आध्यात्ममंदसौरमध्यप्रदेश

धन- समय- सत्ता-पद से भगवान को जाना नहीं जाता, भगवान को जानने की नहीं, प्रेम से अपनाए-पूज्य आचार्य श्री रामदयालजी महाराज

**********””**************

सप्त दिवसीय नवधा भक्ति प्रवचन माला का हुआ समापन, श्रद्धा भक्ति पर हुए प्रवचन

  कलेक्टर गौतमसिंह ने प्रवचन का लिया लाभ और कार्यकर्ताओं आदि को प्रदान किये कम्बल  

मन्दसौर। श्रद्धा भक्ति के 9 अंगों में नवधा भक्ति का समावेश जीवन में तभी होगा जब मन में दृढ़ विश्वास और श्रद्धा होगी।6 जनवरी को धर्मधाम गीता भवन में आयोजित प्रवचन माला के समापन पर शाहपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरू पूज्य आचार्य श्री रामदयालजी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल में बालकृष्ण के रूप में मुस्कराते हुए पूतना से लेकर कंस तक, मथुरा मण्डल के राक्षसों को मारने, द्वारकाधीश बनने के बाद शिशुपाल, जरासिंघ-भीमासुर आदि दैत्यों का संहार करने से लेकर विश्व का सबसे बड़ा महाभारत का युद्ध होने तक सदैव मुस्कराते रहे। कठिन पलों में भी वो घबराये नहीं और प्रत्येक कार्य को अच्छी प्रकार से संपादीत किया। श्री कृष्ण ने सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में रहते हुए भी उन्होंने निष्काम कर्म का पाठ पढ़ाया।

श्रद्धा भक्ति अर्थात प्रेम भक्ति है। हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट हो ही मैं जाना । तुलसीदासजी की यह चौपाई प्रेम और श्रद्धा के असली स्वरूप को प्रदर्शित करती है।

धन-समय–सत्ता-पद से भगवान को जाना नहीं जाता, भगवान को जानने की नहीं, प्रेम से अपनाने की कहा। प्रेम के दो ही स्थान है या तो राम से प्रेम हो या फिर राष्ट्र से। राष्ट्र प्रेम भी राष्ट्र भक्ति का का बहुत बड़ा उदाहरण है शहीद भगतसिंह, राजगुरू, मंगल पाण्डे आदि ने राष्ट्र प्रेम को ही भक्ति का स्वरूप मानकर हंसते-हंसते अपना बलिदान कर दिया।

राम को शबरी के झूठे बेर खाने की क्या जरूरत थी परन्तु श्री राम ने प्रेम के वश में होकर बरखाये शबरी की कुटीया में स्वयं राम को जाना पड़ा जबकि शबरी को भगवान के द्वार पर अयोध्या जाना नहीं पड़ा। शबरी के जीवन में दो बाते मुख्य थी सेवा और सुमिरन।

भागवत में दो पात्र श्रद्धा के विशिष्ट उदाहरण है। प्रथम दीन-हीन सुदामा ब्राह्मण दूसरा मथुरा में कंस की फूलमाला बनाने वाला सुदामा माली। सुदामा को स्वयं द्वारका जाना पड़ा जबकि सुदामा माली के यहां भगवान स्वयं आये।

हम दो हाथों से भगवान के मंदिर में जाकर स्वार्थ की प्रार्थना करते है परन्तु यह उत्तम भक्ति नहीं है, श्रेष्ठ वह है जो एक हाथ से दूसरों के सहयोग के लिये सदैव तत्पर रहता है। दुनिया पुरी पागल है जो भगवान को छोड़कर ऐसी माया मोह परिवार जो कभी उसका नहीं हो सकता उसके लिये भागती रहती है। धर्म सम्पत्ति संत की परिवार, पद प्रतिष्ठा के लिये जो रात दिन पागल बना रहता है सचमुच वह पागल नहीं है।

मंदिर किसे जाना चाहिये और क्यों जाना चाहिए इस विषय में आचार्य श्री ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व में मंदिरों की संख्या सबसे ज्यादा भारत में है मंदिर में सब जाते है परन्तु बाहर से मंदिर में जाने से उतना लाभ नहीं जितना हम मंदिर को अपने मन में बसा लेते है। पत्थर एक दिन में मंदिर में जाकर भगवान बन जाता है परन्तु प्रतिदिन मंदिर में जाते है परन्तु मंदिर से लौटते समय हम भगवान नहीं पत्थर बनकर बाहर आ जाते है।

पागल का अर्थ है पा याने पाना- लक्ष्य को प्राप्त करना और गल का अर्थ है प्रहलाद ध्रुव, मीरा की तरह अपने को भगवान के लिये समर्पित कर देना। धु्रव ने छः माह में भगवान के दर्शन कर लिये, प्रहलाद ने जड़ खम्ब से नरसिंह रूप में भगवान को प्रकट कर दिया और कलियुग में मीरा ने जहर को अमृत बना दिया।

परमात्मा का ध्यान क्यों करना चाहिये ? – भगवान का ध्यान इसलिये करना चाहिये क्योंकि अगर तुम भगवान का ध्यान करते हो तो भगवान भी तुम्हारा ध्यान रखेंगे।

कोरा ज्ञान उसी तरह फीका है जैसे बिना चासनी का गुलाब जामुन। उद्धव अपने आपको बहुत बड़ा ज्ञानी समझता था और इस ज्ञान का उपदेश करने जब प्रेमी गोपिकाओं के समीप गया तो जो गोपियां उठते, बैठते, चलते फिरते, खाते-पीते हमेशा कृष्ण भक्ति में रंगी रहती थी यहां तक की जब सिर पर माखन की मटकी लेकर बेचने जाती थी तो माखन शब्द का उच्चारण करना भूल जाती थी और आवाज लगाती थी माधो ले लो, माधो ले लो। यह था गोपियों का सच्चा प्रेम।

मथुरा कुबड़ी कृष्ण प्रेम से प्रसिद्ध हो गयी। सद्गुरू ही भगवान राम से प्रेम करना सिखाते है।

श्रद्धा भक्ति ही प्रेम भक्ति है। प्रेम में रूकाव, छल, कपट, लेन-देन चतुराई का सौदा नहीं होता। प्रेम भक्ति पूर्ण श्रद्धा, पूर्ण विश्वास है-प्रेम की सच्ची, परिभाषा केवल इतनी है कि किसी को सुख नहीं दे सके तो कम से कम दुख किसी को नहीं देना चाहिये।

समापन के अवसर पर कलेक्टर गौतमसिंह ने पूज्य आचार्य और मंचासीन संतों का वंदन कर आशीर्वाद लिया। धर्मधाम गीता भवन ट्रस्ट की ओर से कलेक्टर का स्वागत किया गया। स्वागत उद्बोधन ब्रजेश जोशी ने दिया। कलेक्टर ने इस अवसर पर रिन्यू पावर कं. द्वारा प्रदत्त कम्बलों का अर्द्धशती समारोह में सहयोग करने वाले कार्यकर्ताओं एवं अन्य को कम्बलों का प्रदाय किया गया।

समापन के अवसर पर पूज्य आचार्य श्री ने नवधा भक्ति, सत्संग सरिता को प्रवाहित करने में सहयोगकर्ताओं मातृशक्ति, इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया से समाचारों को प्रतिदिन नियम से प्रचारित प्रसारित करने में मंदसौर मीडिया ने जिस प्रकार का सहयोग कर घर-घर को नवधा भक्ति प्रवचन का लाभ दिया है इसके लिये पूज्य आचार्य श्री विशेष रूप से मीडिया की सराहना करते हुए मीडिया के लिये अपना आशीर्वाद प्रदान किया। इलेक्ट्रानिक मीडिया के अध्यक्ष ब्रजेश जोशी, प्रिंट मीडिया के लिये प्रतिदिन व्यवस्थित समाचार के लिये बंशीलाल टांक और सहयोग के लिये पं. अशोक त्रिपाठी को आशीर्वाद दिया।पूज्य आचार्य श्री ने इस अवसर पर ब्रह्मलीन धर्मेन्द्रजी आचार्य, पूज्य अनुरागी बापू, वरदीचंद बसेर, पन्नालाल ठेकेदार, रामगोपाल काबरा, नारायण मंगल, विवेक डोसी, गुप्ता, अमरचन्द केवड़ा, पारस केवड़ा, मोहनलाल मरच्या, प्रेम जीत आदि का स्मरण करते हुए गीता भवन के प्रति उनके सेवा सहयोग और समर्पण भाव की सराहना की।

टेंट, लाईट आदि की सुचारू व्यवस्था के लिये टेंट लिये रजनीश पुरोहित, लाईट के लिये श्याम बैरागी, पंकज पंवार, चौकीदार बालू रावत, प्रारंभ से अंत तक सहयोग के लिये मातृशक्ति महिला मण्डल की अध्यक्ष विद्या उपाध्याय, महिला सत्संग मण्डल अध्यक्ष पुष्पा पाटीदार, आयोजन समिति की सचिव पूजा बैरागी, मंत्री रानु कन्हैया विजयवर्गीय व पुजारी पं. अभिषेक को आशीर्वाद प्रदान किया।

ट्रस्ट उपाध्यक्ष जगदीश चौधरी, विनोद चौबे, सुभाष अग्रवाल, विनोद चौबे, शेषनारायण माली, सत्यनारायण पलोड़, मोहन पारख डॉ. सुषमा बंशीलाल सेठिया, कृष्णगोपाल सोमानी को आशीर्वाद प्रदान किया।संचालन सचिव अशोक त्रिपाठी ने किया एवं आभार वरिष्ठ ट्रस्टी बंशीलाल टांक ने माना।

अंतिम दिवस प्रसादी भण्डारा हुआ जिसका बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने लाभ लिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}