” योग ही हमें सृष्टि के गूढ़तम रहस्यों के दर्शन करवाता है “
21 जून विश्व योग दिवस पर विशेष –
” योग ही हमें सृष्टि के गूढ़तम रहस्यों के दर्शन करवाता है “
– सत्येन्द्र सक्सेना
जिला अध्यक्ष नीमच एवं मध्य प्रदेश सहसचिव
इंटरनेशनल नेचुरोपैथी ऑर्गेनाइजेशन ।
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” यह महर्षि पतंजलि कृत ” योगसूत्र ” का दूसरा सूत्र है । महर्षि पतंजलि ने योग को मन की चंचलता को स्थिर करने की प्राचीनतम तकनीक कहा है । योगदर्शन को संक्षिप्त सूत्रों में निबद्ध कर महर्षि पतंजलि ने गागर में सागर भरने का काम किया है । आज विश्व में योग के सिद्धांतों और तकनीक पर अनुसंधान हो रहें है । यह भारतवर्ष के लिए गर्व और उपलब्धि का विषय है की हमारे ऋषि मुनियों और विदजनों नें प्राचीन समय ही कितना कुछ गड़ा जो आज भी सामयिक और जब जानना चाहो कुछ नया ही है । प्राणायाम और योग के चमत्कारों के वृतांत जग जाहिर हैं । योग के द्वारा ही सृष्टि के गूढ़तम रहस्यो का दर्शन किया जाता है ।योग समाधि के द्वारा ही तत्व दर्शन, अतिन्द्रिय दर्शन, आत्म दर्शन तथा आत्मसाक्षात्कार किया जा सकता है । मनुष्य जीवन का मुख्य उद्धेश्य है, मोक्ष, कैवल्य की प्राप्ति, जीवन की सार्थकता इसी में है। पूरा विश्व महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग को ही योग का आधार मानता है । योग के साथ हमें स्थिरता, दृढ़ता, लचक, संतुलन, आत्मसंयम, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है । यह केवल व्यायाम नहीं है अपितु जीवन जीने की उत्तम और अनुशासित कला है । योग सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित है जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य लाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह स्वस्थ और सुदृढ़ जीवन जीने का विज्ञान और कला है । ‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘जोड़ना’ या ‘जोड़ना’ या ‘एकजुट होना’ । योग के मूल अर्थ में ही जोड़ना है । हम आसन करते है और योग कह जाते हैं जबकि आसन तो योग के आठ अंगों में तीसरा अंग है । हमें यह भी समझना आवश्यक है की हम यम नियम का पालन करते हुए आसन पर जाएं । योग का अंतिम लक्ष्य आत्म साक्षात्कार है । यथा सर्वमान्य योग के अर्थ को पूर्ण करते हुए हम आज 21 जून 2024 को 10 वें योग दिवस पर यह प्रण लें जीवन क्रम में हर सकारात्मक ऊर्जा को जोड़ते जाएं एवं परम् शक्ति के दिए इस जीवन को सार्थक कर जाएं ।