एमआरपी की जगह अब एसआरपी? जानिए कैसे बदलेगा पूरा खरीदारी का खेल!

एमआरपी की जगह अब एसआरपी? जानिए कैसे बदलेगा पूरा खरीदारी का खेल!
₹1999 की वस्तु केवल ₹399 में!” — इस प्रकार के लुभावने ऑफ़र प्रतिदिन हमारी आँखों के सामने आते हैं। लेकिन क्या वास्तव में हमें इतना लाभ मिल रहा है? भारत में “एमआरपी प्रणाली” अब उपभोक्ताओं के विश्वास के साथ एक प्रकार का छल प्रतीत हो रही है। लेकिन अब एक नई आशा की किरण उभर रही है — एसआरपी प्रणाली की।
उपभोक्ताओं के मनोविज्ञान के साथ “खेल” रही भ्रांतियों की चकाचौंध।
जब हम बाजार में उत्पाद खरीदने जाते हैं, तो एमआरपी देखकर जो “छूट” प्रदर्शित होती है, वह वास्तव में एक रणनीतिक चाल होती है। एमआरपी को जानबूझकर इतना ऊँचा रखा जाता है कि उस पर भारी छूट दिखाकर ग्राहक को संतुष्ट किया जा सके। किंतु वास्तविकता में वही “डिस्काउंटेड प्राइस” असली मूल्य होती है। यह एक भावनात्मक छलावा है — जहाँ ग्राहक को लगता है कि उसने लाभ कमाया, जबकि वास्तव में वह वही कीमत चुका रहा है जो कंपनी चाहती है।
एक ही उत्पाद पर विभिन्न एमआरपी — ये कैसा अन्याय?
क्या आपने कभी इस पर ध्यान दिया है कि एक ही बिस्किट, एक ही ब्रांड, एक ही पैकिंग — लेकिन दो अलग-अलग दुकानों में भिन्न एमआरपी? यही वह बिंदु है जहाँ ग्राहक खुद को ठगा हुआ अनुभव करता है। पारदर्शिता की कमी, जानकारी का अभाव और उपभोक्ता का शोषण — यही इस पुरानी प्रणाली की वास्तविकता है।
सरकार अब परिवर्तन के मूड में है!
सरकार अब इस ‘दिखावे की छूट’ को समाप्त करने की दिशा में गंभीर हो गई है। इससे एक आशा की किरण ग्राहकों को दिखाई दे रही है। उपभोक्ता मामलों के विभाग ने यह स्वीकार किया है कि एमआरपी प्रणाली को एसआरपी प्रणाली से बदलने की आवश्यकता है, जो पहले से अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में क्रियान्वित है। यह केवल प्रणाली का नहीं, अपितु उपभोक्ता सम्मान का भी परिवर्तन होगा।
4️⃣ एमआरपी क्या है और यह ‘फर्जी आंकड़ा’ कैसे बनता है?
एमआरपी अर्थात अधिकतम खुदरा मूल्य — वह मूल्य जो उत्पादक स्वयं निर्धारित करता है। इसमें कर, लागत, लाभ — सब कुछ सम्मिलित होता है। किंतु यह सरकारी नियमन से मुक्त होता है। अर्थात निर्माता अपनी इच्छा से इसे जितना चाहे बढ़ा सकता है। और फिर उस पर भारी छूट का दिखावा कर उपभोक्ता की भावनाओं से खेल सकता है।
एमआरपी का दुरुपयोग — भावनाओं का शोषण
₹10 की पानी की बोतल किसी धार्मिक स्थल पर ₹25 में बिकती है। ₹20 की कोल्ड ड्रिंक किसी मल्टीप्लेक्स में ₹60 में मिलती है। ऑनलाइन साइट्स एमआरपी को बार-बार समायोजित कर “दिखावटी ऑफर्स” तैयार करती हैं।
इन घटनाओं में केवल पैसे का नहीं, अपितु उपभोक्ता के विश्वास का भी हनन होता है।
परिवर्तन क्यों आवश्यक है? — क्योंकि झूठे डिस्काउंट से उपभोक्ता ठगे जाते हैं। कीमतों में पारदर्शिता का अभाव रहता है। ब्रांड्स ‘ऑफर’ के नाम पर वास्तविक कीमत छिपाते हैं। ग्राहक के साथ होता है छल और धोखा।
अब समय आ गया है कि व्यवस्था को बदलने का उपभोक्ताओं को साहस दिखाना होगा और सरकार पर दबाव बनाना होगा।
एसआरपी क्या है?
एसआरपी अर्थात Suggested Retail Price — एक ऐसा मूल्य जो सरकार या कंपनी ग्राहकों को “सुझाव” के रूप में देती है, न कि थोपती है। इसमें विक्रेता को यह स्वतंत्रता होती है कि वह स्थान, स्टोर खर्च और ग्राहक की सुविधा के अनुसार थोड़ा-बहुत परिवर्तन कर सके।
अब प्रश्न यह उठाता है कि आखिर इससे क्या होगा? होगा यह कि पारदर्शिता बढ़ेगी। ग्राहकों में विश्वास जागृत होगा। कीमतों का कृत्रिम खेल समाप्त होगा।
कानूनी प्रावधान अधिकारों की सुरक्षा की ढाल बन सकता है .
भारत में पहले से कई कानून मौजूद हैं जो एमआरपी से जुड़े दुरुपयोग पर रोक लगाते हैं: जैसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 , GST अधिनियम आदि | इन कानूनों के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर जुर्माना और कारावास तक का प्रावधान है, किंतु इनकी कड़ी निगरानी और क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
क्या एसआरपी भारत में सफल होगा? — संशय और संभावनाओं की जंग में कुछ विरोध की आवाज़ें भी उठी है ,कुछ उद्योग जगत के लोग एसआरपी को मूल्य नियंत्रण की छूट मानते हैं। उन्हें आशंका है कि इससे बिक्री में गिरावट आ सकती है।
कुछ चुनौतियाँ भी है जैसे GST प्रणाली के साथ एसआरपी का समन्वय सरल नहीं होगा। वितरण चैनल और स्टोर्स में भिन्न-भिन्न दामों को कैसे ट्रैक किया जाएगा?
संभावनाएँ है कि सरकार इसे चरणबद्ध तरीके से लागू कर सकती है।मसलन पहले रोज़मर्रा की वस्तुओं पर।
एक डिजिटल मूल्य ट्रैकिंग प्रणाली से पारदर्शिता लाई जा सकती है।
कुल मिलाकर अब परिवर्तन का समय अब है! आज जब भारत डिजिटल युग की ओर अग्रसर है, तब उपभोक्ता की समझ और अधिकार भी बढ़ने चाहिए। एमआरपी का खेल अब पुराना हो चुका है। हमें चाहिए ईमानदार मूल्य, स्पष्टता और उपभोक्ता सम्मान। एसआरपी प्रणाली न केवल एक मूल्य निर्धारण प्रणाली है, बल्कि एक न्यायपूर्ण बाजार व्यवस्था की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार के इस प्रयास में हम सभी उपभोक्ताओं की भी भूमिका है — जागरूक बनें, प्रश्न पूछें, और परिवर्तन का समर्थन को पूर्ण समर्थन मिलना चाहिए ।
लेखक
अधिवक्ता एवं सद्भावना पथिक
राजेश पाठक , मंदसौर