मंदसौरमंदसौर जिला
“अनहद” द्वारा राष्ट्रव्यापी अभियान “मेरे घर आकर तो देखो”

सामाजिक सद्भाव के लिए एकत्र हुए प्रबुद्ध जन
मंदसौर। देश को सामाजिक रूप से विभाजित करने के प्रयासों के बीच सामाजिक संगठन “अनहद” द्वारा राष्ट्रव्यापी अभियान “मेरे घर आकर तो देखो” चलाया गया। जिसमें भिन्न धर्मावलंबी एक दूसरे के परिवारों में जाकर आतिथ्य स्वीकारते हैं और उन्हें अपने परिवार में आमंत्रित करते हैं। अभियान अंतर्गत प्रगतिशील लेखक संघ के वरिष्ठ असअद अंसारी के आवास पर आयोजित एक गोष्ठी में शहर के प्रबुद्ध जन सम्मिलित हुए।
आयोजन को संबोधित करते हुए संगीत महाविद्यालय जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि आज के दौर में हिंदू या मुसलमान होना बड़ी बात नहीं है। महत्वपूर्ण है इंसान बना रहना। उन्होंने तरन्नुम में अशआर सुनाए। मेरे घर आकर तो देखो अभियान की पहल पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप शर्मा ने कहा कि इस अभियान से जुड़ना फख्र की बात है। इससे समाज में सद्भाव का विस्तार होता है।
उभरते शायर डीजे सिंह ने अपनी ग़ज़ल में कहा की “भूख से बिलखे न कोई, सबको निवाला चाहिए। गरीब के घर में भी तो थोड़ा उजाला चाहिए” वरिष्ठ पत्रकार स्वप्निल ओझा ने ईद पर आधारित शेर पढ़े उन्होंने कहा कि “खुशियां कि हम दोनों मिलकर तम्हीद बन गए हैं, तुम चांद बन गई हो हम ईद बन गए हैं।” प्रतापगढ़ राजस्थान से आए शायर जीवन टण्डेल ने पढ़ा कि “पूछती है सहेलियां तो छुपाना पड़ता है, अपनी करनी पर भी पछताना पड़ता है” शायर गौतम यादव ने अपने जज्बात की तर्जुमानी इस तरह की “भीड़ जो इतनी दरिया के आसपास लगती है, कोई तो पूछे कि दरिया को कितनी प्यास लगती है” हूरबानो सैफी ने पढ़ा “दिल और निगाह भी ना रहे इस प्यार में, पत्थर सी हो गई हूं तेरे इंतजार में।”
तालिब वारसी ने ये अशआर पेश किए नज़ाकत से मुझे यूं देखते हो,बताओ यो भला क्या सोचते हो
सेवानिवृत्ति उपयंत्री विकार अहमद सिद्दीकी ने सभी शायरों की हौसला अफजाई की।
पुलिस आरक्षक नरेंद्र सगोरे ने कई लोकप्रिय गायकों के गीत सुनाए। युवा कवि ध्रुव तारा, प्रतीक मिंडा, हेमंत कच्छावा ने भी अपनी प्रस्तुति दी। इस अवसर पर सैफ अली, शमीम अंसारी, जीवन साहू आसिफ अंसारी भी उपस्थित थे।
प्रारंभ में असअद अंसारी ने आयोजन के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रकाश गुप्ता ने की। आभार माना आसिफ अंसारी ने।
आयोजन को संबोधित करते हुए संगीत महाविद्यालय जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि आज के दौर में हिंदू या मुसलमान होना बड़ी बात नहीं है। महत्वपूर्ण है इंसान बना रहना। उन्होंने तरन्नुम में अशआर सुनाए। मेरे घर आकर तो देखो अभियान की पहल पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप शर्मा ने कहा कि इस अभियान से जुड़ना फख्र की बात है। इससे समाज में सद्भाव का विस्तार होता है।
उभरते शायर डीजे सिंह ने अपनी ग़ज़ल में कहा की “भूख से बिलखे न कोई, सबको निवाला चाहिए। गरीब के घर में भी तो थोड़ा उजाला चाहिए” वरिष्ठ पत्रकार स्वप्निल ओझा ने ईद पर आधारित शेर पढ़े उन्होंने कहा कि “खुशियां कि हम दोनों मिलकर तम्हीद बन गए हैं, तुम चांद बन गई हो हम ईद बन गए हैं।” प्रतापगढ़ राजस्थान से आए शायर जीवन टण्डेल ने पढ़ा कि “पूछती है सहेलियां तो छुपाना पड़ता है, अपनी करनी पर भी पछताना पड़ता है” शायर गौतम यादव ने अपने जज्बात की तर्जुमानी इस तरह की “भीड़ जो इतनी दरिया के आसपास लगती है, कोई तो पूछे कि दरिया को कितनी प्यास लगती है” हूरबानो सैफी ने पढ़ा “दिल और निगाह भी ना रहे इस प्यार में, पत्थर सी हो गई हूं तेरे इंतजार में।”
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सेवानिवृत्ति उपयंत्री विकार अहमद सिद्दीकी ने सभी शायरों की हौसला अफजाई की।
पुलिस आरक्षक नरेंद्र सगोरे ने कई लोकप्रिय गायकों के गीत सुनाए। युवा कवि ध्रुव तारा, प्रतीक मिंडा, हेमंत कच्छावा ने भी अपनी प्रस्तुति दी। इस अवसर पर सैफ अली, शमीम अंसारी, जीवन साहू आसिफ अंसारी भी उपस्थित थे।
प्रारंभ में असअद अंसारी ने आयोजन के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रकाश गुप्ता ने की। आभार माना आसिफ अंसारी ने।