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लोकसभा चुनाव: दो सीट एक उम्मीदवार पहले भी होता रहा

 

1996 के पहले तक अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी। बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो होगी।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी और केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो हंगामा मच गया। लेकिन वो अब दोनो सीट से जीत गए हैं। बीजेपी ने उन पर अमेठी से भागने का आरोप लगाया तो कांग्रेस इसकी वजह पार्टी को दक्षिण में मजबूत करना बता रही है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब नेताओं ने एक से ज्यादा सीट पर एक साथ चुनाव लड़ा। बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने वाराणसी और गुजरात की वडोदरा सीट से चुनाव लड़ा। दोनों जगह से वह जीते। उन्होंने खुद के काशी सीट से ही प्रतिनिधि रहने का फैसला किया।

रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में यह व्यवस्था दी गई थी कि व्यक्ति एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ सकता है। जबकि इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया है कि वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है।

अटल से शुरू हुई थी परंपरा

एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की परंपरा में पहला नाम अटल बिहारी वाजपेयी हैं। लखनऊ सीट पर 1952 में हुए उपचुनाव में हारने के बाद उन्होंने 1957 में तीन जगह से चुनाव लड़ा था। भारतीय जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से लड़े। लखनऊ, मथुरा में हारे, लेकिन बलरामपुर सीट से जीतने में सफल रहे।

इंदिरा ने नहीं लिया रिस्क

आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी आश्चर्यजनक रूप से रायबरेली से हार गई थीं। 1980 के चुनावों में उन्होंने जोखिम लेना ठीक नहीं समझा। उन्होंने रायबरेली के अलावा मेडक (अब तेलंगाना में) से दावेदारी की। कांग्रेस ने इंदिरा की दो सीटों पर दावेदारी को उत्तर के साथ दक्षिण को भी साधने की रणनीति के तौर पर पेश किया था। इंदिरा दोनों जगह से जीतीं हालांकि बाद में मेडक सीट छोड़ दी।

1996 में हुआ तय, केवल दो

1996 के पहले तक अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी। बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो होगी, जिनपर एक साथ उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है।

इलेक्शन कमिशन चाहता है बदलाव

हाल ही में एक से अधिक सीट से उम्मीदवारी करने की व्यवस्था के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल हुई। इस पर इलेक्शन कमिशन ने कहा कि सेक्शन 33(7) में बदलाव किया जाना चाहिए ताकि एक व्यक्ति एक ही जगह से चुनाव लड़ सके। आयोग ने माना कि दो जगह से जीतने वाला नेता बाद में एक सीट खाली कर देता है तो इसके बाद उपचुनाव कराने पड़ते हैं। इनमें अनावश्यक खर्च होता है।

2004 में भी हुई थी कवायद

2004 में भी चुनाव आयोग ने कोशिश की थी कि एक व्यक्ति एक ही सीट से चुनाव लड़े। उसने साथ में यह भी प्रस्ताव रखा था कि अगर मौजूदा व्यवस्था को ही बनाए रखना है तो उपचुनाव की स्थिति में प्रत्याशी ही चुनाव का पूरा खर्च उठाए। तब पांच लाख रुपये विधानसभा के लिए और 10 लाख रुपये लोकसभा चुनावों के लिए खर्च का आकलन किया गया था। दिनेश गोस्वामी कमिटी की 1990 में पेश की गई रिपोर्ट और लॉ कमिशन की इलेक्टोरल रिफॉर्म्स पर 1999 में जमा की गई 170वीं रिपोर्ट में भी एक व्यक्ति को एक ही जगह से चुनाव लड़ने की छूट देने की सिफारिश थी।

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