्पकार थे। अपने परिवार के पांचवीं पीढी के शिल्पकार अरुण योगीराज भी बचपन से ही पुश्तैनी कला को सीखते रहे।
राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला के मूर्ति का स्वरूप बदल गया। रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले अरुण योगीराज ने बताया कि जब उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला के दर्शन किए तो मंत्रमुग्ध रह गए। उन्हें भरोसा नहीं हुआ कि रामलला को उन्हीं ने गढ़ा है। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले वह दस दिनों तक अयोध्या में ही रहे। उन्होंने कहा कि गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के विग्रह के भाव बदल गए। उनकी आंखें जीवंत हो गई और होठों पर बाल सुलभ मुस्कान आ गई। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनके विग्रह में देवत्व का भाव आ गया।
प्राण प्रतिष्ठा के साथ प्रतिमाएं प्राणवान हो उठती हैं, रामलला इस विश्वास पर खरे प्रतीत हो रहे हैं। इस चमत्कार की पुष्टि अयोध्या के श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए रामलला की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने स्वयं की है।
उन्होंने कहा है, मैंने जो मूर्ति बनाई, गर्भगृह के अंदर जाकर उसके भाव बदल गए, आंखें बोलने लगीं। रामलला की प्रतिमा से योगीराज के इस अनुभव की पुष्टि भी होती है। रामलला की जो प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हुई, उसकी आंखें देखिए और जो प्रतिमा विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित होकर सामने आईं, उसकी आंखें देखिए। योगीराज ने जो प्रतिमा बनाई, वह निश्चित रूप से जीवंतता की पर्याय है।
सात महीने तक रामलला को गढ़ते रहे अरुण योगीराज
रामलला की मूर्ति ढाई अरब साल पुराने काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है, जिसे कृष्णशिला का नाम दिया गया। इसे कर्नाटक के जयपुरा होबली गांव से अयोध्या लाया गया। इसकी खासियत है कि इस पत्थर पर मौसम और पानी का असर नहीं होता है। अगर विग्रह पर दूध या जल से अभिषेक किया जाएगा तो भी कृष्णशिला पानी नहीं सोखेगा। अरुण योगीराज ने इस 51 इंच की रामलला की मूर्ति को बनाने में सात महीने लगे। उन्हें रामलला की खासियत बताते हुए दायित्व सौंपा गया था। पांच साल के बच्चे की छवि गढ़ने के लिए उन्होंने काफी रिसर्च किया। शिल्पशास्त्र की कई किताबें पढ़ीं। मुस्कान और हावभाव समझने के लिए स्कूलों में जाकर बच्चों से मिले। कई स्केच बनाए। कृष्णशिला पर हाथ आजमाने से पहले उन्होंने टेक्नोलॉजी का सहारा भी लिया। अरुण योगीराज इसे बनाने के लिए आधी-आधी रात तक जगते रहे।
उन्होंने पूरी कुशलता से रामलला के अंग-उपांग गढ़े। वह न केवल पांच वर्षीय बालक के अनुरूप रामलला के उभरे गाल और राजपुत्र की तरह सुडौल चिबुक गढ़ने में, बल्कि प्रतिमा की श्यामवर्णी शिला को पंचतत्व से निर्मित सतह का स्वरूप देने में भी सफल रहे। चेहरे की भंगिमा से लेकर संपूर्ण प्रतिमा की मुद्रा, बालों की लट से लेकर आभूषणों का सजीव अंकन और नख से शिख तक संयोजन-संतुलन से युक्त प्रतिमा कला-कृत्रिमता की पूर्णता की परिचायक के रूप में प्रस्तुत हुई। तथापि यह प्रतिमा ही थी।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद से अब विग्रह के रूप में इसे देखने वाले एक बार के लिए नि:शब्द रह जा रहे हैं। योगीराज ने प्रतिमा की आंखें भी बहुत मन, बारीकी और कुशलता से गढ़ी थीं। बिल्कुल जीवंत और देखती प्रतीत होती थीं, किंतु प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की आंखें बोलती प्रतीत होने लगी हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुक्रम-अनुष्ठान से जुड़े रहे हनुमत निवास के महंत आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा तो पाषाण प्रतिमा अथवा मृण्मय प्रतिमा में चिन्मय-चैतन्य आरोपित करने के ही लिए होती है।
रामलला की बनती हुई मूर्ति को रोज शाम 4-5 बजे देखने आते थे ‘हनुमान जी’, अरुण योगीराज ने सुनाए चमत्कारिक किस्से
अयोध्या के राम मंदिर के लिए रामलला की छवि को गढ़ने वाले शिल्पकार अरुण योगी ने बताया कि प्रभु श्री राम को की मूर्ति को आकार देने में उनकी स्वयं भगवान राम ने ही मदद की।
कर्नाटक के रहने वाले शिल्पकार अरुण योगी राज ने एक ईश्वरीय किस्सा बताया. कहा कि जब वह मूर्ति तराशने का काम करते थे, तब हर दिन शाम 4 से 5 बजे एक बंदर आ जाता था. फिर कुछ ठंड के कारण हमने कार्यशाला को तिरपाल से ढक दिया तो वो बंदर बाहर आया और जोर-जोर से खटखटाने लगता था. ये बंदर हर रोज शाम 4-5 बजे के बीच आ जाता था. शायद वह बंदर हनुमान जी ही थे, जिनका प्रभु श्री राम को देखने को मन हो. मैंने ये बात चंपत राय (श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव ) जी को भी बताई थी।