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संसार का उद्धार करने के लिए भगवान ने विभिन्न अवतार लिये – संत श्री ज्ञानानंदजी महाराज

Lord took various incarnations to save the world

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केशव सत्संग भवन में चल रहे है चार्तुमासिक प्रवचन
मन्दसौर। नगर के खानपुरा स्थित श्री केशव सत्संग भवन में चातुर्मास हेतु ज्ञानानंदजी महाराज हरिद्वार विराजित है जिनके मुखारविन्द से प्रतिदिन श्रीमद भागवत कथा के एकादश स्कंद का वाचन किया जा रहा है, जिसका श्रवण करने के प्रतिदिन प्रातः 8.30 बजे से 10 बजे तक बडी संख्या में धर्मालुजन पधार रहे है।
रविवार को धर्मसभा में संतश्री ज्ञानानंदजी महाराज ने बताया कि भगवान विष्णु ने इस संसार का उद्धार करने के लिए विभिन्न अवतार लिये जिनका उल्लेख हमारे शास्त्रों में है। आपने कहा कि अनादिकाल से दुष्ट प्रवृत्ति के लोग होते है ऐसे लोग हर युग में पाये जाते है आजकल तो फिर भी कम है पहले तो बडे – बडे असुर हुआ करते थे जो आए दिनों आमजनो और ऋषि मुनियांे को परेशान किया करते थे जिनके पास देवताओं के दिये वरदान भी होते थे लेकिन इन सभी का अंत जरूर हुआ। मधु केवट नाम के असुर को वरदान प्राप्त था कि वो न तो मनुष्य से मारा जायेगा और ना ही जानवर से इसके लिए भगवान ने ऐसे लिला रची की भगवान विष्णु का सिर कटा और उन्हें घोडे का सिर लगाया गया फिर जाकर मधु केवट का वध किया इसी प्रकार हिरणकश्यप के वध के लिए भी भगवान नरसिंह अवतार लिया। जब – जब दुनिया में अत्याचार बढा भगवान ने अवतार लिये है।
चातुर्मास के चार माह शुभ कार्य वर्जित रहते है
धर्मसभा में संतश्री ने बताया कि चातुर्मास के चार माह शुभ कार्य वर्जित रहते है क्योंकि इन चार माहों में भगवान देवताओं के शयन कर समय होता है। इस समय भगवान चिरनिद्रा में होते है। आपने बताया कि सोये हुए को जगाना शास्त्रों में पाप माना गया है इसलिए जब शुभ कार्य होते है और हम भगवान को आमंत्रित करते है तो इन चार महिनों में भगवान को निद्रा से नहीं जगाना चाहिए। धर्मसभा के अंत में भगवान नारायण की स्तुति हुई जिसके पश्चात् आरती कर प्रसाद वितरण किया गया। रविवार को प्रसाद के लाभार्थी जगदीशचन्द्र गर्ग परिवार रहें।
धर्मसभा में केशव सत्संग भवन के अध्यक्ष जगदीशचंद्र सेठिया, सचिव कारूलाल सोनी, मदनलाल गेहलोत, प्रवीण देवडा, कमल देवडा, इंजि आर सी पाण्डेय, राव विजयसिंह, शिवशंकर सोनी, घनश्याम भावसार, दिनेश खत्री, जगदीश भावसार, जगदीश चंद्र सहित बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे।

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