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न्याय प्रिय व्यक्ति ही सत्य मार्ग पर चल सकता है-आचार्य विभक्त सागर मुनिराज

न्याय प्रिय व्यक्ति ही सत्य मार्ग पर चल सकता है-आचार्य विभक्त सागर मुनिराज

मंदसौर। पर्यूषण पर्व के पांचवे दिन उत्तम सत्य धर्म की महिमा को कहा गया है,दस धर्मों में यह एक महान धर्म है। उत्तम सत्य का मतलब है जो कभी नष्ट नहीं होता, जैसे कि जिनेन्द्र प्रभु ईश्वर का नाम सत्य है, सिद्ध का नाम सत्य है। आत्मा को कोई नष्ट नहीं कर सकता इसलिए  आत्मा सत्य है,जबकि शरीर असत्य है। यह  बात धर्म सभा में  द्वितीय पट्टाचार्य, राष्ट्र संत एवं स्पष्ट प्रवक्ता दिगम्बर आचार्य 108 श्री विभक्त सागर जी मुनिराज ने कही।  संत श्री नाकोडा नगर स्थित आचार्य 108 सन्मति कुंज संत निवास पर विराजित है। प्रवर्चन से पूर्व मंगलाचरण एवं संचालन मुकेश जैन के द्वारा किया गया।
मुनिश्री ने कहा कि जो मनुष्य न्यायप्रिय होगा, वही सत्य मार्ग पर चल सकता है। आपने राजा वसु जिसकी सत्य एवं न्याय में प्रसिद्धि थी, स्फटिक के सिंहासन पर आकाश में बैठता था, उसने सत्य को झुठलाया। इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा। इस वृतांत को सुनाकर सत्य की महिमा को बताया। आपने कहा कि   जिस प्रकार रावण महाज्ञानी होने के बावजूद  उसने  महासती सीता जी का अपहरण कर एक  गलती की। लेकिन उसके बाद मान कषाय के कारण सत्य को सत्य नहीं मान पाया। ओर  मारा गया। सोने की लंका भी ध्वस्त हो गई। मुनिश्री ने कहा कि  हमेशा सत्यव्रत की पाँचों भावनायें भाना चाहिए और अतिचारों से बचना चाहिए। आप सत्य मार्ग पर चलें और सत्य धर्म का पालन करें। धर्म सभा में बड़ी संख्या में समाज जन उपस्थित थे।

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