किसानक्राफ्ट ने DDSR प्रदर्शन कर धान की खेती में 50% पानी की बचत, लागत घटाकर आय दोगुनी करें किसान

किसानक्राफ्ट ने DDSR प्रदर्शन कर धान की खेती में 50% पानी की बचत, लागत घटाकर आय दोगुनी करें किसान
गोरखपुर पीपीगंज महायोगी गोरखनाथ केवीके (KVK) परिसर में किसानक्राफ्ट ने किसानों के लिए सूखे सीधी बुआई धान (ड्राई डायरेक्ट सीडेड राइस – DDSR) प्रौद्योगिकी का एक प्रभावी प्रदर्शन आयोजित किया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को पारंपरिक धान की खेती की तुलना में कम पानी, कम लागत और पर्यावरण-अनुकूल तरीके से फसल उगाने के फायदों से अवगत कराना था। आईएसओ-प्रमाणित कृषि उपकरण निर्माता और वितरक किसानक्राफ्ट ने इस पहल से किसानों को नई तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया, जो कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी धान उत्पादन को संभव बनाती है।
प्रदर्शन के दौरान विशेषज्ञों ने बताया कि DDSR तकनीक धान की खेती में पानी की खपत को 50% तक घटा देती है। पारंपरिक विधि में एक किलोग्राम धान उत्पादन के लिए लगभग 5,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है,जबकि DDSR में यह मात्रा घटकर 2,000-2,500 लीटर रह जाती है। इसके अलावा, यह विधि उर्वरक, कीटनाशकों, श्रम लागत और ग्रीनहाउस गैस (मुख्य रूप से मीथेन) उत्सर्जन को भी काफी कम करती है। खेतों में पोखर डालने की कोई आवश्यकता नहीं होती, जिससे फसल चक्रण, दालों-सब्जियों-तिलहनों के साथ सहफसलन संभव हो जाता है। लंबे समय में यह मिट्टी के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाती है।के वी के के प्रमुख डॉ. आर के सिंह ने प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा, “धान की खेती भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है, लेकिन पानी की कमी और अन्य चुनौतियां उत्पादन को प्रभावित कर रही हैं। किसानक्राफ्ट द्वारा विकसित DDSR की नई किस्में समान उपज के साथ 50% कम पानी का उपयोग करती हैं, जो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं।”अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के वैज्ञानिक डॉ. अजय पुंडीर ने जोर देकर कहा, “DDSR से किसान मिट्टी की उर्वरता के आधार पर अधिक उपज हासिल कर सकते हैं। पारंपरिक किस्मों की तुलना में स्वाद में कोई बदलाव नहीं आता, लेकिन खेती की लागत में भारी कटौती होती है, जिससे लाभप्रदता बढ़ती है।”किसानक्राफ्ट के असिस्टेंट मैनेजर आलोक जैन ने DDSR के व्यावहारिक लाभों पर प्रकाश डालते हुए बताया, “इस विधि में नर्सरी तैयार करने, पोखर डालने, समतलीकरण और रोपाई जैसे कदमों की जरूरत नहीं पड़ती। यह पर्यावरण-अनुकूल है, कम मीथेन उत्सर्जन पैदा करती है और कीट-रोगों का प्रकोप भी कम रखती है।” कृषि वैज्ञानिक डॉ. श्वेता सिंह ने ‘लो-मीथेन धान’ पहल के तहत DDSR को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए कहा, “यह तकनीक न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि मीथेन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान देती है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी अपनाव को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।” किसानक्राफ्ट के सेल्स मैनेजर रविकांत सिंह ने कंपनी की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि यह आईएसओ-प्रमाणित संगठन छोटे और सीमांत किसानों की आय, फसल उत्पादकता और खेती के क्षेत्र को बढ़ाने पर केंद्रित है। मात्र कम समय में देशभर में फैल चुकी यह कंपनी 5,000 से अधिक डीलरों, एक विनिर्माण इकाई और 14 क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ अखिल भारतीय वितरण नेटवर्क संचालित करती है।इस प्रदर्शन में सैकड़ों किसानों ने भाग लिया और DDSR उपकरणों का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी पहलें धान उत्पादन को सतत और लाभदायक बनाने में मील का पत्थर साबित होंगी।



