भोपालमध्यप्रदेशराजनीति

इस बार मप्र विधानसभा चुनाव में न लहर न मुद्दा सिर्फ सौगात और गारंटी

 

भोपाल। इक्कीसवीं सदी के मध्य प्रदेश में अब तक चार चुनाव हुए। चार में से तीन में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2003 के चुनाव में तो सड़क-पानी, बिजली और दलित एजेंडा जैसे मुद्दों पर जनता ने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका था।

गुटबाजी से हार गई थी कांग्रेस

वर्ष 2008 के चुनाव में कांग्रेस गुटबाजी के चलते हारी। फिर वर्ष 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार की एंटी इनकमबेंसी और देश में मोदी लहर के चलते प्रदेश में भी कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से बाहर रहना पड़ा।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला लेकिन वह निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने में सफल हो गई थी। अब वर्ष 2023 के चुनाव की तस्वीर पिछले चारों चुनाव से अलग रहने की उम्मीद है। इस बार न तो कोई लहर है न ही बिजली-सड़क, पानी जैसे मुद्दे हैं। ऐसा कोई मुद्दा भी अब तक नहीं बन पाया है जो चुनाव को प्रभावित करे। अलबत्ता सौगात और गारंटियों के बीच चुनाव लड़ा जा रहा है।

अब वे सारे मुद्दे खत्म हो गए

2003 के चुनाव में जिन मुद्दों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था सरकार बदलने वाले वे सारे मुद्दे खत्म हो गए हैं। उन दिनों की तुलना में सड़कें बेहतर बन गई हैं। बिजली 24 घंटे मिल रही है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल रहा हैं। तब से आज तक मध्य प्रदेश में बहुत कुछ बदल गया है। वर्ष 2023 के चुनाव से पहले भाजपा सरकार लाड़ली बहना जैसी योजना में भाजपा सरकार महिलाओं को 1250 रुपये प्रतिमाह दे रही है। किसानों को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा सम्मान निधि दी जा रही है। युवाओं के लिए एक लाख पदों पर भर्ती की गई है।

मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना

मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के तहत प्रशिक्षण और आर्थिक मदद दी जा रही है। गरीब महिलाओं को सस्ती दर पर रसोई गैस उपलब्ध करवाई जा रही है। वहीं कांग्रेस कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना, किसान कर्जमाफी युवाओं के लिए प्रोत्साहन योजना महिलाओं को 450 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर सस्ती बिजली सहित कई तरह की गारंटी के दावे कर रही है। भाजपा सरकार की लाड़ली बहना योजना के मुकाबले में नारी सम्मान योजना के तहत 15 सौ रुपये देने का वादा कर रही है।

2008 का चुनाव गुटबाजी में हारी थी कांग्रेस

भाजपा के लिए वर्ष 2008 का चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण था। शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता दांव पर थी और उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी भी मैदान में थी। कांग्रेस की कमान उन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के हाथों में थी। चारों ओर एक ही चर्चा थी कि इस बार जनता फिर बदलाव करेगी, पर चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस का आंकड़ा 38 से बढ़कर 71 विधायकों तक पहुंच गया था। इस चुनाव में कांग्रेस की हार का कारण सिर्फ गुटबाजी को माना गया। इसकी वजह ये थी कि कांग्रेस के बाकी दिग्गज नेताओं को लगा कि सरकार बनी तो पचौरी मुख्यमंत्री के दावेदार बन जाएंगे। बस इसी बात के चलते सारे गुटों ने कांग्रेस को पराजित करवा दिया।

2013 में यूपीए सरकार का खामियाजा और मोदी लहर

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपनी ही यूपीए गठबंधन की केंद्र सरकार की सत्ता विरोधी लहर का प्रदेश में सामना करना पड़ा। इसका परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस के आधा दर्जन प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी जिसके चलते भाजपा को आशा से अधिक सीटें मिलीं।

2018 में आरक्षण और एससीएसटी एक्ट का मुद्दा

कांग्रेस सरकार के एजेंडे के जवाब में शिवराज सरकार ने संबल योजना लांच की है जिसमें सभी वर्ग के लोगों को 200 रुपये महीने में बिजली दी गई। सामान्य या असामान्य मौत पर तत्काल पांच हजार की अंत्येष्टि सहायता दी गई। कुल मिलाकर ग्रामीण इलाकों में अच्छी लोकप्रिय रही। पर पदोन्नति में आरक्षण और एससीएसटी एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा गरमाया हुआ था। प्रदेश में चारों तरफ इन मुद्दों पर असंतोष था। एससीएसटी और सामान्य ओबीसी दोनों ही वर्ग नाराज थे। यही कारण था कि भाजपा सत्ता के आंकड़ों के नजदीक पहुंचकर भी सरकार से बेदखल हो गई। इस बार के विधानसभा चुनाव में न लहर है न मुद्दा सिर्फ सौगाते और गारंटी से कांग्रेस तथा भाजपा चुनाव लडना चाहती है। अब यहा कोई टिकट न मिलने से परेशान तो कोई मिलने से हैरान,,,,? राजनैतिक संग्राम भाजपा की रणनीति ने विधानसभा की सियासत में मचाई हलचल दिग्गजो को रण में उतारकर उम्मीदवारो में बड़ी दिल की धड़कन,,,,?

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