आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

जाते हुए साल को सलाम ,आते हुए साल को प्रणाम

=============00000===========

जाते हुए साल को सलाम

                      आते हुए साल को प्रणाम

———————

-लाल बहादुर श्रीवास्तव

(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)

 

 

हर साल की तरह फिर से नया साल हमारी देहरी पर दस्तक दे रहा है।जाने वाले साल का आखरी‌ दिन अपनी पीठ पर बैठाकर नये साल को लेकर आ रहा है।हमें नये साल का अभिनंदन करना चाहिए ‌। उसी तरह से जैसे हमने जाते हुए साल का आते हुए नये साल के रूप में अभिनंदन किया था।

नया साल आते ही नये नये प्लान स्वप्न स्वप्निली आंखों में तैरने लगते हैं। ऐसे देखें सपने ,जो पूरे न होकर अधूरे रह गये।जिंदगी की रफ्तार में परिस्थितियां वंश पीछे छूट गये।उन्हें पूरे करने के लिए नया साल सामने फिर आ खड़ा हो गया है।

जाते हुए साल में अपनों के साथ छूटे ,हाथों के साथ छूटे ,जिंदगी में वे भी अनायास छूटे जिनकी डोर में बंधकर जीवन के क‌ई सतरंगी सपने सच किए थे।जाता हुआ साल क‌ई खट्टी मिठ्ठी यादों के साथ बीतता है ।अवसर कभी अच्छे कभी बुरे जीवन के साथ चलते हैं।

कभी साल सफलताओं में तो कभी विफलताओं में ही बीत जाता है।मित्र अनायास मिले मुझसे बोले अरे यार पूरा साल खराब बीता ? न व्यापार फला फूला न अधिक मुनाफा हुआ।

मैंने गहरी सांस छोड़ते कहा दाल रोटी तो मिली है न ?

अरे भाई आज के जमाने में कितना कठिन है भौतिक सुख सुविधाओं को पूरा करने के लिए आधी से ज्यादा कमाई तो ऐसे ही चली जाती है। ये एक पहलू था ,दूसरा पहलू सामने आते दूसरे परिचित का था जाते जाते बोल पड़े ।न जाने आने वाला साल कैसा होगा।ये साल तो बेमिसाल था परिवार में सभी को तरक्की मिली‌। मुनाफा मिला।

हर व्यक्ति के लिए जाते हुए साल की कहानी अलग अलग रहती है।कोई अर्श से फर्श पर तो कोई फर्श से अर्श पर। सालों साल बीता हुआ साल कई प्रश्न चिन्ह ,क‌ई सवालों को छोड़कर चला जाता है जिनके उत्तर निरूत्तर , मौनव्रत रहते हैं।

नये साल के बारह माह भाईयों की तरह एक दूसरे से जुड़े होते हैं।एक माह सुख का तो एक माह दुख का ।कभी कभी तो लगातार क‌ई महीने सुखों के तो कभी दुखों के।

माह में ये परिवर्तन होता ही रहता है ।हर व्यक्ति खुद के साथ परिवार के साथ इनमें गोते लगाता रहता है ।सालों साल सदियों से वर्ष के बारह महीने के माह हमारी जिंदगी को सांसें देते हैं तो सांसें तोड़ते भी है ।

इन महीनों में समय एक लुहार की तरह होता है जो हमारे जीवन पर चोट करता रहता है।हमें सचेत करता रहता है।समय की धारा में हम सब बहती धारा है।सुख दुख के दो किनारे है ।इनकी उथल पुथल में जिंदगी कभी संवरती है कभी बिगड़ती है।महीनों के साथ साल के 365 दिन भी एक्य भाव से नहीं रहते। ऋतुओं की तरह हमें परिवर्तित करते रहते है‌।सूरज के उगते ही हम सूर्यदेव से कामनाओं में जल चढ़ाते हुए नमस्कार करते हैं अपने लिए ,अपनों के लिए सष्टि के लिए कि साल भर के ये दिन हमें खुशहाल रखें ,स्वस्थ रखें। पर दिन मुठ्ठी में कहां बंधे हैं ।रेत से दिन फिसलते हुए हमें कभी खुशियों से सराबोर कर देते हैं तो कभी चिंताओं के पिंजरें में जकड़ देते हैं।

दिन ब दिन हम सपने साकार करने के लिए अथक परिश्रम करते है ।चांद को छूना चाहते हैं ।चांद कभी बादलों में कभी बदलियों में छुप जाता है।आंख मिचौली का खेल खेलता है जैसे जिंदगी। सफलताएं पास आकर भी कभी कभी दूर हो जाती है जैसे चांद।जल्दी जल्दी में कभी सूरज की तेज किरणों से स्वप्न ध्वस्त भी हो जाते हैं ।

जब हम साल के साथ महिनों ,महीनों के साथ दिनों की बात करते हैं तो दिनों के साथ जुड़े पलों को नजर‌अंदाज कदापि नही कर सकते?” आने वाला पल जाने वाला है ,हो सके तो इसमें जिंदगी बीता दें पल ये जाने वाला है”गीत हमें आगाह करता है ये साल हमारी आंखों से बस ओझल होने वाला है।

जाते हुए साल में हमने जिससे यारी कम दुश्मनी ज्यादा पाली हो उससे फिर से जुड़कर यराना निभाएं।

साल ,महीने ,दिनों के साथ साथ हमारे अच्छे पल हमारी सकारात्मक सोच हमें उत्कर्ष पर ले जाएं ।जाते हुए साल को सलाम,आते हुए साल को प्रणाम।।

 

      लाल बहादुर श्रीवास्तव

      शब्द शब्द ,एल आई जी ऐ15

      जनता कालोनी मंदसौर

      9425033960 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}