
सूर्य मंदिर फिर से खुल गया है.. 122 साल बाद गर्भगृह में सूरज की रोशनी आएगी
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी के पास स्थित 13वीं शताब्दी का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है. इस मंदिर का विशाल पत्थर की छत वाला मुख्य हॉल यानी मंडप लगभग 122 सालों से बंद है. 19वीं सदी के अंत में मंदिर की दीवारों और छत में दरारें आ गई थीं और अंग्रेजों को डर था कि यह ढह सकता है. मंदिर के अधिकारियों और ब्रिटिश शासन ने यह माना कि अंदर रेत भरने से मंदिर के ऊपरी हिस्से का भार अंदर से संतुलित हो जाएगा और यह सुरक्षित रहेगा. इसलिए उन्होंने चारों प्रवेश द्वारों को बंद करके रेत भर दी. ताकि अंदर के स्ट्रक्चर पर दबाव न पड़े और वह स्थिर रहे. बिना सीमेंट के बने इस प्राचीन स्ट्रक्चर को बचाना जरूरी था. यह एक अस्थायी उपाय था जिसे कभी हटाया नहीं गया. अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे खोलने और नवीनीकरण की प्रक्रिया चल रही है.
13वीं सदी के कोणार्क सूर्य मंदिर का मुख्य गर्भगृह, जो 1903 से 122 सालों तक बंद था, हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा ऐतिहासिक रूप से फिर से खोलने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिससे रेत हटाने और संरचनात्मक मजबूती सहित व्यापक संरक्षण कार्य के बाद रोशनी और पहुंच संभव हुई है, जो सांस्कृतिक विरासत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
ASI उस गर्भगृह (पवित्र स्थान) को खोल रहा है जिसमें मुख्य देवता थे, जिसे ढहने से बचाने के लिए रेत से भर दिया गया था।
LiDAR स्कैन, सेंसर और लोहे के बीम के साथ संरचनात्मक सहायता सहित वर्षों के काम के बाद, ASI आंतरिक गर्भगृह को सुरक्षित रूप से प्रकट करने के लिए एक सुरंग के माध्यम से रेत हटा रहा है।
यह एक सदी से भी ज़्यादा समय में पहली बार है जब आंतरिक गर्भगृह तक पहुंचा जा सकेगा,जिससे संभावित रूप से भारत की पुरातन, विलुप्त हुई कला और रहस्य सामने आ सकते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी जिले में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है. मंदिर का बंद भाग नाट्यशाला (नृत्य मंडप या जगमोहन) कहलाता है. यह मुख्य मंदिर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह मंडप 128 फीट ऊंचा है और मूल रूप से नाट्य प्रदर्शन के लिए बनाया गया था. कभी-कभी इसे मुख्य मंडप या गर्भगृह से जुड़ा भाग भी कहा जाता है, लेकिन प्रमुखतः नाट्यशाला ही इसका नाम है. यहां सूर्य देव की मूर्ति स्थापित थी. यह मंदिर कभी अनुष्ठान, खगोल विज्ञान और राजसी शक्ति का केंद्र हुआ करता था. सदियों से चक्रवातों, नमक से भरी हवाओं, रेत के बहाव और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी तटीय नमी ने इसको कमजोर कर दिया है. इसलिए अंग्रेजों ने 1903 में स्ट्रक्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए इसे रेत और पत्थरों से भरकर बंद कर दिया था.
टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक एएसआई ने इस सप्ताहांत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इंजीनियरों ने मंडप यानी जगमोहन की पश्चिमी दीवार में एक संकरा छेद करना शुरू कर दिया है. यह ड्रिलिंग रेत को हटाने और यह उजागर करने की लंबे समय से चली आ रही योजना में एक निर्णायक कदम है कि सालों से छिपी नमी और दबाव ने भारत के सबसे प्रसिद्ध पवित्र वास्तुकला कृतियों में से एक को कितना नुकसान पहुंचाया होगा. सबसे पहले पश्चिमी दीवार में छेद किया जा रहा है. यह वही स्थान है जहां कभी ब्रिटिश शासनकाल के इंजीनियरों ने बंगाल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जॉन वुडबर्न के आदेश पर ढहते हुए हॉल में रेत डाली थी. टीओआई के मुताबिक 1950 के दशक के मध्य में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की पूर्व महानिदेशक डॉ. देबाला मित्रा ने सीलबंद हॉल के अंदर जांच का काम किया था. उनके अध्ययनों से पता चला कि बंद हॉल के अंदरूनी हिस्से में रिसने वाले बारिश के पानी से लगातार नमी के कारण काई लग गयी थी. उन्होंने कहा था कि यह नमी स्मारक की रीढ़ बने खोंडालाइट पत्थर के डिकंपोजिशन को तेज कर रही थी. 2019 में रुड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा स्ट्रक्चर की जांच करने पर उन चेतावनियों की पुष्टि हुई.
मुख्य बातें:
- ऐतिहासिक पल: 1903 में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा रेत और पत्थरों से बंद किए गए गर्भगृह को खोलने का काम शुरू हुआ है, जिसे ऐतिहासिक माना जा रहा है.
- ASI की खोज: ASI ने 9 मीटर गहरी ड्रिलिंग करके गर्भगृह तक पहुँचने वाला एक मार्ग खोज निकाला है, और अब 4×4 फुट की सुरंग बनाकर धीरे-धीरे रेत हटाई जा रही है.
- रोशनी की वापसी: रेत हटने के साथ ही गर्भगृह में रोशनी पहुँचने लगी है, जिससे सदियों से छिपी कलाकृतियों और गुप्त स्थानों के खुलने की उम्मीद जगी है.
- सुरक्षा उपाय: इस प्रक्रिया से पहले मंदिर की संरचनात्मक स्थिरता की जांच के लिए 17 इंच की कोर ड्रिलिंग की गई थी ताकि कोई नुकसान न हो.
- महत्व: यह प्राचीन मंदिर की कलात्मक और इंजीनियरिंग उत्कृष्टता का प्रतीक है, जिसे 13वीं सदी में बनाया गया था और यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है.
- यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और पुरातात्विक उपलब्धि है जिससे मंदिर के बारे में और जानकारी मिलने की उम्मीद है.



