अगर गूगल, फेसबुक और इंस्टाग्राम भारत में बंद हो जाएँ…

अगर गूगल, फेसबुक और इंस्टाग्राम भारत में बंद हो जाएँ…
भारत आज डिजिटल क्रांति के युग में प्रवेश कर चुका है। इंटरनेट और स्मार्टफोन ने प्रत्येक कोने में अपनी व्यापक पैठ बना ली है। किंतु इस क्रांति की बागडोर अधिकांशतः अमेरिकी कंपनियों – गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब – के हाथों में रही है। प्रश्न यह उठता है कि यदि अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है और इन सेवाओं को भारत में बंद करना पड़ता है, तो क्या भारत इसके लिए तैयार है?
आदतें और निर्भरता
गूगल हमारे लिए केवल एक सर्च इंजन नहीं है, बल्कि यह हमारी दैनिक जीवन की अभिन्न हिस्सा बन चुका है। जीमेल, यूट्यूब, गूगल मैप्स और प्ले स्टोर पर हमारी निर्भरता इतनी गहरी है कि इनके बिना जीवन की कल्पना करना कठिन प्रतीत होता है। इसी प्रकार, फेसबुक और इंस्टाग्राम न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि व्यापार, विपणन और सामाजिक संवाद के सबसे प्रमुख मंच भी हैं।
विकल्प मौजूद हैं, लेकिन…
भारत के पास विकल्पों की कमी नहीं है। BharOS और Indus App Bazaar जैसे स्वदेशी प्रयास मोबाइल क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहे हैं। Mappls (MapmyIndia) नेविगेशन में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुका है।
Koo, ShareChat, Moj और Chingari जैसे प्लेटफॉर्म भारतीय भाषाओं और स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं।लेकिन समस्या यह है कि इनकी पहुंच और विश्वसनीय सेवाएँ अभी गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के मुकाबले काफी पीछे हैं।
आत्मनिर्भरता का अवसर
यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो प्रारंभिक झटका निश्चित रूप से महसूस होगा। कारोबार, शिक्षा, मनोरंजन और संचार – प्रत्येक क्षेत्र प्रभावित होगा। किंतु यही कठिनाई भारत के लिए एक अद्वितीय अवसर भी प्रस्तुत करती है।
यह हमें डिजिटल आत्मनिर्भरता की ओर मजबूती से अग्रसरित होने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करेगा।
स्टार्टअप्स और नवोन्मेषी तकनीकी कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलेगा।
डेटा लोकलाइजेशन और सुरक्षा के संदर्भ में भारत अपनी शर्तों पर खड़ा होने में सक्षम होगा।
गूगल, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी सेवाओं का बंद होना भारत के लिए एक बड़े झटके से कम नहीं होगा। किंतु हर संकट में अवसर निहित होता है। यह भारत को यह सोचने का अवसर देगा कि क्या हम सदैव विदेशी प्लेटफॉर्म पर निर्भर रहेंगे या फिर अपनी डिजिटल संप्रभुता की नींव को सुदृढ़ करेंगे।
शायद यह समय आ गया है कि भारत केवल उपभोक्ता न बने, बल्कि तकनीक का निर्माता और नेतृत्वकर्ता बने।
लेखक – एड.राजेश पाठक
सद्भावना पथिक , मंदसौर