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भगवान की भक्ति से पहले घर परिवार का वातावरण शुद्ध-स्वच्छ और संस्कारित हो- पूज्य आचार्य रामदयालजी महाराज

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भक्ति का प्रथम सोपान है सेवा, दूसरा स्वाध्याय, तीसरा संयम, चौथा स्वाध्याय-पू. जगद्गुरू शंकराचार्य ज्ञानानंदजी तीर्थ महाराज

मन्दसौर। धर्मधाम गीता भवन अर्धशती समारोह, तृतीय दिवस समारोह में भानपुरा पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरू शंकराचार्य ज्ञानानंदजी तीर्थ महाराज का पर्दापण हुआ।

तृतीय दिवस नवधा भक्ति का तीसरा लक्षण स्मरण का उत्कृष्ट उदाहरण भक्त प्रहलाद का बताते हुए जगद्गुरू पूज्य श्री रामदयालजी महाराज ने कहा कि स्मरण भक्ति के आचार्य भक्त प्रहलाद है जिन्होनंे असुर कुल में जन्म लेने के बाद भी स्मरण भक्ति के बल पर जड़ खम्भे से निराकार भगवान को नृसिंह रूप में प्रकट करवा दिया और स्मरण भक्ति के प्रभाव से असुर कुल का भी उद्धार कर दिया। कामी-क्रोधी और लालची भक्ति नहीं कर सकता।

भगवान की भक्ति वहीं कर सकता है जो प्रहलाद की तरह शूरमा हो जिसे पिता हरण्य कश्यपु द्वारा भगवान की भक्ति करने से रोकने के लिये जहर पिलाने, पहाड़ से गिराने आदि अनेक भयंकर कष्टों से प्रताड़ित करने के बाद भी प्रहलाद ने भगवान का स्मरण भक्ति नहीं छोड़ी।

असुर वह है जो अपने से अपनी शत्रुता अहित करने वाले से बदला लेने की भावना रखता है और सुर अर्थात देवता वह है जो लाख अपना अनिष्ट करने वाले से बदला लेने के बदले भगवान से उसे सद्बुद्धि की प्रार्थना करता है।

भक्ति करने वाले में अहं, अभिमान, कुबुद्धी और कपटता नहीं होना चाहिये। मनुष्य योनी मिलने के बाद भी जो भजन नहीं करते, समझो यह पापों का परिणाम है।

भोजन में, व्यापारी का नोट गिनने में, गपशप में, मूवी देखने मे मन लगाना नहीं पड़ता, लग जाता है इसी प्रकार जब भगवान में मन लगना प्रांरंभ हो जायेगा तब समझो यह भक्ति है।

वर्तमान समस्त धरती कामनाओं विकारों से घिरी हुई है-वर्तमान तरूणाई जो विकारों का शिकार हो रही है उसे बचाने भगवान का स्मरण भक्ति आवश्यक है। भोजन की जैसे भूख लगती है ऐसी भूख भजन के लिये लगती है या नहीं ऐसा विचार करना चाहिये।

पू. जगद्गुरू शंकराचार्य ज्ञानानंदजी तीर्थ महाराज- भक्ति प्रसिद्ध है मुक्ति के लिये, भक्ति के अतिरिक्त मुक्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं हैं मोक्ष तो ज्ञान से प्राप्त हो जायेगा और ज्ञान भक्ति का पुत्र है बिना मॉ के ज्ञान अधूरा है। ज्ञान तलवार की धार है जिस पर हर कोई चल नहीं सकता केवल ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति मंे सरलता नहीं है।

कथा श्रवण में 2 शर्त है प्रीति और रूची। प्रीति और रुचि का भेद बताते हुए जगद् गुरूजी ने कहा जैसे भोजन में रुचि होने पर प्रथम हम कर लेते है तो यह रुचि है और यदि हम पहले दूसरों करा देते है और हम बाद में करते है तो यह प्रीति है।

भोजन से ज्यादा महत्व भजन का है- भोजन में मात्रा लगती है और भजन में कोई मात्रा नहीं है। जिसका अभिप्राय यह है कि भोजन मात्रा में अर्थात सीमित भूख से कम करना चाहिये जबकि भजन करने में कोई सीमा नहीं। जितना भजन करेंगे उतना ही हमारा भगवान की भक्ति में मन लगेगा।

भक्ति के 5 सोपान है- सेवा, साधना, संयम, स्वाध्याय, सत्संग।

वाणी के दोष- गाली गलोच, झूठ, कठोर (कड़वा) इनसे बचना चाहिये।

तन के दोष चोरी-हिंसा दुराचार से बचना चाहिये। शरीर से गलत कर्म करने पर पत्थर और पेड़ की योनी में जाना पड़ता है। जब भगवान विष्णु को शालिग्राम (पत्थर) और वृन्दा को पौधा (तुलसी) बनना पड़ा तो हम कैसे बच सकते है।

मन के तीन दोष- दूसरे के धन को देखकर येन केन उसे पाने की इच्छा करना-दूसरों के लिये बुरा सोचना और कर्तापन का अभिमान होना भगवान की भक्ति मंे चालाकी और चतुराई छोड़ना पड़ती है तभी भगवान कृपा करते है।

‘‘मन कर्म वचन छोड़ी चतुराई

भजत कृपा करि हे रघुराई।।’’

जगद्गुरूद्वय का स्वागत कर आशीर्वाद लिया- गीता भवन ट्रस्ट संरक्षक नरेन्द्र नाहटा, उपाध्यक्ष जगदीश चौधरी, सचिव पं. अशोक त्रिपाठी, धीरेन्द्र त्रिवेदी, सत्यनारायण पलोड़, बंशीलाल टांक, विनोद चौबे, शेषनारायण माली, आयोजन समिति संयोजक सम्पतलाल कालिया, अध्यक्ष प्रहलाद काबरा, स्वागताध्यक्ष राजेन्द्रसिंह अखावत, ओम चौधरी, राव विजयसिह, ब्रजेश जोशी, मदनलाल राठौर, रविन्द्र पाण्डेय, हरिसिंह राजपुरोहित, जगदीश काबरा, विद्या उपाध्याय, पुष्पा पाटीदार, पूजा बैरागी, रानू विजयवर्गीय, ज्योतिषज्ञ दीदी लाड़ कुंवर, आशा काबरा, डॉ. घनश्याम बटवाल, विश्व हिन्दू परिषद के गुरूचरण बग्गा, प्रदीप चौधरी, प्रवीण मण्डलोई, लक्की बड़ोलिया, कन्हैयालाल सोनगरा, विनोद जाट, नवनीत पारीख, श्यामसुंदर विश्वकर्मा, हेमंत बुलचंदानी, अमरदीप कुमावत आदि।

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