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मजदूरी से मालिक तक का सफर ,रतन टाटा हम सबको कह गए अलविदा

मजदूरी से मालिक तक का सफर, रतन टाटा हम सबको कह गए अलविदा 

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। वह नवल टाटा और सूनी टाटा के बेटे थे। 17 साल की उम्र में में रतन टाटा अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पढ़ने चले गए, जहां उन्होंने आर्किटेक्चर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर 1962 में भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने टाटा ग्रुप में बतौर असिस्टेंट नौकरी ज्वाइन की।

करीब 12 साल टाटा ग्रुप में अलग-अलग पदों पर काम करने के बाद 1974 में रतन टाटा ने Tata Sons बोर्ड में बतौर डायरेक्टर ज्वाइन किया। फिर 1991 में टाटा सन्स के चेयरमैन बने। 2012 में चेयरमैन का पद छोड़ा।

टाटा सन्स में अपने 50 वर्षों के कार्यकाल में रतन टाटा ने कंपनी को ग्लोबल लेवल पर खूब तरक्की दिलाई। रतन टाटा ने न सिर्फ व्यापार बढ़ाया, बल्कि आम लोगों के लिए चिकित्सा, शिक्षा, अनुसंधान से लेकर पशुओं के लिए परोपकार के समाज सेवा के अनगिनत काम किए।

बतौर टाटा सन्स चेयरमैन रतन टाटा की सैलरी सालाना 2.5 करोड़ रुपये के आसपास थी। यानी हर महीने करीब 20.83 लाख रुपये। हर दिन करीब 70 हजार रुपये। हर घंटे करीब 2900 रुपये। और हर मिनट करीब 48-49 रुपये। ये आंकड़ा भारत के किसी दूसरे बड़े उद्योगपति की हर मिनट की कमाई से काफी कम है।

रतन टाटा ने टाटा संस के माध्यम से शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में अरबों रुपये दान किए हैं। यह लेख उनके जीवन, कार्यों और समाज पर उनके प्रभाव पर प्रकाश डालता है।

एक मुकाम हासिल करने के बाद उद्यमी समाजोन्मुखी कार्यों की ओर रुख करते हैं। ऐसे लोगों में रतन टाटा प्रमुखता से पहचाने जाते हैं। रतन टाटा ने टाटा संस के माध्यम से शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में हजारों करोड़ रुपये का दान दिया है।

रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील कंपनी के किसी आलीशान कमरे में बैठकर फाइलें देखने और ऑर्डर पास करने से नहीं की थी। बल्कि पसीने से तरबतर होकर काम करने वाले ऐसे ही मजदूरों के साथ रतन ने अपने करियर की शुरुआत की थी। यानी कच्चे लोहे और लौह अयस्क की खुदाई करना। खुदाई करके निकाले गए अयस्क को ढोकर दूसरी जगह ले जाना। इतना ही नहीं, धधकती भट्ठियों के पास खड़े होकर एक मजदूर की तरह दूसरे मजदूर की तरह अयस्क प्रसंस्करण का काम किया रतन टाटा ने। करोड़ों के कारोबार करने वाले मालिक का बेटा खुद की कंपनी में पहले मजदूर की तरह काम करे तो यह किसी को भी यकीन करना मुश्किल होगा। लेकिन यह सच है।

कैलिफ़ॉर्निया विश्वविद्यालय में टाटा हॉल: रतन टाटा ने 2016 में सैन डिएगो स्थित कैलिफ़ॉर्निया विश्वविद्यालय में टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी (TIGS) के निर्माण के लिए 70 मिलियन डॉलर का दान दिया था। जैविक और भौतिक विज्ञानों के अनुसंधान के लिए समर्पित यह 128,000 वर्ग फुट में फैला 4 मंजिला भवन है। पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा कुशल यह इमारत अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं, कार्यालयों और सभागारों से सुसज्जित है। यहाँ जेनेटिक्स और रोग नियंत्रण पर शोध किया जाता है। साथ ही, दुनिया को परेशान कर रही संक्रामक बीमारियों और टिकाऊ खाद्य स्रोतों की समस्याओं को दूर करने की दिशा में काम कर रहा है।

भारतीय छात्रों को सहायता: कॉर्नेल विश्वविद्यालय में पढ़ रहे भारत के स्नातक छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए टाटा समूह की एक इकाई टाटा एजुकेशन एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट ने 28 मिलियन डॉलर की स्कॉलरशिप फंड की स्थापना की है। इससे आर्थिक तंगी के बावजूद भारतीय छात्र कॉर्नेल विश्वविद्यालय में शोध करने का सपना देख सकते हैं। हर साल दी जाने वाली इस छात्रवृत्ति को छात्रों के स्नातक होने तक जारी रखा जाएगा। कॉर्नेल टेक में स्थित टाटा इनोवेशन सेंटर का नाम भी उद्योगपति रतन टाटा के नाम पर रखा गया है। इसे मुख्य रूप से छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए समर्पित किया गया है।

हार्वर्ड केंद्र का निर्माण: हार्वर्ड विश्वविद्यालय में 100 मिलियन डॉलर की लागत से बने कार्यकारी केंद्र के लिए रतन टाटा ने 50 मिलियन डॉलर का योगदान दिया था। इसकी स्मृति में 155,000 वर्ग फुट में फैली 7 मंजिला इमारत का नाम टाटा के नाम पर रखा गया है। सीमित संसाधनों वाले लोगों के लिए आवश्यकताओं के अनुकूल डिजाइन और इंजीनियरिंग सिद्धांतों को विकसित करने के लिए 2014 में टाटा सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एंड डिज़ाइन (TCTD) की स्थापना की गई थी। इसके लिए दिया गया 950 मिलियन रुपये का दान ऐतिहासिक है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान: अल्जाइमर रोग के कारणों का अध्ययन करने और प्रारंभिक अवस्था में ही इसकी पहचान कर इलाज के तरीके विकसित करने के लिए सेंटर फॉर न्यूरोसाइंस को टाटा ने 750 मिलियन रुपये का दान दिया।

संसाधन की कमी वाले समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में MIT टाटा सेंटर ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिज़ाइन की स्थापना की गई थी। टाटा स्टील कंपनी के मजदूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम अयस्क संग्रहण, परिवहन, भट्ठी के पास काम, खनन क्षेत्रों में खुदाई करने वाले मजदूरों को आपने देखा होगा। नीले कपड़े पहने, सिर पर हेलमेट लगाए हमेशा अपने काम में लगे रहने वाले मजदूर।

 

टाटा इंडिका: भारत की पहली स्वदेशी निर्मित कार, आज भारत की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी के रूप में पहचान बनाने वाली टाटा मोटर्स, टाटा समूह की एक अनुषंगी कंपनी है। इसकी स्थापना 1945 में हुई थी। रतन के टाटा समूह के प्रमुख बनने के बाद उनकी सलाह पर टाटा मोटर्स ने भारतीय शेयर बाजार में प्रवेश किया। 30 दिसंबर 1998 को टाटा मोटर्स के सपनों की कार ‘टाटा इंडिका’ को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया। इसका प्रचार इतना जबरदस्त था कि सार्वजनिक रूप से अनावरण के महज एक हफ्ते के भीतर ही करीब 1 लाख 15 हजार लोगों ने इंडिका कार बुक करा ली थी। अगले दो वर्षों तक इंडिका के पास भारत की नंबर 1 कार होने का तमगा रहा। टाटा द्वारा निर्मित इस कार को भारत की पहली स्वदेशी कार माना जाता है।

इतना ही नहीं, कारों के तो रतन टाटा दीवाने हैं। उनके पास लग्जरी कारों का अच्छा खासा कलेक्शन था। फेरारी कैलिफ़ोर्निया, कैडिलैक XLR, लैंड रोवर फ्रीलैंडर, क्रिसलर सेब्रिंग, होंडा सिविक, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, मसेराती क्वाट्रोपोर्टे, मर्सिडीज बेंज 500 SL, जगुआर F-टाइप, जगुआर XF-R और कई अन्य लग्जरी कारें रतन टाटा के पास थीं। इतना ही नहीं वह उनकी देखभाल भी खुद करते थे।

बेंगलुरु में एफ 16, एफ 18 उड़ा चुके पायलट, 2 दशकों तक टाटा समूह का नेतृत्व करने वाले, देश के जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा बेहद शर्मीले स्वभाव के हैं। घर, कंपनी के अलावा वह कम ही कहीं नजर आते थे। रतन टाटा मुंबई स्थित अपने फ्लैट में ज्यादातर समय किताबें पढ़ने में बिताते थे। रतन को कुत्तों से बेहद लगाव है। उन्हें कुत्तों के साथ घूमना बहुत पसंद है। वह कई बार अपने 3-4 कुत्तों के साथ यात्रा पर निकल जाते थे। उनके साथी थे, सीडी, किताबें और कुत्ते। रतन का एक और पसंदीदा शौक अपने निजी जेट में यात्रा करना है। वीकेंड पर अपने जेट से आसमान में उड़ान भरना उन्हें बहुत पसंद था।

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