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स्वाधीनता संग्राम में तारकनाथ दास ब्रह्मचारी जी के योगदान को हमेशा याद करते रहेंगे भारत के युवा – प्रित्तेश तिवारी

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22 दिसंबर 2023 / श्री तारकनाथ दास ब्रह्मचारी जी के जयंती पर उन्हें नमन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता तथा चलो कुछ न्यारा करते है फाउंडेशन के शिक्षा विभाग के निर्देशक श्री प्रित्तेश तिवारी ने बताया की इतिहास के पन्नो में ऐसे बोहोत से लोग हैं जिनके बारे में पूर्णजानकारी ना होने के कारण वे इतिहास के पन्नो में ही रह जाते है।

ऐसे ही स्वाधीनता संग्राम में अपना अहम भूमिका निभाए थे तारकनाथ दास ब्रह्मचारी जी।

तारकनाथ दास एक ब्रिटिश-विरोधी भारतीय बंगाली क्रांतिकारी और अंतर्राष्ट्रवादी विद्वान थे। वे उत्तरी अमेरिका के पश्चमी तट में एक अग्रणी आप्रवासी थे और टॉल्स्टॉय के साथ अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा किया करते थे, जबकि वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में एशियाई भारतीय आप्रवासियों को सुनियोजित कर रहे थे। वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे और साथ ही कई अन्य विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत थे।

तारक उन लोगों में से एक थे जिन्हें 1947 में भारत के विभाजन से भावनात्मक रूप से ठेस पहुंची थी और अपने अंतिम दिनों तक दक्षिण एशिया में क्षेत्र विभाजन प्रक्रिया का जोरदार विरोध करते रहे। चालीस छियालीस साल के निर्वासन के बाद, उन्होंने १९५२ में वातुमुल्ल फाउंडेशन के एक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी मातृभूमि का दोबारा दौरा किया। उन्होंने कलकत्ता में विवेकानंद सोसायटी की स्थापना की। ९ सितम्बर १९५२ में बाघा जतिन की वीर शहादत की ३७ वीं वर्षगांठ का जश्न मनाने के लिए उन्होंने सार्वजनिक बैठक की अध्यक्षता की, अपने गुरू जतिनदा द्वारा स्थापित मूल्यों को युवाओं में पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

22 दिसम्बर 1957 को संयुक्त राज्य अमेरिका में लौटने पर ७४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रित्तेश हमेशा ऐसे क्रांतिकारियों को युवाओं के सामने लाने का प्रयास करते है ताकि वे गुमनाम न हो।

उन्होंने युवाओं से आग्रह किया को वे भी आगे आए ताकि भारत का इतिहास कभी मिट न सके।

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