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✍️ राजेन्द्र देवड़ा
(कांग्रेस को अपना इतिहास बनाना है तो उम्मीदवार बदलकर शिक्षित और शासकीय सेवारत कर्मचारी/सामाजिक नेता/किसान तथा प्राचार्य कालूराम परमार के नाम पर दाव खेलना होगा,,) जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा हैं रतलाम जिले के अंतिम छोर के आलोट विधानसभा क्षेत्र के लिए उम्मीदवार अपनी मंजी हुई राजनीति पर कोई जंग लगने देने के मुड़ में नहीं है। दोनों ही राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के दावेदार के साथ अन्य राजनीतिक पार्टी अपना दम-खम दिखाने में लग गए हैैं। चूंकि यह विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र घोषित हैं इसके लिए यहां पर अक्सर बाहरी बाहूबली उम्मीदवारों ने इस विधानसभा क्षेत्र को अपनी चरागाह समंझ लिया है किन्तु अब कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दल मतदाताओं की नब्ज टटोलने में कामयाब होकर स्थानीय उम्मीदवार की तलाश में लग गए है। देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक के महामहिम राज्यपाल तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री डाक्टर थावरचंद गेहलोत के पूत्र तथा पूर्व विधायक जितेंद्र गहलोत को ही अपना प्रत्याशी मान रही है जबकि वे निकटतम विधानसभा के दिग्गज नेता की गुटबाजी में उलझकर वर्तमान विधायक मनोज चावला के सामने विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि वही नेता उनकी जातिगत वोट में दख़ल देकर फिर जितेंद्र गेहलोत को शिकस्त दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा, गुटबाजी और उनकी राह में स्थानीय उम्मीदवार रमेश मालवीय और युवानेता राकेश दायमा रोड़ा बने हुए हैं । रमेश मालवीय वर्षों से पार्टी की सेवा करने में यह युवानेता राकेश दायमा दिन रात मेहनत कर रहा है। और हर पार्टी के काम के लिए तत्पर रहते है । एक और स्थानीय उम्मीदवार रमेश मालवीय जोकि भाजपा से निष्कासित हो कर भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं परंतु वैसा कांग्रेस पार्टी में देखने को नहीं मिल रहा हैं, यहां के कुछ स्थानीय नेता जो हर चुनाव के वक्त बरसाती मेंढक की तरह बाहर निकल आते हैं तथा धनाढ्य उम्मीदवार की खोज में लग जाते हैं, वैसा नजारा अब भी देखने को आलोट विधानसभा में मिल रहा हैं। दल-बदल और बहुत सारे कारणों से प्रत्याशी चयन में परेशानी देखने को मिल रही है। वर्तमान विधायक मनोज चावला भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं अपनी उम्मीदवारी पुनः कायम रखने के लिए और यह भी प्रयास कर रहे हैं कि उनकी विदाई भाजपा किसी स्थानीय उम्मीदवार को उतारे तो विदाई बन सकती है। विधायक मनोज चावला अपने काल में कोई असली रूप नही दिखा पाएं ना कोई विकास कर पाऐ सिर्फ गुटबाजी और कांग्रेस में फूट फजीहत उनके नाम हैं। वैसे देखा जाए तो पार्टी में और भी कई दावेदार बैक डोर एंट्री से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं जिनमें बाहर के उम्मीदवार प्रेमचंद गुड्डू पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष प्रहलाद वर्मा के साथ ही पूर्व समय में चावला के खास राजोतिया भी दावेदारी जता रहे हैं। परंतु देखा जाए तो वर्ष 2006 में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी से घोषित प्रत्याशी होने से किसी कारण से बच गए थें जो कि एक कर्मचारी नेता भी हैं तथा हर चुनाव में अपनी दावेदारी अलग ही ढंग से पार्टी को प्रस्तुत करते हैं ऐसे उम्मीदवार का नाम है कालूराम परमार जो वर्तमान में बलाई महासभा के रतलाम जिला अध्यक्ष भी हैं तथा चुनाव पूर्व सेवानिवृत्ति लेने वाले हैं। यदि कांग्रेस पार्टी वाकई में स्थानीय उम्मीदवार के रूप में श्री परमार का चयन करती है तो कालूराम परमार जो कि ग्रामीण क्षेत्र में काफी पकड़ रखते हैं तथा समाजसेवी होने के साथमें कर्मचारियों की समस्याओं को हल करवाने आगे रहते हैं साथ ही स्वयं किसान होकर किसानों में और आलोट तहसील के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं एक सफल उम्मीदवार साबित होंगे।
कालूराम परमार पर कांग्रेस का भरोसा करने का कारण –
कालूराम परमार पिता कन्हैयालाल परमार गांव रिछा तहसील आलोट जिला रतलाम के मूल निवासी होकर हिन्दी साहित्य विषय में स्नातकोत्तर डिग्री धारी होकर बीटीसी हैं साथ में ही दिनांक 07/01/1982 से आजतक शिक्षक होते हुए प्राचार्य पद पर पदस्थ हैं जिन्हें अनुसूचित जाति जनजाति छात्रावास संचालन करने का भी दिर्घ अनुभव हैं।
निरंतर पांच वर्षों से शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्य पद पर कार्यरत होकर व्यवहार कुशलता से जाने जाते हैं।
इसके साथ सतत् शिक्षक कांग्रेस तहसील आलोट के अध्यक्ष रहें, अध्यक्ष अजाक्स तथा अपाक्स कमेंट तहसील आलोट के पद पर भी रहें हैं।अध्यक्ष राष्ट्रीय युवा परिषद् आलोट,अधयक्ष बलाई समाज तहसील आलोट,अध्यक्ष अखिल भारतीय अनुसूचित जाति यूनियन तहसील आलोट, अध्यक्ष अखिल भारतीय बलाई महासभा सभा जिला रतलाम।
मध्यप्रदेश कांग्रेस द्वारा सन् 1996 में आलोट विधानसभा क्षेत्र के लिए विधानसभा क्षेत्र के लिए चयनित उम्मीदवार रहें हैं।
सन् 2013 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा आलोट विधानसभा क्षेत्र के लिए विचाराधीन उम्मीदवार के रूप में नाम सुर्खियों में रहा है।
सन् 1996 उप चुनाव के चलते अपनी उम्मीदवारी जताने के लिए शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया था, उम्मीदवार नहीं बनाने पर पुनः शासकीय सेवा में लग गए।
सन् 2014 में इनके पुत्र अशोक परमार को जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव लड़वाया था जिन्हें काफी समर्थन मिला है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस स्केनिंग कमेटी ने कालूराम परमार के नाम पर विचाराधीन रखा था।
वर्ष 2023 में आलोट विधानसभा क्षेत्र के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के लिए मतदाताओं द्वारा स्थानीय उम्मीदवारों की मांग उठाई जा रही है,ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए प्राचार्य पद पर कार्यरत कालूराम परमार से अधिक योग्य कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता है क्यों कि इन का स्वजातिय वोट बैंक भी काफी बड़ा है वहीं विभिन्न ग़ैर राजनीतिक पर्दों पर कार्य करने का अनुभव भी हैं।
यदि कांग्रेस पार्टी कालूराम परमार के नाम पर विचार करती है तो पुनः सीट कांग्रेस की झोली में ही होगी। वैसे देखा जाए तो श्री परमार पूरी तहसील के हर गांव हर कस्बे से रूबरू हैं,आलोट तहसील की हर स्थानी समस्या से वाकिफ हैं, कई प्रकार के सामाजिक संगठनों कर्मचारी संगठनों धार्मिक और अनुवांशिक संगठनों उसके कार्यों को बखूबी अंजाम देते हैं तथा शासन की किसी भी योजना को जमीनी स्तर पर पहुंचाने में अपने स्तर से बहुत प्रयास करते रहते हैं । यही उनके जनाधार का मूल मंत्र हैं। अगर स्थानीय और योग्य स्थानीय उम्मीदवार की परीक्षा की जाए कालूराम परमार कांग्रेस पार्टी के स्थानीय मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकते हैं और यदि भाजपा मे भी स्थानीय उम्मीदवार की हवा चलती है तो रमेश मालवीय राकेश दायमा मेंसे किसी को उम्मीदवार बनाती है तो यह मुकाबला बड़ा ही रोचक होगा और स्थानीयता का वजूद भी बना रहेगा। यही अंतर है स्थानीय उम्मीदवार और योग्य स्थानीय उम्मीदवार में कालूराम परमार पेशे से शिक्षक हैं और पूर्व में भी टिकट की आस में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कहने पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके थें परंतु अखिल भारतीय स्तर से उनका टिकट किन्हीं कारणों की वजह से कट गया था इस वजह से वह चुनाव नहीं लड़ पाए थे। 2023 के विधानसभा चुनाव में जातिगत समीकरण कर्मचारियों की भावना ग्रामीण व्यक्ति पोस्ट ग्रेजुएट इन हिंदी के उम्मीदवार को यदि मौका दिया जाता है निश्चित ही कांग्रेस पार्टी अपना परचम पुनः लहरा सकती है ।
भाजपा से रमेश मालवीय और युवानेता राकेश दायमा अपनी अलग-अलग दावेदारी कर रहे है।जंहा एक और जातिगत समीकरण पर रमेश मालवीय परचम लहरा सकते है वही आलोट का युवा तथा जोशीला खून ग्रेजुएट राकेश दायमा हर व्यक्ति से मेल मिलाप सामाजिक धार्मिक के कार्य को बखूबी से अंजाम देते हैं यदि भाजपा इन्हे उम्मीदवार बनाती है तो जीत सुनिश्चित है।
आलोट के मतदाताओं की नब्ज टटोलने पर यह आभास हुआ है की आलोट विधानसभा अब किसी भी थोपें हुए बाह्य उम्मीदवार को पसंद नहीं करेगा ।
हालांकि कालूराम परमार से इस संबंध में पुछने का प्रसास किया तो उन्होंने कहा कि राजनीति मेरा पेशा नहीं हैं में शिक्षक हूं और यही मेरा धर्म और राजनीति है। फिर भी राजनीति में कब किसके जुगनू चमकने लग जाएं कह नहीं सकते हैं कालूराम परमार का पुत्र अशोक परमार भी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मशहूर हैं।