डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने उपस्थित माताओं बहनों से आगाह करते हुए कहा कि शरीर के प्रदर्शन नहीं,आंखों की सुंदरता और व्यवहार वाणी की नम्रता का प्रदर्शन करना चाहिए

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सीतामऊ। श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस डॉ कृष्णानंद जी ने भगवान राम एवं कृष्ण के जन्म उत्सव एवं उनकी लीलाओं का वर्णन करते हुए कथा का श्रवण कराया डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान राम वे हैं जो सृष्टि में रहते हैं वह दशरथ नंदन हैं राम जी का स्वभाव सहज सरल और सर्व कार्य हैं ।
डॉ कृष्णानंद जी ने उपस्थित भक्त जनों को भाई प्रेम की कथा का वर्णन में बताया कि भगवान राम बाल समय में अपने भाइयों के साथ खेल खेल में जीतने के बाद भी हार जाते थे ऐसा इसलिए करते थे कि छोटे भाई भरत के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते थे। ऐसे ही भगवान श्री कृष्ण ने प्रेम रस बरसाते हुए सबको प्रेम के बंधन में बांधा। भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों ने किशोरावस्था में अपने भाइयों के साथ शिक्षा ग्रहण करने गए भगवान कृष्ण ने सांदीपनी ऋषि के यहां उज्जैनी में शिक्षा ग्रहण की तो राम ने अपने भाइयों के साथ गुरु विश्वामित्र के आश्रम में जाकर शिक्षा ग्रहण की शिक्षा ग्रहण कर विवाह योग्य हो गए राम भाइयों के साथ जनकपुर में राजा जनक के यहां आयोजित स्वयंवर में पहुंचे जहां पर राजा महाराजा के साथ राजकुमार भी स्वयंवर में सम्मिलित हुए । सभी उपस्थित राजा महाराजाओं ने स्वयंवर में धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए पहुंचे पर कोई धन उसको उठा नहीं सका। आखिरी में राम ने धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ा कर स्वयंवर में राजा जनक की बेटी जानकी के विवाह के लिए योग्य वर की तलाश पूर्ण हुई। इस प्रकार माता जानकी ने भगवान राम को वरमाला पहनकर रामजानकी एक हुए।
डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने उपस्थित माता बहनों से आगरा करते हुए कहा कि शरीर का प्रदर्शन नहीं करें शरीर के प्रदर्शन सुंदरता नहीं आती है शरीर के प्रदर्शन से दुख और संकट की ओर जाना पड़ सकता है। प्रदर्शन करना है तो आंखों की सुंदरता और व्यवहार वाणी की नम्रता का प्रदर्शन होना चाहिए। मातृशक्ति से निवेदन है कि जिसमें आपका आदर सम्मान प्रतिष्ठा हो वह कार्य करें। स्वतंत्रता सबमें हो पर स्वतंत्र यह नहीं है कि हमारी स्वतंत्रता से हमें और परिजनों को दुख की ओर जाना पड़े।
डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि जो भगवान गुरु ,माता – पिता के आगे झुकता है उस पर परमात्मा का आशीर्वाद सदैव रहता है।
महाराज श्री ने भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव की कथा का वृतांत करते हुए कहा कि द्वापर युग में उग्रसेन नाम के राजा मथुरा में राज करते थे उनके पास सब कुछ था पर कोई संतान नहीं थी उनके भाई की बेटी देवकी को अपनी संतान के रूप में गोद ली। देवकी धीरे-धीरे बड़ी हो गई खेलने कूदने लगी इधर कुछ समय के बाद राजा उग्रसेन को एक संतान ने जन्म लिया जिसका नाम कंस रखा गया कंस कुछ ही समय में बालक के रूप में चलने लगा फिर युवक बन गया और इस दौरान उसमें आसुरी प्रवृत्ति से जुड़ जाने के कारण वह आसुरी कार्य करने लगा। इधर राजा उग्रसेन ने देखा कि बालिका देव की योवन हो गई और उसका विवाह का मन में विचार करते हुए अपने मित्र के यहां वसुदेव से रिश्ता तय कर दिया और जैसे ही देवकी का विवाह वसुदेव के साथ संपन्न हुआ और विदाई की जा रही थी की कंस भी विदाई में सम्मिलित रहा वह समय आकाशवाणी हुई कि जिसे तू छोड़ने जा रहा है उस की आठवीं संतान से तेरी मृत्यु होगी कंस का मन बदला और विधायक के स्थान पर वहीं देवकी वह बहनों को कारागार में बंद कर दिया कंस की कुबुद्धि हुई और बहन की एक-एक कर 7 निर्दोष संतानों को मारकर बहुत बड़ा पाप का घड़ा भर दिया। पाप का घड़ा जैसे ही भरा कंस और उसके सैनिक सभी गहरी नींद में सो गए और भादवा कृष्ण अष्टमी की आधी रात कारागार जगमगा उठा वसुदेव- देवकी की बेड़ियां अपने आप खुल गई कारागार के ताले खुल गए और आठवीं संतान के रूप में एक बालक ने जन्म लिया। वसुदेव अपनी आठवीं संतान को पालने में लेकर आधी रात को अपने मित्र नंद बाबा के यहां जन्मी कन्या के पालने में सुला कर कन्या को वापस लेकर कारागार में पहुंच गए वह कन्या कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि महामाया जोगमाया स्वयं बहिन के रुप में भगवान बाल गोपाल की लीला को देखने के लिए अवतरित हुई।
डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि अपने लिए तो हर कोई करता है पर जो दूसरों के दुख आंसू पोछने कार्य करता हो उसको भगवान की सच्ची भक्ति करते हैं । हम सेवा में गौ माता की सेवा दीन दुखियों की सेवा कर प्रभु की भक्ति मार्ग की ओर बढ़ सकते हैं।
डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि हमारा मन सोच निगाहें समभाव होना चाहिए हमारे यहां काम करने वाले बाई, सेवादार , नौकर को नौकर नहीं कहना चाहिए क्योंकि हम सब उस प्रभु के नौकर हैं उसने अपने को दिया हुआ कार्य हम सब निभा रहे हैं।
डॉ कृष्णानंद जी ने कहा कि शांत मन और एकाग्र चित्त होकर प्रभु मिलन का समय भोर व गोधूलि बेला हैं जिसमें उस परम आनंद के दाता परमात्मा को याद किया जाता है । जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता है वह पार हो जाता है और जो समय का दुरुपयोग करता है वह डूब जाता है।
भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया धुमधाम से –
श्रीमद् भागवत महोत्सव के अवसर पर भगवान राम श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया इस अवसर पर ढोल ढमाको फुलों कि बारीश के साथ भगवान कृष्ण के बाल रूप नन्हे बालक को पालने में लेकर गोपाल मालवीय वसुदेव का स्वरूप धारण कर मांगलिक भवन परिसर में भ्रमण करते हुए मंचासीन व्यासपीठ पहुंचे जहां पर डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने बालक कृष्ण को गोद में उठाकर उपस्थित भक्तजनों को दर्शन लाभ प्रदान किए।
महाराज श्री का स्वागत वंदन अभिनन्दन-


कथा महोत्सव के आयोजन पर- पोरवाल समाज सीतामऊ द्वारा राधेश्याम घाटिया को साफा बांधकर फुल माला पहनाकर स्वागत अभिनंदन किया गया।
विशेष सम्मानित जन -श्री सुरेश दास बैरागी मनासा श्रीमती पार्वतीबाई पांचाल सीतामऊ श्री सुभाष चंद्र जी दोनों भाई अजमेर श्री रामगोपाल धनोतिया दीपा खेड़ा श्री कन्हैयालाल मुजावदिया मेलखेड़ा श्री आयुष त्रिवेदी मंदसौर श्री शिव राम प्रजापति तितरोद श्रीमती उषा तिवारी मंदसौर श्री जगदीश चंद्र बैरागी नीमच श्री पवन काला मंदसौर आदि ने श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में अपनी सहभागिता कर धर्म लाभ प्राप्त किया। स्वागत मंच का संचालन समाजसेवी दिलीप पटवा द्वारा किया गया।