मंदसौर जिलासीतामऊ

शताब्दी समारोह मनाना तभी सार्थक है केवल स्वयं सेवक बनना या फोटो लगाकर नहीं अपने मे समाज परिवार के प्रति भाव को खोजना- श्री आचार्य 

छोटी काशी सीतामऊ में निकला संघ का पथ संचलन, हुआ जगह जगह स्वागत अभिनंदन 

सीतामऊ। संघ को 100 वर्ष पूर्ण हो गये कृतज्ञता जाहिर करने का विषय है।संघ के शताब्दी वर्ष में हमारी भूमिका क्या रहने वाली है ईश्वर ने देवीय कार्य के लिए हमको चुना है। हम सौभाग्यशाली है। चिंतन का विषय यह है कि आज से 100 वर्ष पूर्व परम पूज्य डॉक्टर जी ने संघ कि संकल्पना कि थी हिंदू के स्वाभिमान को जगाने और रक्षा करने के लिए संघ कि रचना कि थी । उसके आज 100 वर्ष बाद हम स्वयं सेवक है और हमने संघ को देखा है। उसके बाद हमको बार बार जगाने स्व कि खोज के लिए जाना पड़ता है यह एक चिंतन का विषय भी है।जब हम किसी बड़े संगठन के हिस्से होते हैं विश्व के सबसे बड़े संगठन के शताब्दी वर्ष के साक्षी बनते हैं तो आत्म अवलोकन कि भी आवश्यकता पड़ती है।  आज विजयादशमी का यह पर्व आत्म अवलोकन का पर्व है। उक्त उद्बोधन विभाग संपर्क प्रमुख,मंदसौर नगर संघचालक एवं कार्यक्रम के बोद्धिक वक्ता श्री विकास आचार्य ने श्री राम विद्यालय मैदान सीतामऊ में आयोजित संघ के शताब्दी समारोह विजयादशमी स्थापना पर्व पर व्यक्त किए।

जब हम आत्म अवलोकन करते हैं विजयादशमी कि पर्व है विजयादशमी आती है नवरात्रि के बाद नवरात्रि या नौ रात्रि हम सबका जन्म अपनी मां के गर्भ से हुआ है हमको अपने मुल में जाकर देखने कि आवश्यकता होती है हमारा मुल कहा था हम कितने आगे चले जाए पर हमारे मुल कि पहचान जब जब होती है।तब हम स्व यानी स्वयं को मुल पर जाकर देखने का दिन भी है।

श्री आचार्य ने आगे कहा कि संघ के स्थापना के समय आदरणीय डाक्टर जी के मन में संघ कि स्थापना को लेकर क्या विचार लक्ष्य था उसको समझने कि भी आवश्यकता है ।अगर हम देखें तो… सदियों रहा दुश्मन ये जमाना हमारा, कुछ बात ऐसी जो हस्ती मिटती नहीं हमारी ,, हमारे उपर अलग-अलग तरह से आक्रमण हुए हैं और हर दुश्मन राष्ट्र को अच्छी तरह से जबाब दिया और अश्मिता को बचाएं रखा है।अगर हम 1857 कि क्रांति को देखें तो क्रांति जहां पर तय हो गया था कि हर घर घर रोटी और कमल निशान जाएगा और एक तिथि तय और पूरे भारत में एक क्रांति का बिगुल बजेगा लेकिन समाज कि या अनुशासन कि कमी कहें और क्रांति कि बिगुल पहले ही बज ग ई।जो बीज था वहीं खत्म हो गया। एक अनुशासन कि कमी राष्ट्र को 90 तक ओर गुलाम बना कर रख सकती। अगर ये अनुशासन और ये संगठन उस टाईम होता तो 1857 में ही आजादी प्राप्त कर लेते, ये बात परम आदरणीय डाक्टर साहब के मन में पहले से ही बैठी हुई थी। बाल्यकाल से ही उनके समाज राष्ट्र के प्रति क ई प्रसंग मिलते हैं। डॉ साहब ने 1950 में कांग्रेस के अधिवेशन के समय 150 स्वयं सेवक जो किसी इन्फेक्शन कि आवश्यकता नहीं है वो खुद खोज लेता है कि समाज राष्ट्र के लिए क्या करना है ऐसी स्वयं सेवकों कि टीम तैयार कि थी।1921 में असहयोग आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी हुई।उनकी जेल यात्रा के दौरान उनक चिंतन समग्र व्यापक हुआ और वहां से संघ का विचार था।

श्री आचार्य ने कहा कि चीन के इतिहास में देखे तो हुणो से बचने के लिए चीन ने दिवार बनाई थी दीवार वीरता कि नहीं कायरता कि निशानी है।उन हुणों को हमारे मंदसौर के राजा यशोधर्मन ने परास्त किया।ऐसे महापुरुषों के होते हुए भी हम परास्त होते रहे इसी का चिंतन भाव लेकर बैठक की।अकले लाहौर में उस समय 200 शाखाएं लगती थी। 1947 में देश विभाजन कि बढ़ा और तत्कालीन सरकारों का दबाव संघ पर रहा संघ पर प्रतिबंध लगा 1948 में संघ पर पहला प्रतिबंध लगा संघ का कांग्रेस में विलय करने को कहा पर नहीं मानने पर नहीं मानने पर डॉ सा गुरुजी जेल गए। यही नहीं चीन के साथ अपने से अलग हुए पाकिस्तान से भी अपना युद्ध चलता रहा जिसमें सैकड़ो सैनिकों और स्वयं सेवकों का बलिदान हुआ। कुछ समय बाद मिसा बंदी का काम तत्कालीन सरकार में काम करने वाले ने हमारे स्वयं सेवकों को जेलों में ठूंस ठूंस कर भरा।आज परिस्थितियां अनुकूल है।राम मंदिर निर्माण सहित देश में कई काम हुए हैं जिससे हमारे देश ही नहीं विश्व में हमारा मान बढ़ा है।

कहते हैं कि जो कड़ी टुटी हुई है वहीं से टुटती है पर हम भरोसा भी उसी पर करते हैं उसको मजबूत बनाता हमारा दायित्व है। हमको मुल का चिंतन करना है। संघ के शताब्दी वर्ष पर हमें पंच परिवर्तन पर ध्यान देना है।आज हमें इस पर संकल्प लेना है। सबसे पहला कुटुंब प्रबोधन पर परिवार में हमे फिल मिला उससे मजबूत बनने कि न कि फिल के बाद रील देकर जाना। पर्यावरण, स्व का बोध होना, चौथा नागरिक दायित्व हम यह दायित्व पर कहते तो है पर करते हैं या नहीं। समरसता का भाव, समरसता को कहना सरल है पर जीना उतना ही कठिन है। ये पांच परिवर्तन पर हम रोज चिंतन करे यो अपने जीवन में बदलाव करे।

श्री आचार्य ने कहा कि कल ही नवरात्रि पर का समापन हुआ कहते हैं कि देवी मां ने मधुकेटब नाम के राक्षसों का समाप्त किया। कहते हैं कि विष्णु जी के शयन के बाद कान से उत्पत्ति हुई। इसलिए कानों से निकला एक गलत विचार समाज को विनाश पर पहुंचा सकता है।शुंभ निशुंभ दो राक्षस हुए जिनका अर्थ गलत सुनना, ध्रुमविलोचन, मतलब धुंधली दृष्टि रक्त बीज का अर्थ बुरी आदत ,महिषासुर भैसा यानी जड़ता हमारे अज्ञान जड़ता आदि अवगणी राक्षसों को हमारे अंदर से समाप्त करना है।

श्री आचार्य ने कहा कि आदरणीय डाक्टर जी और बहुत से स्वयं सेवकों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी दे सकते हैं या शताब्दी समारोह मनाना तभी सार्थक है केवल स्वयं सेवक बनना या फोटो लगाकर नहीं अपने मे समाज परिवार के प्रति भाव को खोजना है।

कार्यक्रम का शुभारंभ नगर कार्यवाह श्री विजय कुमार उमठ मुख्य वक्ता मंदसौर नगर संघचालक, विभाग संपर्क प्रमुख श्री विकास आचार्य वरिष्ठ समाजसेवी सेवानिवृत्त शिक्षक श्री गोविन्द सांवरा के द्वारा भारत माता, डॉक्टर साहब ,गुरुजी के तस्वीर को माल्यार्पण और शस्त्र पूजन कर शुभारंभ किया।

इस अवसर पर मंदसौर विभाग सह कार्यवाह श्री सुमन कुशवाह जिला सामाजिक समरसता जिला संयोजक श्री गणेश वर्मा सहित सैकड़ों स्वयं सेवकों उपस्थित रहें। उद्बोधन कार्यक्रम के पश्चात स्वयं सेवकों का पथ संचलन घोष बेंड के साथ नगर के प्रमुख मार्ग बाजार से होकर पुनः कार्यक्रम स्थल पहुंचे जहां पर समापन किया गया। नगर में समाजसेवकों, गणमान्य जनों, पूर्व सैनिक जनों विभिन्न समाज संगठन प्रमुखों ने पथ संचलन के दौरान पुष्प वर्षा कर जगह जगह स्वागत अभिनंदन किया।

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