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PM मोदी के नाम जुड़ गया एक और रिकॉर्ड, अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबा भाषण देने वाले नेता बने; जानें किनका रिकॉर्ट टूटा

PM मोदी के नाम जुड़ गया एक और रिकॉर्ड, अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबा भाषण देने वाले नेता बने; जानें किनका रिकॉर्ट टूटा

 

 

 

पटना:–

 

 

लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया. अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi Parliament Speech) ने सबसे लंबे समय तक भाषण देने का रिकॉर्ड भी बनाया. प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में गुरुवार को 2 घंटे 13 मिनट तक भाषण दिया. इस दौरान वह अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबे समय तक भाषण देने वाले देश के पहले नेता भी बन गए. इस दौरान उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह का रिकॉर्ड तोड़ा, जिन्होंने एक दिन पहले ही यह रिकॉर्ड अपने नाम किया था. अमित शाह ने 2 घंटे 12 मिनट तक भाषण दिया था. इससे पहले यह रिकॉर्ड पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम दर्ज था, जिन्होंने 1965 में 2 घंटे से लंबा भाषण दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सबसे लंबी स्पीच का रिकॉर्ड भी दर्ज है..

 

वहीं, अविश्वास प्रस्ताव को छोड़ दिया जाए, तो कई दूसरे नेताओं ने भी लंबे भाषण देने का काम किया है. भारत के पूर्व वित्त मंत्री वीके कृष्णा मेनन ने साल 23 जनवरी 1957 में कश्मीर मुद्दे पर करीब 8 घंटे (7 घंटे 48 मिनट) लंबा भाषण दिया था. उनके इस भाषण को सबसे लंबे भाषण के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया था. यह रिकॉर्ड आज भी कायम है.

 

दूसरी बार लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 9 साल के अपने अब तक के कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. यह अविश्वास प्रस्ताव भी विफल रहा, जिसका पहले से अनुमान था. मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए इस प्रस्ताव को लोकसभा ने ध्वनिमत से खारिज किया. इस पर मतदान नहीं हुआ, क्योंकि विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के जवाब देने के समय ही सदन से बहिर्गमन कर गया था. इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था. इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था.

 

कब शुरू हुआ था यह सिलसिला

भारत के संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था. नेहरू के खिलाफ 1963 में आचार्य कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे जबकि विरोध में 347 मत आए थे. इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था.

 

जब गिर गई थी वाजपेयी सरकार

मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए और इनमें से किसी भी मौके पर सरकार नहीं गिरी, हालांकि विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए तीन सरकारों को जाना पड़ा. आखिरी बार 1999 में विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी थी. ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ के अनुसार, इंदिरा गांधी को सबसे अधिक 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ तीन अविश्वास प्रस्ताव, पीवी नरसिंह राव के खिलाफ तीन, मोरारजी देसाई के खिलाफ दो और राजीव गांधी तथा अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ एक-एक प्रस्ताव लाया गया था.

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