“राम-कृष्ण” के गुणों का वट वृक्ष थे दादा
वैकुंठाधिपति चराचर पति श्री हरि विष्णु ने सृष्टि में मर्यादा और अधिकार व सच के लिए लड़ने हेतु मर्यादाओं को भी लांघने की क्षमता रखने वाले दो अवतार लिए थे, जिनमें एक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम थे तो दूसरे पूर्ण पुरुषोत्तम श्री कृष्ण हुए। दोनों ही की लीलाओं से यह भली भांति सीखा जा सकता कि किस तरह जीवन को मर्यादित रखना है और किस तरह यदि सच का और अधिकारों का हनन हो रहा हो तो कैसे मर्यादाओं को लांघना है। ऐसे ही गुणों का वट वृक्ष रहे आदरणीय श्री रामकृष्ण नवाल(दादा) अब हमारे बीच नहीं रहे।
रामकृष्ण दादा जीवनभर अपने नाम के अनुरूप तमाम मर्यादाओं में भी रहे और यदि किसी के अधिकारों या सच का हनन हो रहा हो तो मर्यादाओं को लांघ कर उसकी हर सम्भव मदद भी की। उनका मर्यादा रूपी गुण आज भी उनके दोनों पुत्रों आशुतोष भैया, आशीष भैया व उनके पढ़ाए लगभग हर छात्र में दिखाई पड़ता है, तो वहीं मर्यादाओं को लांघकर अपने शिक्षक साथियों के लिए जो उन्होंने जीवनभर लड़ाई लड़ी है यह उनके पूर्ण पुरुषोत्तम स्वभाव को इंगित करता था। उनकी मर्यादाओं का एक उदाहरण यह भी रहा कि अपने शैक्षणिक साथियों की तमाम मदद करने के दौरान उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वे खुद एक दैनिक अखबार के संस्थापक भी हैं। अन्यथा वर्तमान में हो यह रहा कि जिनको अखबार का “अ” भी याद नहीं वे प्रेस जगत का न जाने क्या-क्या दुरुपयोग करते फिर रहे हैं। खैर कल रात से ही सुन रहा हूँ और जैसा कि मैंने स्वयं ने ऊपर लिखा है कि रामकृष्ण दादा अब हमारे बीच नहीं रहे, जबकि एक सत्य यह भी है कि इस तरह की शख्सियत कभी मरा नहीं करती बल्कि उनके सिद्धांत और आदर्श सदा-सदा के लिए हमारे अंतर्मन में स्थापित रहते हैं।
दादा को विनम्र श्रद्धांजलि एवं ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ईश्वर नवाल परिवार को यह वज्रपात झेलने की क्षमता प्रदान करें।
श्रद्धानवत
*ललित एम पटेल*