इतिहास दर्शन

भारतीय अंगदान और देहदान के प्रणेता, परम तपस्वी महर्षि दधीचि

 परम तपस्वी महर्षि दधीचि की जयंती (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी)-

 

भारतीय अंगदान और देहदान विषय के प्रणेता, परम तपस्वी महर्षि दधीचि की जयंती (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) पर महर्षि को अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ शत-शत नमन।

मानवता के लिए हमारे शरीर का भी उपयोग हो सकता है यह विषय हजारों वर्ष पहले हमारी संस्कृति ने विश्व के सामने प्रस्तुत किया है। यदि यह कहा जाए की मानवता के लिए देहदान और अंगदान का प्रारंभ भारत से हुआ है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

देवताओं और दानवों के बीच में संग्राम था, और असुरों पर विजय प्राप्त करने के लिए मानव शरीर (हड्डियों) की आवश्यकता थी। महर्षि दधीचि इस अनन्य त्याग के लिए आगे आए, आपकी अस्थियों से वज्र बना और असुरों का संहार हुआ।

मान्यवर, बंधुओ जिन्हे भी लगता है कि हमारे नेत्रदान या अंगदान के पश्चात अगले जन्म में हमारा क्या होगा?

निश्चित रूप से यह प्रश्न महर्षि दधीचि के पास भी आया होगा? बिना हड्डियों के अगला जन्म कैसे मिलेगा, यदि हड्डियां नहीं है तो मानव जन्म मिलेगा या नहीं?

आगे का विषय अत्यंत प्रेरणादायक है, महर्षि को अपने शरीर के दान के पश्चात स्वर्ग में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है, विधाता ने महर्षि का स्वागत करते हुए उन्हें देवलोक में स्थान प्रदान किया, और इस तरह वह अमर हो गए।।

बंधुओ,

हम सभी परमेश्वर की संतान हैं, ईश्वर ने हमें इस धरती पर भेजा है और हमें लौटकर वापस ईश्वर के पास जाना है, कल्पना कीजिए आपका कोई सुपुत्र अच्छा कार्य करके शाम को जब घर लौटता है तो आपका रिएक्शन कैसा होगा?

निश्चित रूप से एक पुण्य के कार्य को करके, जब कोई पुण्यात्मा देवलोक को प्रस्थान करती है, निश्चित रूप से परमेश्वर के यहां उसका अभिनंदन ही होगा।

आई महर्षि दधीचि का जन्म दिवस हम सभी को नेत्रदान और अंगदान के लिए प्रेरित करें, हम भ्रांतियां से ऊपर उठे, मानव का कल्याण हो, मानवता का कल्याण हो।

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