संस्कृत विश्व बंधुत्व की भाषा है यह परस्पर एक दूसरे को आपस में जोड़ती है – डॉ. नागर जी
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पीएम एक्सीलेंस कॉलेज में संस्कृतमहोत्सव का आयोजन हुआ
एम. ए. संस्कृत प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को नगद राशि से पुरस्कृत किया गया
मंदसौर। प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस, राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मन्दसौर के संस्कृत विभाग एवं भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और संस्कृत भारती मंदसौर के संयुक्त तत्वावधान में संस्कृत सप्ताह और संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में संस्कृत महोत्सव एवं संस्कृत प्रतिभा पुरस्कार वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें “संस्कृत की आवश्यकता क्या है?”इस विषय पर विशिष्ट व्याख्यान और महाविद्यालय स्तर पर संस्कृत विषय की प्रावीण्य की सूची में स्थान प्राप्त संस्कृत प्रतिभाओं एवं संस्कृत गीत, श्लोक गायन तथा भाषण इत्यादि प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया ।
कार्यक्रम का शुभारम्भ भारतीय परंपरानुसार वाग्देवी हंस वाहिनी बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के श्री चरणों में पुष्पार्पण और माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलित कर सरस्वती वन्दना के साथ हुआ। महाविद्यालय पक्ष से आमन्त्रित आए हुए अतिथियों, मुख्य वक्ता, विशिष्टातिथि एवं अन्य अतिथियों को तिलक लगाकर माला पहनाकर, शाल एवं श्रीफल से सम्मानित किया गया। स्वागत भाषण डॉ. प्रीति श्रीवास्तव (संस्कृत विभागाध्यक्ष) ने किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि संस्कृत भारती के प्रान्तीय सदस्य डॉ. मिथिलेश नागर जी ने संस्कृत भाषा का महत्व बताते हुए कहा कि संस्कृत देव भाषा है। मैं स्वयं गणित विषय में एम.एस.सी. होते हुए भी संस्कृत के ज्ञान भण्डार को देखते हुए इसके प्रति आकृष्ट हुआ। संस्कृत विश्व बंधुत्व की भाषा है यह परस्पर एक दूसरे को आपस में जोड़ती है। “वसुधैव कुटुम्बकम्” संस्कृत का मूल मंत्र है। भारतीय जीवन दर्शन को समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन परम आवश्यक है। श्री नागर जी ने आगे कहा कि संस्कृत भाषा अत्यंत सरल एवं मधुर है लोगों को जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा सञ्चालित ‘संस्कृताध्ययनकेंद्रम्’ मन्दसौर विश्वविद्यालय मन्दसौर के वरिष्ठ आचार्य श्री ओमप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा होते हुए भी आधुनिक भाषा है, क्योंकि यह संस्कृत भाषा ज्ञान विज्ञान का सागर है। विश्व की सभी भाषाओं एवं संस्कृतियों के अस्तित्व का आधार है, कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त संस्कृत है। आज संस्कृत के बिना भारत की कल्पना करना अपूर्ण है। संस्कृत वाङ्मय में वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत, रामायण, श्रीमद् भगवतगीता, योग, आयुर्वेद, वेदांत और अन्य अनेक ग्रंथ है, जो की समग्र विश्व शान्ति एवं उत्तरोत्तर विकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। आचार्य ओमप्रकाश द्विवेदी ने संस्कृत का अध्ययन एवं अध्यापन संस्कृत के माध्यम से करने पर विशेष आग्रह किया।
इस पावन अवसर पर मुख्य वक्ता प्रो. के. आर. सूर्यवंशी (विभागाध्यक्ष संस्कृत) ने कहा कि ज्ञान समृद्ध संस्कृत भाषा में सन्निहित ज्ञान विज्ञान को प्राप्त करने के लिए, समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन परम आवश्यक है। संस्कृत भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की संवाहिका है। अतः एक सुन्दर सभ्य समाज की कल्पना संस्कृत के बिना असंभव है इसलिए आज हम सभी को संस्कृत पढ़ना और सीखना चाहिए।
संस्कृत विभाग द्वारा संस्कृत सप्ताह समारोह मनाने के लिए महाविद्यालय की जनभागीदारी समिति अध्यक्ष श्री नरेश चन्दवानी एवं प्राचार्य डॉ. डी.सी. गुप्ता द्वारा प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अत्यन्त हर्ष की बात है कि महाविद्यालय में वर्तमान में बी.ए. एवं एम.ए. (संस्कृत) में लगभग 800 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. अनिल कुमार आर्य संस्कृत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज भारत में ही नहीं समग्र विश्व में लोग संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं और इसी के साथ डॉ. अनिल आर्य द्वारा कार्यक्रम का सफल संचालन भी किया गया।
इस अवसर पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरण भी किया गया। साथ ही संस्कृत सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. वन्दना शुक्ला द्वारा प्रदत्त एक लाख राशि के ब्याज से एम. ए. (संस्कृत) में सर्वाधिक अंक लाकर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की स्वर्ण पदक विजेता भावना रायकवार को संस्कृत प्रतिभा पुरस्कार के रूप में 1500 रुपए नकद प्रदान किए गए। द्वितीय स्थान प्राप्त दीपमाला को 1000 एवं तृतीय स्थान प्राप्त सीमा सेठिया को 500 रूपए का नगद पुरस्कार दिया गया। संस्कृत सप्ताह के इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों के साथ में अनेक अभिभावक भी उपस्थित रहे।
“सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मां कश्चित् दु:खभाग्भवेत्”।। इस विश्व कल्याण की शुभकामना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। जयतु संस्कृतम्, जयतु भारतम् ।