आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

धार्मिक उपासना स्थलों-मंदिरों में दर्शनार्थ जाते समय मंदिर की गरिमा-मर्यादा के लिये वेशभूषा भी मर्यादित होना चाहिए

******************************
मन्दसौर। प्रत्येक विभिन्न मजहब-धर्म-सम्प्रदाय के अनुयायी उपासना-साधना-दर्शन करने जाते है तो उस पवित्र देवस्थान चाहे वह गुरुद्वारा हो, चाहे मस्जिद हो, चाहे गिरजाघर हो अथवा जैन धर्मावलंबियों के भगवान महावीर के मंदिर हो उपासना करने अथवा दर्शन करने जाते है तो अपने धर्म-मजहब-सम्प्रदाय के विधान अनुसार पालन करते हुए एक निश्चित गणवेश-परिवेश में ही जाते है। मस्जिद में नमाज अदा करते वक्त प्रत्येक नमाजी पहले वजु करके (हाथ पैर धोकर) सिर पर रूमाल बांधकर (सिर ढककर) नमाज अदा करता है। इसी प्रकार गुरूद्वारा में जब कोई सिक्ख गुरू ग्रंथ साहब के सा मने अपनी अरदाज लेकर जाता है तो वह भी सिर ढंककर हाथ पैर जल से शुद्ध कर जाता है परन्तु हिन्दू मंदिरों में जाने वाले दर्शनार्थियों में प्रायः देखा जा रहा है कि सनातन हिन्दू धर्मावलम्बी मंदिर में जाते वक्त हमारा जो सनातन गणवेश अर्थात पहनावा-धोती-कुरता पहनकर जाना तो दूर रहा, बंध लगे हुए टाइड (तंग) चमड़े-कपड़े के जूतांे को हाथों से खोलकर बिना हाथ धोये भगवान के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है।
योग गुरू बंशीलाल टांक ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि मंदसौर के सबसे प्राचीन चमत्कारी तलाई वाले बालाजी मंदिर जहां भारत ही नहीं विदेशों से भक्त बालाजी का चोला चढ़ाने आते है तो आज की तारीख से मंगलवार, शनिवार को उन्हंे लम्बे समय तक प्रतिक्षा करना पड़ेगी।
मंदिर समिति ने मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को किस प्रकार के पहनावे में नहीं आना है इस संबंध में बाहर जो बोर्ड लगाया है यह उचित ही किया है। साधुवाद है इसके लिये समिति को और अपने को सनातनी धर्मावलम्बी कहने वालों को इसका पालन अवश्य करना चाहिये। बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट, कटी फटी जिन्स, हाफ पेंट पहनकर मंदिर में जा रहे है तो सोचना चाहिये यह क्या हमारा पहनावा है या विदेशी आक्रांता अंग्रेजों का पहवाना है। हमें सोचना चाहिये अंग्रेजों की गुलामी से तो हम मुक्त हो गये फिर भी हमने उनके पहनावे को गले लगा रखा है और बड़ी शान से उसे पहनकर हम मंदिर जा रहे है।
किसी भी कट्टर इसाई को गिरजाघर में, किसी मुस्लिम भाई को मस्जिद में क्या किसी ने कभी धोती कुरता पहनकर सिर पर चोटी और माथे पर तिलक लगाकर-गले में जनेऊ पहनकर जाते देखा है फिर हम क्यों भूलते जा रहे है कि जिस पहनावे से हमारी पहचान हो जाती है कि हम सनातनी हिन्दू है उसे ही ताक पर रखकर विदेशी भाषा-विदेशी पहनावा आदि से हम शान बढ़ा रहे हे। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि घरों में-मंदिरों में भगवान राम-कृष्ण जिन देवी-देवताओं के चित्रों-प्रतिमाओं की हम पूजन-अर्चन करते है क्या उनकी वेशभूषा विदेशी है या देशी। अतः पूरे समय चाहे हम धोती नहीं धारण कर सके तो कम से कम इतना संकल्प तो जरूर लेना चाहिये घर में अथवा मंदिर में पूजा करते समय हमारी अपनी भारतीय वेशभूषा ही पहनी हुई होना चाहिये।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}