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ज्ञान को प्राप्त करना है तो अहंकार को समाप्त करना पड़ेगा- साध्वी श्री अमितगुणाश्रीजी

ज्ञान को प्राप्त करना है तो अहंकार को समाप्त करना पड़ेगा- साध्वी श्री अमितगुणाश्रीजी
मन्दसौर। आदिनाथ जैन मंदिर (दादावाड़ी) नयापुरा रोड़, मंदसौर पर साध्वी श्री अमितगुणाश्रीजी म.सा. एवं साध्वी श्री श्रेयंनदिता श्रीजी म.सा. का चार्तुमास चल रहा है। यहां प्रतिदिन प्रातः 9.15 से 10.15 बजे तक आयोजित धर्मसभा में साध्वीगण द्वारा प्रवचन दिये जा रहे है। साध्वीगण के अमृत वचनों को श्रवण करने प्रतिदिन बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित हो रहे है।
मंगलवार को धर्मसभा में साध्वी श्री अमितगुणाश्रीजी म.सा. ने श्री यशोविजयजी द्वारा रचित ज्ञान सार ग्रंथ के सार का महत्व बताते हुए कहा की अहंकार मीठा जहर है जहाँ अहंकार पनपता है वहाँ ज्ञान समाप्त हो जाता है जहाँ अहंकार है वहाँ ज्ञान प्रवेश नहीं कर पाता है । ज्ञान को प्राप्त करना है तो अहंकार को समाप्त करना पड़ेगा। प्रशंसा सुनने पर व्यक्ति को अभिमान आ जाता है ये प्रशंसा अहंकार को उत्पन्न करती है। अहंकार ज्ञान को समाप्त कर देता है।
साध्वीजी ने कहा कि मैं की भावना व्यक्ति को रसातल में ले जाती है। भगवान महावीर से कमठ के 6 भव तक उपसर्ग किये लेकिन उन्होंने कभी उन उपसर्ग का प्रतिकार नहीं किया। कमठ के लिए भी उनकी आत्मा मे कल्याण के भाव थे दया करुणा थी। मेरी वजह से इस जीव आत्मा को कष्ट ना सहना पड़े। यदि परमात्मा अहंकार करते तो वे कभी केवली भगवंत नहीं हो पाते। भगवान महावीर ने करुणा, दया, संयम के भाव को जीवन में आत्मसात किया तभी वे अरिहंत प्रभु परमात्मा बने (मैं) का त्याग किये बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता।
धर्मसभा में अशोक मारु, अभय चोरडिया, कांतिलाल दुग्गड़ मामा, दिलीप लोढ़ा, अशोक मेहता, समरथ लोढ़ा, धीरज लोढ़ा, सुरेंद्र डोसी, यशवंत पोखरना, अभय नाहटा, अजय नाहटा, ईश्वर भावनानी, अशोक मेहता आदि समाज जन उपस्थित थे। संचालन कमल कोठारी ने किया।
मंगलवार को धर्मसभा में साध्वी श्री अमितगुणाश्रीजी म.सा. ने श्री यशोविजयजी द्वारा रचित ज्ञान सार ग्रंथ के सार का महत्व बताते हुए कहा की अहंकार मीठा जहर है जहाँ अहंकार पनपता है वहाँ ज्ञान समाप्त हो जाता है जहाँ अहंकार है वहाँ ज्ञान प्रवेश नहीं कर पाता है । ज्ञान को प्राप्त करना है तो अहंकार को समाप्त करना पड़ेगा। प्रशंसा सुनने पर व्यक्ति को अभिमान आ जाता है ये प्रशंसा अहंकार को उत्पन्न करती है। अहंकार ज्ञान को समाप्त कर देता है।
साध्वीजी ने कहा कि मैं की भावना व्यक्ति को रसातल में ले जाती है। भगवान महावीर से कमठ के 6 भव तक उपसर्ग किये लेकिन उन्होंने कभी उन उपसर्ग का प्रतिकार नहीं किया। कमठ के लिए भी उनकी आत्मा मे कल्याण के भाव थे दया करुणा थी। मेरी वजह से इस जीव आत्मा को कष्ट ना सहना पड़े। यदि परमात्मा अहंकार करते तो वे कभी केवली भगवंत नहीं हो पाते। भगवान महावीर ने करुणा, दया, संयम के भाव को जीवन में आत्मसात किया तभी वे अरिहंत प्रभु परमात्मा बने (मैं) का त्याग किये बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता।
धर्मसभा में अशोक मारु, अभय चोरडिया, कांतिलाल दुग्गड़ मामा, दिलीप लोढ़ा, अशोक मेहता, समरथ लोढ़ा, धीरज लोढ़ा, सुरेंद्र डोसी, यशवंत पोखरना, अभय नाहटा, अजय नाहटा, ईश्वर भावनानी, अशोक मेहता आदि समाज जन उपस्थित थे। संचालन कमल कोठारी ने किया।