आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश
हमारी मातृभाषा हिन्दी को सम्मान दर्जा मिलना चाहिये राष्ट्रभाषा का न कि राजभाषा का

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अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस विशेष-
हस्ताक्षर हिन्दी में करने का लेना चाहिये सबको संकल्प- बंशीलाल टांक
मन्दसौर। देश में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त-आजार-स्वतंत्र हुए 76 वर्ष बीत चुके है परन्तु इसे क्या कहा जायेगा कि हम एक छोटा सा कार्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं दे पाये है। कहने को तो हमने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दे रखा है परन्तु सरकारी समस्त कार्य चाहे केन्द्र के हो अथवा राज्यों के हिन्दी में ही हो रहे है क्या, न्यायालयी समस्त निर्णय आदेश क्या हिन्दी में हो रहे है ?
भारत यद्यपि बहुभाषायी राष्ट्र है। प्रत्येक प्रान्त की भाषा पृथक-पृथक होने से चाहे बोलने में अथवा समझ में नही आये परन्तु इसके बावजूद हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में चले जावे हिन्दी में कही गई बात को सहज ही समझ में आ जाती है जबकि अंग्रेजी में चाहे हम कितना ही अपनी बात को कहते दोहारते चले जाये बिना अंग्रेजी पढ़ा लिखा एक शब्द का अर्थ भी समझ नहीं पायेगा।
भारत की संस्कृति अपने को श्रेष्ठ तथा दूसरों को नीचा दिखाने निम्न समझने की नहीं रही है। हम अंग्रेजी को सम्मान दे सकते है, देते है, देना ही चाहिये परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि बिना बुलाये, बिना निमंत्रित जबर्दस्ती घर में चली आई महिला को तो ससम्मान सोने के सिंहासन पर विराजित कर दे और हमारी जन्म देने वाली मॉ को लोहे की लकड़ी की कुर्सी तो ठीक जमीन पर चटाई बिछाकर बैठने की कहना तो दूर बाहर से आई 76 वर्षों तक बाहर से आई विदेशी महिला (अंग्रेजी) के सामने उसे खड़ा रखे। क्या यह उचित है ? यही हाल हमारी मातृभाषा हिन्दी का हमने कर रखा है। कहने को तो हम बड़े गर्व से कह देते है हम हिन्दुस्तान में रहते है परन्तु इससे बड़ा मजाक और क्या होगा कि जिस हिन्दी शब्द से हिन्दुस्तान बना है। स्वतंत्रता-गणतंत्र दिवस अथवा अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मंचों से बड़े जोर-शोर से अंत में जय हिन्द कहते हैं तो हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र का राष्ट्रभाषा बनाने मंे संकेत-परहेज क्यों ? उसे राजभाषा बनाकर क्यों छोड़ दिया, राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं दे पा रहे है।
राष्ट्रभाषा का सम्मान देने का काम केन्द्र सरकार का है जो उसे करना चाहिये परन्तु जहां तक हमारा प्रश्न है चाहे हमें शिक्षा में कितना भी उच्च पद प्राप्त क्यों न प्राप्त हो जो हस्ताक्षर हम अंग्रेजी में करते आ रहे है उन्हें आज से हिन्दी में करने का संकल्प, प्रतिज्ञा करनी चाहिये। माननीय प्रधानमंत्री मोदीजी जब अपने हस्ताक्षर हिन्दी में ही करते हो तो हम क्यों नहीं कर सकते। माननीय मोदीजी ने तो हाल ही में जी-20 सम्मेलन में दूरदर्शन पर अपनी बात विशुद्ध हिन्दी में कही है। 14 सितम्बर को केवल एक दिवस रैलियां निकालकर हिन्दी में धारावाहिक भाषण देकर एक दिन हिन्दी महोत्सव मनाकर शेष 364 तीन सौ चौसठ दिन मौन रहने से कुछ नहीं होगा। हिन्दी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाने के लिये सरकार पर दबाव डालना होगा।
भारत यद्यपि बहुभाषायी राष्ट्र है। प्रत्येक प्रान्त की भाषा पृथक-पृथक होने से चाहे बोलने में अथवा समझ में नही आये परन्तु इसके बावजूद हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में चले जावे हिन्दी में कही गई बात को सहज ही समझ में आ जाती है जबकि अंग्रेजी में चाहे हम कितना ही अपनी बात को कहते दोहारते चले जाये बिना अंग्रेजी पढ़ा लिखा एक शब्द का अर्थ भी समझ नहीं पायेगा।
भारत की संस्कृति अपने को श्रेष्ठ तथा दूसरों को नीचा दिखाने निम्न समझने की नहीं रही है। हम अंग्रेजी को सम्मान दे सकते है, देते है, देना ही चाहिये परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि बिना बुलाये, बिना निमंत्रित जबर्दस्ती घर में चली आई महिला को तो ससम्मान सोने के सिंहासन पर विराजित कर दे और हमारी जन्म देने वाली मॉ को लोहे की लकड़ी की कुर्सी तो ठीक जमीन पर चटाई बिछाकर बैठने की कहना तो दूर बाहर से आई 76 वर्षों तक बाहर से आई विदेशी महिला (अंग्रेजी) के सामने उसे खड़ा रखे। क्या यह उचित है ? यही हाल हमारी मातृभाषा हिन्दी का हमने कर रखा है। कहने को तो हम बड़े गर्व से कह देते है हम हिन्दुस्तान में रहते है परन्तु इससे बड़ा मजाक और क्या होगा कि जिस हिन्दी शब्द से हिन्दुस्तान बना है। स्वतंत्रता-गणतंत्र दिवस अथवा अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मंचों से बड़े जोर-शोर से अंत में जय हिन्द कहते हैं तो हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र का राष्ट्रभाषा बनाने मंे संकेत-परहेज क्यों ? उसे राजभाषा बनाकर क्यों छोड़ दिया, राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं दे पा रहे है।
राष्ट्रभाषा का सम्मान देने का काम केन्द्र सरकार का है जो उसे करना चाहिये परन्तु जहां तक हमारा प्रश्न है चाहे हमें शिक्षा में कितना भी उच्च पद प्राप्त क्यों न प्राप्त हो जो हस्ताक्षर हम अंग्रेजी में करते आ रहे है उन्हें आज से हिन्दी में करने का संकल्प, प्रतिज्ञा करनी चाहिये। माननीय प्रधानमंत्री मोदीजी जब अपने हस्ताक्षर हिन्दी में ही करते हो तो हम क्यों नहीं कर सकते। माननीय मोदीजी ने तो हाल ही में जी-20 सम्मेलन में दूरदर्शन पर अपनी बात विशुद्ध हिन्दी में कही है। 14 सितम्बर को केवल एक दिवस रैलियां निकालकर हिन्दी में धारावाहिक भाषण देकर एक दिन हिन्दी महोत्सव मनाकर शेष 364 तीन सौ चौसठ दिन मौन रहने से कुछ नहीं होगा। हिन्दी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाने के लिये सरकार पर दबाव डालना होगा।