पर्यावरणमंदसौर जिलासीतामऊ
बॉस रोपण में मंदसौर जिले की पहचान बना ग्राम नाहरगढ़

बॉस रोपण में मंदसौर जिले की पहचान बना ग्राम नाहरगढ़
मन्दसौर। वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल मिलाए जाने की काफी चर्चा है, बॉस गन्ना एवं मक्का के साथ ही एथेनॉल का महत्वपूर्ण स़्त्रोत है। साथ ही बॉस का उपयोग कागज की लुग्दी अगरबत्ती की काड़ी आदी बनाने मे भी बहुतायत मे उपयोग किया जाता है। भारत में बांस के कच्चे माल का लगभग 97 प्रतिशत आयत किया जाता है। मुख्य रूप से चीन से आयात किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार भारत मे कच्चे माल के रूप में लगभग 10 करोड़ बांस प्रति वर्ष चाहीये। जबकी देश में उपलब्धी प्रति वर्ष लगभग 1.5 करोड़ बांस ही है। स्पष्ट है कि लगभग 85 प्रतिशत आयात पर ही निर्भर है।
भारत में बांस की कई प्रजातिया पाई जाती है। जिनमें मुख्य रूप से डेड्रोकेलेमस स्ट्रिक्स , बम्बुसा वल्गैरिस, बम्बूसा बम्बोस है। बांस वास्तव में एक घास है जो पीएसी परिवार से संबंधित है। गुजरात में राजपीपला के पास उकई डेम (ताप्ती नदी के किनारे ) स्थित वन विभाग गुजरात की रोपणी में 34 प्रजाति के बांस रोपित हैं।
विश्व में लगभग 134 प्रकार के बांस पाये जाते है।
बांस कम पानी में तथा बहुत कम गहरी मिट्टी में पैदा हो सकता है। रोपण के 4 से 5 वर्ष में उत्पादन शुरू हो जाता है। बांस के विविध उपयोग तथा कम उत्पादन लागत के कारण किसानों की आय का वैकल्पिक स्रोत होने से केंद्र सरकार की योजना जिसके अंतर्गत किसानों की आय दोगुनी करने हेतु राष्ट्रीय बांस मिशन की स्थापना की गयी। तथा म0प्र0 में वर्ष 2018-19 से निरंतर क्षेत्र में किसानों की भूमि पर शासकीय अनुदान में बांस रोपण आरंभ किया गया। बांस रोपण सफल होने पर किसानो की चार किश्तो में 120 रूपये अनुदान शासन द्वारा किया जाता है। जिसे अब बढ़ाकर 150 रूपये प्रति पौधा (जीवित होने पर) दिया जाता है।
मंदसौर जिले में वनमंडल मंदसौर में वर्ष 2018-19 से लगातार बांस का रोपण किया गया जिसमे मंदसौर वन परिक्षेत्र जिसमें मंदसौर, दलौदा, सीतामउ, सुवासरा, मल्हारगढ़ तहसीलें आती है। में 2018-19 से 2024-25 तक लगभग 100000 बांस के पौधो का रोपण किसानों द्वारा किया गया । एक अनुमान केे अनुसार जिले में 7 से 8 लाख बांस प्रति वर्ष कटाई योग्य हो चुके है। जो वर्ष 2027-28 तक 10-12 लाख प्रति वर्ष हो जाएगे।
मंदसौर में बांस रोपण बड़े पैमाने पर ग्राम हल्दुनी के कृषक ओमसिंह भाटी द्वारा किया गया। जो वर्ष 2010 से ही बांस उत्पादन कर रहे है, उनके द्वारा बांस का उपयोग मुख्य संतरा एवं अमरूद के बगीचे हेतु किया गया। बांस के वर्ष 2019 में दीपाखेडा के श्री भारतसिंह (पूर्व विधायक) द्वारा बांस प्रदर्शन प्लांट लगाया गया। नाहरगढ़ ग्राम में सर्वप्रथम बांस रोपण पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती प्रियंका गोस्वामी द्वारा उच्च गुणवत्ता के बांस पौधे (बलकुंआ) का रोपण किया गया। उनकी प्रेरणा से नाहरगढ़ के कृषको द्वारा विगत वर्षों में लगभग 60000 बांस का रोपण किया गया। यह कार्य वर्तमान में भी निरंतर जारी है। अकेले नाहरगढ़ में ही आगामी वर्षाे मे 4 से 5 लाख बांस कटाई योग्य प्रति वर्ष प्राप्त होने का अनुमान है। जिले में बांस टिशू कल्चर के बलकंुआ, टुल्ड्रा आदी का रोपण किया गया है। जो कि अच्छे दरो पर बिक्री होती है तथा कम समय में उत्पादन देने योग्य हो जाती है, तथा कटाई करना आसान है। नाहरगढ़ क्षेत्र में बांस रोपण हेतु किसानों को प्रेरित करने का विशेष कार्य श्री रघुराजसिंह सिसौदिया एवं श्री कारूसिंह चौहान द्वारा किया गया। इस कार्य हेतु श्री कारूसिंह चौहान को वनवृत्त उज्जैन से पुरस्कृत किया गया।
समस्या-
पूर्ण पका हुआ कटाई योग्य बांस की मुख्य समस्या यह है कि क्षेत्र मे कुशल श्रमिकों का अभाव है तथा कटाई महंगी है।
बाजार बिक्री व्यवस्था-
वर्तमान में संतरा, नींबू एवं अमरूद के बगीचो में बांस का उपयोग हो रहा है। लेकिन बड़े पैमाने पर खरीदारों का अभाव है, जब तक क्षेत्र में बांस प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना नही हो जाती बिक्री की समस्या बनी रहेगी।
जिले मे काफी जमीन बंजर पड़ी है अतः बांस उत्पादन की भरपूर गुंजाईश है। लेकिन स्थाई बाजार वाजिब बिक्री मूल्य को लेकर कृषक असमंजस में है।
जिसका समाधान शासन स्तर पर उद्योगपतियों को प्रोत्साहित कर किया जा सकता है।

भारत में बांस की कई प्रजातिया पाई जाती है। जिनमें मुख्य रूप से डेड्रोकेलेमस स्ट्रिक्स , बम्बुसा वल्गैरिस, बम्बूसा बम्बोस है। बांस वास्तव में एक घास है जो पीएसी परिवार से संबंधित है। गुजरात में राजपीपला के पास उकई डेम (ताप्ती नदी के किनारे ) स्थित वन विभाग गुजरात की रोपणी में 34 प्रजाति के बांस रोपित हैं।
विश्व में लगभग 134 प्रकार के बांस पाये जाते है।
बांस कम पानी में तथा बहुत कम गहरी मिट्टी में पैदा हो सकता है। रोपण के 4 से 5 वर्ष में उत्पादन शुरू हो जाता है। बांस के विविध उपयोग तथा कम उत्पादन लागत के कारण किसानों की आय का वैकल्पिक स्रोत होने से केंद्र सरकार की योजना जिसके अंतर्गत किसानों की आय दोगुनी करने हेतु राष्ट्रीय बांस मिशन की स्थापना की गयी। तथा म0प्र0 में वर्ष 2018-19 से निरंतर क्षेत्र में किसानों की भूमि पर शासकीय अनुदान में बांस रोपण आरंभ किया गया। बांस रोपण सफल होने पर किसानो की चार किश्तो में 120 रूपये अनुदान शासन द्वारा किया जाता है। जिसे अब बढ़ाकर 150 रूपये प्रति पौधा (जीवित होने पर) दिया जाता है।
मंदसौर जिले में वनमंडल मंदसौर में वर्ष 2018-19 से लगातार बांस का रोपण किया गया जिसमे मंदसौर वन परिक्षेत्र जिसमें मंदसौर, दलौदा, सीतामउ, सुवासरा, मल्हारगढ़ तहसीलें आती है। में 2018-19 से 2024-25 तक लगभग 100000 बांस के पौधो का रोपण किसानों द्वारा किया गया । एक अनुमान केे अनुसार जिले में 7 से 8 लाख बांस प्रति वर्ष कटाई योग्य हो चुके है। जो वर्ष 2027-28 तक 10-12 लाख प्रति वर्ष हो जाएगे।
मंदसौर में बांस रोपण बड़े पैमाने पर ग्राम हल्दुनी के कृषक ओमसिंह भाटी द्वारा किया गया। जो वर्ष 2010 से ही बांस उत्पादन कर रहे है, उनके द्वारा बांस का उपयोग मुख्य संतरा एवं अमरूद के बगीचे हेतु किया गया। बांस के वर्ष 2019 में दीपाखेडा के श्री भारतसिंह (पूर्व विधायक) द्वारा बांस प्रदर्शन प्लांट लगाया गया। नाहरगढ़ ग्राम में सर्वप्रथम बांस रोपण पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती प्रियंका गोस्वामी द्वारा उच्च गुणवत्ता के बांस पौधे (बलकुंआ) का रोपण किया गया। उनकी प्रेरणा से नाहरगढ़ के कृषको द्वारा विगत वर्षों में लगभग 60000 बांस का रोपण किया गया। यह कार्य वर्तमान में भी निरंतर जारी है। अकेले नाहरगढ़ में ही आगामी वर्षाे मे 4 से 5 लाख बांस कटाई योग्य प्रति वर्ष प्राप्त होने का अनुमान है। जिले में बांस टिशू कल्चर के बलकंुआ, टुल्ड्रा आदी का रोपण किया गया है। जो कि अच्छे दरो पर बिक्री होती है तथा कम समय में उत्पादन देने योग्य हो जाती है, तथा कटाई करना आसान है। नाहरगढ़ क्षेत्र में बांस रोपण हेतु किसानों को प्रेरित करने का विशेष कार्य श्री रघुराजसिंह सिसौदिया एवं श्री कारूसिंह चौहान द्वारा किया गया। इस कार्य हेतु श्री कारूसिंह चौहान को वनवृत्त उज्जैन से पुरस्कृत किया गया।
समस्या-
पूर्ण पका हुआ कटाई योग्य बांस की मुख्य समस्या यह है कि क्षेत्र मे कुशल श्रमिकों का अभाव है तथा कटाई महंगी है।
बाजार बिक्री व्यवस्था-
वर्तमान में संतरा, नींबू एवं अमरूद के बगीचो में बांस का उपयोग हो रहा है। लेकिन बड़े पैमाने पर खरीदारों का अभाव है, जब तक क्षेत्र में बांस प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना नही हो जाती बिक्री की समस्या बनी रहेगी।
जिले मे काफी जमीन बंजर पड़ी है अतः बांस उत्पादन की भरपूर गुंजाईश है। लेकिन स्थाई बाजार वाजिब बिक्री मूल्य को लेकर कृषक असमंजस में है।
जिसका समाधान शासन स्तर पर उद्योगपतियों को प्रोत्साहित कर किया जा सकता है।
रघुराज सिंह सिसोदिया
सेवानिवृत उपवन क्षेत्रपाल
मो.नं. 96179699556
सेवानिवृत उपवन क्षेत्रपाल
मो.नं. 96179699556