सन्यासी व्यक्ति किसी को कष्ट नहीं देता, मोह माया नहीं रखता- स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती
मन्दसौर। श्री केशव सत्संग भवन खानपुरा मंदसौर पर दिव्य चातुर्मास पूज्यपाद 1008 स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ऋषिकेश के सानिध्य में चल रहा है। स्वामी जी द्वारा प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 10 बजे तक श्रीमद् भागवद् महापुराण के एकादश स्कन्द का का वाचन किया जा रहा है।
शनिवार को धर्मसभा में स्वामी श्री आनन्द स्वरूपानंदजी सरस्वती ने सन्यासी जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि शास्त्रों में भगवान कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को विचार करके सन्यास लेना चाहिए क्योंकि यह पथ आसान नहीं होता है। शास्त्रों के अनुसार सन्यासी को आदर्श आचार संहिता का पालन करना होता है। इसमें बताया गया है कि सन्यासी व्यक्ति को सबसे पहले मोह माया और सांसारिक जीवन से लगाव को त्यागना होता है तभी वह सन्यासी जीवन के निर्वहन कर पायेंगा। शास्त्र बताते है कि महात्मा व्यक्ति को हिंसक नहीं होना चाहिए। चलते समय भी ध्यान रखना चाहिए कि हमसे किसी जीव को कष्ट न पहुंच जायें। शुद्ध पानी का सेवा करना चाहिए पीने के पानी को छानकर उपयोग करना चाहिए। सदैव सत्य बोलना चाहिए, चाहे सत्य बोलने से प्राण चलें जायें या किसी को बुरा लगे तभी सन्यासी व्यक्ति को सत्य ही बोलना चाहिए। कोई भी कार्य करने से पहले यह विचार करो की ंइस कार्य से किसी अन्य को कष्ट तो नहीं पहुंच रहा है यदि ऐसा हो रहा है तो वह कार्य मत करो। आप ने बताया कि यह सब बातें सन्यासी के लिए है लेकिन सांसारिक व्यक्ति को भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। आपने बताया कि कोई भी व्यक्ति हाथ में दण्ड लेने से सन्यासी नहीं बन जाता उसे वाणी, शरीर और मन को दण्ड देना पडता है तब जाकर कोई सन्यासी बनता है।
कार्यक्रम के अंत में भगवान की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरित किया गया। इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष जगदीशचंद्र सेठिया, सचिव कारूलाल सोनी, प्रहलाद काबरा, इंजि. आर सी पाण्डेंय, मदनलाल गेहलोत, पं जगदीश गर्ग, पं शिवनारायण शर्मा, नीलमचंद भावसार, घनश्याम भावसार, राधेश्याम गर्ग, भगवतीलाल पिलौदिया, डॉ प्रमोद कुमार गुप्ता, राजेश देवडा, प्रवीण देवडा सहित बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे।