कृषि दर्शनरतलाम

मिट्टी को दी नई ज़िंदगी, आदमी को मिला नया रास्ता, रतलाम के बुज़ुर्ग किसान दंपति की प्रेरक कहानी 

रिपोर्टर जितेंद्र सिंह चद्रांवत जडवासा

मिट्टी को दी नई ज़िंदगी, आदमी को मिला नया रास्ता, रतलाम के बुज़ुर्ग किसान दंपति की प्रेरक कहानी 

रतलाम। उम्र भले ही 70 पार हो गई हो, लेकिन सीखने और बदलाव लाने का जज़्बा आज भी कायम है। यह कहानी है रतलाम ज़िले के ब्लॉक जावरा की ग्राम पंचायत रुसलपुरा के किसान दयाराम पाटीदार और उनकी पत्नी माया बाई की, जिन्होंने पुनर्योजी खेती को अपनाकर न सिर्फ़ अपनी मिट्टी की सेहत सुधारी, बल्कि आमदनी का भी एक नया रास्ता खोज निकाला।बीते खरीफ सीजन 2024 में दयाराम पाटीदार ने सॉलिडेरिडाड संस्था के मार्गदर्शन में अपनी आधा एकड़ की अनुपयोगी पड़ी ज़मीन पर मूंगफली की खेती की शुरुआत की। इससे पहले वे पारंपरिक खेती में रासायनिक खाद और दवाओं का ही उपयोग करते थे। संस्था ने सबसे पहले उन्हें रासायनिक इनपुट्स की जगह जैविक इनपुट वर्मी कम्पोस्ट, निंबास्टॉनिक, नीमास्त्र, जीवामृत जैसे विकल्पों के बारे में बताया एवं प्रायोगिक तौर पर वर्मी कम्पोस्ट उपलब्ध भी कराया।

दयाराम को वर्मी कम्पोस्ट बनाने और उपयोग करने की विधि सिखाई गई। वर्मी कम्पोस्ट एक प्राकृतिक खाद है, जो गोबर, सूखी पत्तियाँ और सब्ज़ी के बचे हुए जैविक कचरे को केंचुओं की मदद से तैयार किया जाता है। इसमें जैविक कार्बन और पोषक तत्व भरपूर होते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता बढ़ती है।

दयाराम बताते हैं, “पहले आधा एकड़ में 4–5 क्विंटल मूंगफली होती थी, इस बार उत्पादन 11 क्विंटल पहुंचा। मंडी में 6000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 66,000 रुपये की कमाई हुई। जैविक इनपुट अपनाने से लगभग 2200 रुपए की दवाई की बचत भी हुई है। आगे से हम ये सभी खाद और दवाइयों के उपयोग को पूरी तरह बंद कर देंगे।देश को खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में दयाराम जी जैसे किसान एक प्रेरणास्रोत हैं। वे न केवल तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ा रहे हैं, बल्कि पुनर्योजी खेती के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन को भी सुदृढ़ कर रहे हैं। हटाऊ कृषि प्रणाली के लिए ऐसे प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं,” — डॉ. सुरेश, सॉलिडेरिडाड संस्था के महाप्रबंधक।

 

खेती में बदलाव यहीं नहीं रुका। दयाराम की पत्नी माया बाई ने वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम खुद संभाला और तीन महीनों में इसका पहला बैच तैयार किया, जिसे उन्होंने सरसों, मिर्च और टमाटर की फसल में इस्तेमाल किया। प्रयोग सफल रहा, तो उन्होंने तीन और बैग में वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया। अब तक वे 30 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर चुकी हैं, जिसमें से 16 क्विंटल 400 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचा भी जा चुका है।इस जोड़ी की मेहनत ने गाँव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया। आज रुसलपुरा के 10 से अधिक किसान पुनर्योजी खेती की ओर कदम बढ़ा चुके हैं।

माया बाई मुस्कुराते हुए कहती हैं, मिट्टी को फिर से ज़िंदा कर दिया है। अब सोच है कि जो आमदनी हो रही है, उसका इस्तेमाल नाती-पोतों की पढ़ाई में करेंगे, ताकि उनका भविष्य संवर सके।

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