पुण्यतिथि विशेष -महापुरुष वीर दुर्गादास राठौड़
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इतिहास दर्शन-
पुण्यतिथि विशेष महापुरुष वीर दुर्गादास राठौड़
साहसी, वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म आसकरण के घर 13 अगस्त 1638 को सालवा, जोधपुर में हुआ। दुर्गादास राठौड़ अपने पिता से दूर सालवा में अपनी माता नेतकंवर के साथ रहते थे। नेतकंवर ने दुर्गादास को धार्मिक तथा देश भक्ति के संस्कार दिए और उनका पालन-पोषण किया। दुर्गादास के पिता आसकरण मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह की सेना के वीर सेनापति थे अतः वह जसवंत सिंह के साथ जोधपुर में ही रहते थे।एक समय की बात है जब दुर्गादास नन्हे ही थे और अपने खेतों की रखवाली कर रहे थे तभी कुछ चरवाहे अपने ऊंटो को खेतों में चराने लगे यह देख बालक दुर्गादास ने उन्हें रोका और पशु चराने से मना भी किया। पशु के चरने से खेतों की फसल खराब हो रही थी परंतु चरवाहों ने बालक की बात अनसुनी कर दी और मारवाड़ तथा महाराज के बारे में अपशब्द कहने लगे। यह सुनकर बालक दुर्गादास गुस्से पर काबू न रख पाए और उन्हें मृत्युदंड दे डाला। जब यह सारी बातें महाराजा जसवंत सिंह को पता चली तो उन्होंने उस वीर बालक को अपने दरबार में बुलाया और सब बात पूछी। महाराजा के आदेश पर वीर बालक दरबार में उपस्थित हुआ और निडरता से अपनी बात कह डाली। महाराजा इस बालक को दंड देने वाले थे परंतु बालक की निडरता और वीरता देख उसे उपहार में एक कृपाण दी तथा अपनी सेना में शामिल कर दिया।इस समय दिल्ली के सम्राट औरंगजेब थे तथा औरंगजेब चाहता था कि पूर्ण अजमेर पर उसका आधिपत्य हो जो कि जसवंत सिंह के जीवित रहते हुए असंभव था। औरंगजेब में 1678 में षड़यंत्र पूर्वक राजा जसवंत सिंह को पठान विद्रोहियों से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेजा तथा इस षड्यंत्र में औरंगजेब कामयाब हुआ और नवंबर-दिसंबर 1678 में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई और उसका कोई जीवित पुत्र भी नहीं था परंतु जसवंत सिंह की मृत्यु के वक्त उनकी दो रानियां गर्भवती थी। दोनों रानियों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया। रानी नरूकी के पुत्र का नाम “रणथंबन” था जिनकी जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई । तथा रानी जादम के पुत्र का नाम “अजीत सिंह” था ।दिल्ली सम्राट औरंगजेब ने जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात जोधपुर पर अपना आधिपत्य जमा दिया एवं शाही हाकिम को गद्दी पर बैठा दिया।औरंगजेब जोधपुर पर आधिपत्य जमा देता है और अजीत सिंह को मारने के षड्यंत्र करने लगता है। औरंगजेब पूर्ण रुप से अजमेर पर शासन करना चाहता था और अजीत सिंह को मारना चाहता था परंतु वीर दुर्गादास औरंगजेब के हर षड्यंत्र को विफल कर अजीत सिंह को बचा लेता है। एक बार औरंगज़ेब अजीत सिंह को आमंत्रण भेजता है और मारवाड़ का राजा घोषित करने को भी कहता है परंतु दुर्गादास समझ जाते कि यह भी कोई षड्यंत्र ही है और अजीत सिंह को पुनः बचा लेते हैं। दुर्गादास बाल्यावस्था से युवावस्था तक अजीत सिंह को बचाते हैं और अपना संपूर्ण जीवन दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ पर न्योछावर कर लिया तथा उन्होंने मारवाड़ में कोई बड़ी पदवी हासिल ना करते हुए मारवाड़ की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। अंत में वीर दुर्गादास ने महाराजा जसवंत सिंह को दिया हुआ वादा निभाया और अजीत सिंह को राजगद्दी सौंपकर मारवाड़ को छोड़कर महाकाल की नगरी उज्जैन चले गए जहां वीर दुर्गादास ने संयास ले लिया और अपने अंत समय तक शिप्रा नदी के किनारे अवंतिका नगरी में महाकाल की भक्ति करने लगे। यहीं पर उनका 22 नवंबर 1718 को निधन हो गया।उज्जैन में जिस जगह पर वीर दुर्गादास राठौड़ का अंतिम संस्कार किया गया वहीं अति सुंदर नक्काशी कर छतरी बनाई गई है । दुर्गादास ने सनातन धर्म की रक्षा की तथा इस्लामीकरण का पूर्ण रूप से विरोध किया।, वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के एवं पोस्ट स्टांप भारत सरकार द्वारा जारी किए गए।