जोकचन्द ने मल्हारगढ़ थाने को मिली 9 वीं रैंक पर उठाए सवाल, निष्पक्ष जांच की मांग

एनडीपीएस एक्ट के फर्जी प्रकरण पर हाईकोर्ट की फटकार
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा हाल ही में 60 वीं डीजीएसपी/आईजीएसपी कॉन्फ्रेंस में देशभर के पुलिस थानों की रैंकिंग घोषित की गई, जिसमें मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ थाना को 9 वीं रैंक प्राप्त हुई। यह उपलब्धि जहां पुलिस प्रशासन द्वारा गर्व का विषय बताई जा रही है, वहीं इसी बीच हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी और एनडीपीएस एक्ट के एक मामले में पूरे थाने पर मिलीभगत के संकेत ने इस रैंकिंग को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए मंदसौर एसपी विनोद मीणा को 9 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देने के निर्देश जारी किए हैं। जैसे ही यह खबर सामने आई,
किसान नेता श्यामलाल जोकचन्द ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे फर्जी आंकड़ों पर आधारित रैंकिंग करार दिया। जोकचन्द ने कहा कि मल्हारगढ़ थाने को दी गई रैंक वास्तविकता से बिल्कुल मेल नहीं खाती। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मिलीभगत कर आकड़ों में हेरफेर किया, जिससे थाने का प्रदर्शन बेहतर दिखाया जा सके। उन्होंने कहा कि मल्हारगढ़ विधानसभा क्षेत्र वर्षों से अपराधों की शरणस्थली बन चुका है। क्षेत्र में हत्या, लूट, दुष्कर्म, चोरी, गुंडागर्दी और नाबालिगों के गुमशुदा होने जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन इन गंभीर मामलों में पुलिस की कार्रवाई बेहद कमजोर रही है। कई मामले आज तक ट्रेस नहीं हो पाए हैं। किसान नेता जोकचन्द ने एक ताजा मामले का विस्तृत उल्लेख करते हुए बताया कि 29 अगस्त 2025 को बस से उतारे गए एक युवक पर मल्हारगढ़ पुलिस द्वारा एनडीपीएस एक्ट के तहत 2 किलो 700 ग्राम अफीम रखने का आरोप लगाया गया। युवक को बस से उतारते समय वह खाली हाथ था। जमानत अर्जी के दौरान वकील द्वारा बस का सीसीटीवी फुटेज मंगाया गया। फुटेज में युवक के पास कोई बैग या संदिग्ध सामान नहीं मिला। इसके बावजूद पुलिस ने उसे अफीम तस्करी का आरोपी बना दिया।
जोकचन्द ने कहा कि यह तो केवल एक मामला उजागर हुआ है, जबकि ऐसे सैकड़ों मामले चल रहे हैं जिनमें पुलिस अपनी मर्जी से लोगों को फंसाती आई है। जोकचन्द ने गंभीर आरोप लगाया कि कई बार पुलिस स्वयं युवाओं या किसानों को मादक पदार्थ की खरीद-बिक्री के लिए उकसाती है। बाद में या तो पुलिस स्वयं खरीदार बनती है या मुखबिर को खरीदार बनवाकर नकली सौदा तैयार करवाती है और वहीं एनडीपीएस एक्ट का प्रकरण दर्ज कर देती है।
उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में लाखों-करोड़ों की वसूली होती है। कई निर्दाेष युवा, किसान और बेरोजगार बिना अपराध किए महीनों-जेलों में सड़ते रहते हैं। असली अपराधी और असली तस्कर सुरक्षित घूमते हैं। जोकचन्द ने डोडाचूरा को लेकर भी बड़ा सवाल उठाते हुए बताया कि डोडाचूरा में “मार्फिन न के बराबर है। इसके बावजूद हजारों लोग केवल डोडाचूरा मिलने पर एनडीपीएस एक्ट के गंभीर मामलों में जेलों में बंद हैं। सरकार डोडाचूरा खरीदती नहीं है, जबकि नारकोटिक्स विभाग इसे नष्ट करवाता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई डोडाचूरा पकड़ा जाता है, तो इसे नष्ट करवाने वाले अधिकारी पर भी एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज होना चाहिए। क्योंकि समानता का सिद्धांत बताता है कि एक ही वस्तु के मामले में दोनों पक्षों पर एक-सा कानून लागू होना चाहिए। जोकचन्द ने आगे बताया कि कई पुलिस अधिकारियों पर एनडीपीएस एक्ट फर्जी कार्रवाई के मामले अपहरण व रिश्वतखोरी के आरोप लगे, केस भी दर्ज हुए।
लेकिन इन पर कार्रवाई के बजाए इन्हें सम्मान दिया जाकर पदोन्नति की जाती है, फर्जी कार्रवाईयों के लिए नारकोटिक्स विंग में भर्ती की जाती है। दागदार खाकी से आमजन का विश्वास उठता जा रहा है। देशभक्ति जनसेवा का नारा भी यह दागदार अधिकारी कलंकित कर रहे है। जोकचन्द ने कहा कि सरकार और प्रशासन को चाहिए कि फर्जी एनडीपीएस मामलों में बेगुनाहों को फंसाने वाले अधिकारियों की जांच की जाए। दोष सिद्ध होने पर उन्हें भी एनडीपीएस एक्ट की कठोर धाराओं में गिरफ्तार किया जाए व नौकरी से बर्खास्त किया जाए, तभी फर्जी कार्रवाई पर रोक लग पाएगी। साथ ही इसमें शामिल जनप्रतिनिधियों की भूमिका की भी जांच हो, क्योंकि उनके संरक्षण के बिना इतनी बड़ी फर्जी कार्रवाई संभव नहीं है। जोकचन्द ने कहा कि पुलिस की फर्जी कार्रवाईयों के खिलाफ जनता को एकजुट होना होगा।
उन्होंने कहा यदि पुलिस किसी निर्दाेष व्यक्ति पर फर्जी केस दर्ज करती है, तो पूरा समाज एक साथ खड़ा हो। मैं हमेशा निर्दाेषों के साथ खड़ा रहूंगा और फर्जी कार्रवाइयों के खिलाफ आंदोलन जारी रहेगा। मल्हारगढ़ पुलिस की अफीम की फर्जी कार्रवाई के बाद अब यह बहस तेज हो गई है कि क्या पुलिस रैंकिंग ग्राउंड रिपोर्टिंग पर आधारित है ? क्या एनडीपीएस के अधिक केस दिखाकर ‘अच्छी कार्रवाई’ का प्रभाव बनाया जाता है ? क्या निर्दाेषों को पकड़कर बनाया गया रिकॉर्ड ही ‘उपलब्धि’ माना जा रहा है ?



