मंदसौरमध्यप्रदेश

मुख्यमंत्री श्री चौहान 8 दिसंबर को दशपुर जनपद पुस्तक का करेंगे विमोचन

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दशपुर जनपद संस्कृति नामक ग्रंथ 1962 में प्रकाशित, जिसका अब पुनर्मुद्रण करवाया गया

मंदसौर के गौरव की प्रतीती कराने वाला दशपुर जनपद संस्कृति ग्रंथ प्रत्येक युग में जनपदों का अपना महत्व रहा है, वे अपने में अपना इतिहास, संस्कृति, परंपरा, लोकाचार को समेटे रहकर अपना गौरव प्रदर्शित कर रहे हैं। इसी प्रकार दशपुर जनपद महाराज रंतिदेव की राजधानी रही, हृदय सम्राट सहस्त्रार्जुन से शासित सम्राट उदयन की चातुर्मास स्थली, कालांतर में महाराजा यशोधर्मन से रक्षित, वर्तमान में मंदसौर के नाम से विख्यात है। इस प्राचीन सुप्रसिद्ध मंदसौर नगर के तत्कालीन बुनियादी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा 1962 में ” दशपुर जनपद संस्कृति नामक ग्रंथ प्रकाशित किया था जो वर्तमान में अनुपलब्ध था। दशपुर जनपद का समय परिचय व दिग्दर्शन कराने वाले ग्रंथ की द्वितीय आवृत्ति जिला कलेक्टर श्री गौतम सिंह के मार्गदर्शन में पुनर्मुद्रण कर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य एवं समिति द्वारा प्रस्तुत की गयी, जिसका अनावरण मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया जायेगा।

मंदसौर की प्राचीनता, संस्कृति, पुरातत्व इतिहास लोकाचार साहित्य, संत व विशेषजनों से परिचय कराने वाला यह ‘दशपुर जनपद संस्कृति का ग्रंथ 6 खण्डों व 2 विशेष स्तंभों में विभाजित किया गया है।

प्रथम खंड इतिहास खंड है जिसमें दशपुर जनपद, दशपुर और ओलिंकर वंश, सम्राट यशोधर्मन और दशपुर, मुगलकालीन मंदसौर मंदसौर और 1857, इंद्रगढ़ और धर्मराजेश्वर जैसे स्थान व घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल भादवामाता, जीरण का इतिहास, नीमच, मुगल मराठा संघर्ष में मंदसौर आदि से परिचय कराया गया है।

द्वितीय खंड जनश्रुति खंड है जिसमें दशपुर की स्वाभिमानी दशोरा जाति व तत्कालीन मंदसौर जिले के पोला डूंगर, सुखानंद, शामगढ, आंतरी माता, मोड़ी के भग्नावशेष, अफजलपुर ग्राम बूढ़ा से अवगत कराया गया है।

तृतीय खंड साहित्य खंड है। जिसमें जैन साहित्य, कालिदास और वत्सभत्तिका का दशपुर, जैन आचार्य समन्तभद्र और दशपुर के साहित्य से परिचय कराया गया है।

चतुर्थ खंड पुरातत्व खंड है, जिसमें प्राचीन सिक्कों, सौंधनी जयस्तंभ का शिलालेख, बसेड़ा के मंदिर, यशवंतराव होलकर बहादुर की छत्री, अर्धनारीश्वर प्रतिमा व मंदसौर के भित्ति चित्रों से परिचय कराया गया है।

पंचम खंड जन भाषा खंड है, जिसमें जिले की द्राविड़ी भाषा, भील बोली, मातृभाषा जावदी और दशपुरी मालवी की विशेषताओं को संजोया गया है।

षष्ठ खण्ड लोक संस्कृति खण्ड में क्रांतिदूत, साहित्यकार, समाजसेवियों के कृतित्व व व्यक्तित्व से अवगत कराया गया है।

इस ग्रंथ के पोथियों शीर्षक में रामस्नेही संप्रदाय की हस्तलिखित पोथियों, रघुबीर पुस्तकालय व दशपुर जनपद के लोकगीतों का विवरण दिया गया है।

विविध खंड में दशपुर और राजस्थान का संबंध मालवा की पहेलियां, सझा गीत, करुण गीत, लोकनाट्य, लोकहास्य, संत विभूतियों, दशपुर के शिलालेख एवं उनकी लिपियों, बालकथाओं, प्राण वल्लभाएँ, सहकारिता, कुलवधुएँ, मेले व प्राचीन – नवीन उद्योग धंधों के बारे में जानकारी प्रदान की है। ग्रंथ में जगह – जगह उपलब्ध चित्र दर्शाए गए हैं। इस प्रकार यह ग्रंथ जिज्ञासुओं, शोधार्थियों, पुरातत्ववेत्ता, इतिहासज्ञों, साहित्यकारों, लोकाचारों की जानकारी प्राप्त करने वाले के लिए उपयुक्त ग्रंथ है। हर शाला महाविद्यालय, पुस्तकालय, विद्यार्थियों के लिए संग्रहणीय ग्रंथ है। मंदसौर का गौरव जानना, इस पुस्तक को पढ़े बिना अधूरा रहेगा।

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