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दुधाखेड़ी माताजी में नवरात्रि पर लगता है भक्तों का तांता सैकड़ो की संख्या में आकर करते हैं भक्त दर्शन

दुधाखेड़ी माताजी में नवरात्रि पर लगता है भक्तों का तांता सैकड़ो की संख्या में आकर करते हैं भक्त दर्शन

मंदसौर जिले का सबसे धनी दुधाखेडी माताजी मंदिर जहाँ पर न सिर्फ ये आस्था का केंद है बल्कि यहाँ पर *लकवा,पैरालिसिस से पीड़ित हजारों श्रद्धालु आते है और माताजी की कृपा से ठीक होकर जाते है।* 13 वी सदी से मातारानी की पूजा अर्चना की जा रही है। मंदिर में मातारानी पंचमुखी रूप में विराजमान ह माताजी पंचमुखी रूप में विराजित है। प्रतिमा के सम्मुख अतिप्राचीन एक अखण्ड ज्योत प्रज्वलित है। स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से 13 वीं सदी से निरंतर यहाँ पूजा अर्चना का प्रमाण मिलता है. मराठाकाल में लोकमाता अहिल्याबाई ने धर्मशाला बनवाई। कोटा के मुहासिब आला, झाला जालिम सिंह की यह आराध्या देवी रही। इन्होंने यहाँ धर्मशाला व ग्वालियर नरेश सिंधिया ने भी यहाँ धर्मशाला बनवाई। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। लकवा बीमारी से पीड़ित यहाँ स्वास्थ्य लाभ लेते देखे जाते हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक कष्ट का निवारण होता है। पहले यहां पर बलि प्रथा भी थी लेकिन

40 वर्ष पूर्व आकाश से बिजली गिरने से हुए चमत्कार के कारण प्रचलित बलि प्रथा हमेशा के लिए बंद हो गई। और उसके बाद श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। दोनों नवरात्री में मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु धर्म लाभ प्राप्त करते हैं। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मालवा अंचल का यह बेजोड़ स्थल है।

दुधाखेड़ी माता जी का यह प्राचीन मंदिर है, श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है

दुधाखेड़ी माता जी भानपुरा से 12 कि. मी. दुर और गरोठ से 16 कि. मी. दुर स्थित है। नवरात्रि के समय दुधाखेड़ी माताजी के नौ रूप देखने को मिलते हैं। रोज नये रूप मे माता जी अपने भक्तों को दर्शन देती है। मान्यता है कि माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी है कि कोई भी भक्त उनसे आँख नहीं मिला पाता है। यहाँ पर जबसे मन्दिर बना है तब से एक अखण्ड जोत भी जल रही है। कई किलोमीटर लम्बी यात्रा करके भक्त यहाँ आते हैं।

इन्दौर की महारानी अहिल्या देवी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था, बताया जाता है कि होलकर स्टेट की महारानी देवी अहिल्या जब अंग्रेजों से परस्त होने लग गई थी, होलकर स्टेट की सेना हार रही थी , तभी देवी अहिल्या ने दुधाखेड़ी माताजी आकर माथा टेका, माताजी ने स्वयं उन्हे खड़ग तलवार भेंट की। इसके बाद होलकर स्टेट की सेना ने अंग्रेजों को कोलकाता में जाकर हरा दिया।

झालावाड़ के पूर्व महाराजा जालिम सिंह भी यहां पर पूजा अर्चना करने आते थे। माता की पाँच मूर्तियाँ विराजित है,

दुधा जी रावत जब तक जीवित रहे माता की पूजा अर्चना करते रहे फिर उन्होने गुसाइयो को वहाँ की पूजा का भार सौप दिया। गुसाइयो से फिर तेल्लिया खेड़ी मे बसने वाले नाथो ने ले लिया ,तेल्लिया खेड़ी का नाम बाद मे दुधाखेड़ी हो गया। प्राचीन समय मे होलकर रानी अहिल्या देवी भी दुधाखेड़ी माता के दर्शन अपने विश्वास पात्र अंग रक्षिका सिन्दुरी के साथ आई थी सिन्दुरी सोन्धिया राजपूत समाज की थी, जो बड़ी वीर थी, उसी समय उसने एक धर्मशाला दुधाखेड़ी माता के यहाँ बनाई थी। होल्कर राज्य के समय गाँवों एवं नगरों के जिससे कि मन्दिरों में भगवान की पूजा अर्चना चलती रहे। महारानी अहिल्या बाई ने दुधाखेड़ी माता की मुर्तियों पर चार खम्बे लगवा कर छाया करवाई थी वह छाया आज भी उनकी याद दिलाती है।

इसके बाद यशवंत राव होल्कर प्रथम ने धुनि के पास वाली धर्मशाला का निर्माण करवाया था और धुनी वाली धर्मशाला झालावाड़ दरबार ने बनवाई थी यशवंतराव होल्कर जब भी युद्ध के लिये प्रस्थान करते थे, तो पहले अपने घोड़े से दुधाखेड़ी माता के यहाँ आकर दर्शन करते थे।

कहते है कि माता जी के यहाँ रखी आज भी यशवंतराव होलकर कि एक तलवार दुधाखेडी माता के यहाँ रखी हुई है।

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